‘थार का तारा’: कोरोना त्रासदी के वक्त में कॉन्स्टेबल ‘लूण सिंह’ की कहानी से मिलेगी प्रेरणा

फोकस भारत।  कोरोना त्रासदी के वक्त में राजस्थान(Rajasthan) के जैसलमेर जिले के कांस्टेबल लूण सिंह (Loon Singh Mahabar)की कहानी आपको यकीनन प्रेरणा देगी। एक ऐसी दिल को छू जाने वाली दास्तां, जिससे जिंदगी को देखने का दूसरा नजरिया मिलेगा। कांस्टेबल(Constable) लूण सिंह के जज्बे और जुनून की कहानी।

 

पापा को 6 साल की उम्र में बताया था सपना
एक इंस्टाग्राम पेज ऑफिशयल्स ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे को जिंदगी के पुराने पन्नों को पलटते हुए जैसलमेर(Jaisalmer) के कॉन्स्टेबल लूणसिंह भी अपनी कहानी बड़े चाव से सुनाते हैं, लूणसिंह कहते हैं कि सूखा प्रभावित इलाके के किसान के बेटे के रूप में आगे बढ़ना कोई आसान काम नहीं था, दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं होती थी, पापा को परिवार के 8 लोगों का खर्चा उठाना पड़ता था जबकि उनकी महीने की सैलरी केवल दो हजार थी, नाकाफी थी पर जिंदगी से हार थोड़े ही मान सकते थे, वह कहते हैं कि जब मैं 6 साल का हुआ तो मैंने पापा से कहा कि एक दिन मैं बड़ा आदमी बनूंगा।

शिक्षा के मंदिर को बहा ले गई बाढ़
लूणसिंह बताते हैं कि मैंने कड़ी मेहनत की। पानी लाने के लिए 11 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।उतनी ही दूर पढ़ाई के लिए भी, इतनी दूर चलते-चलते पैरों में छाले पड़ जाते थे। दर्द की वजह से आंखों से आंसुओं के झरने तक बहते थे पर गरीबी इतनी थी कि चप्पलें खरीदने तक के पैसे नहीं थे, इतनी कठिनाइयों के बावजूद मैंने खूब पढ़ाई की। मैं अपने क्लास में हमेशा फर्स्ट आता था। शायद पापा का सपना पूरा करना था। पर जब मैं कक्षा 12 में पहुंचा तो एक दिन अचानक बाढ़ आई। उस बाढ़ ने मेरे सपने तक को बहा दिया। मेरा स्कूल उस बाढ़ में बर्बाद हो गया. यह ऐसा समय था, जब मुझे अपनी पढ़ाई रोकनी पड़ी।

हर नौकरी के लिए किया अप्लाई
समय गुजरा,धीरे-धीरे मेरे दुख की यादें भी धुंधली सी होने लगीं। 3 साल बाद मैं नौकरी की तलाश में लग गया, मैंन लाइब्रेरियन से लेकर चपरासी तक की पोस्ट के लिए अप्लाई किया, नौकरी की सख्त जरूरत थी पर समय शायद बुरा चल रहा था, मुझे हर जगह से निराशा ही हाथ लगी, इधर मुझे नौकरी नहीं मिल रही थी, उधर मेरे परिवार की हालत और ज्यादा बुरी होने की कगार पर आ गई। आगे लूणसिंह कहते हैं कि जिंदगी हर कदम एक नई जंग है।  यह गाना मानो मेरे लिए ही बना था, मेरी परेशानियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं। मेरे और मेरे परिवार की हालत को इस कदर दयनीय देखकर मेरे दोस्त ने साल 2012 में सलाह दी कि मुझे किसी स्कूल में शिक्षक के पद पर अप्लाई करना चाहिए। मैं तैयार भी हो गया था पर मैंने एक गलती कर दी। मैंने हिंदी के बजाय अंग्रेजी को अपनी भाषा बता दिया और टेस्ट में फेल हो गया।एक साल बाद मैंने एक अखबार में पुलिस कॉन्स्टेबल का विज्ञापन देखा और तुरंत अप्लाई करके एग्जाम भी दिया। मुझे खुद पर पूरा भरोसा था कि मैं इस परीक्षा में पास हो जाऊंगा, कुछ मीठी सी हंसी के साथ कॉन्स्टेबल लूण बताते हैं कि बस फिर क्या था लगे, हाथ मेरे पापा ने मेरा रिश्ता भी तय कर दिया।

आसमान से मेरे ऊपर गिरी आफत
कॉन्स्टेबल लूण सिंह बताते हैं कि मेरे घर के बास ही इंडियन एयर फोर्स का बेस कैंप था और शायद वक्त को कुछ और ही मंजूर था, शादी से ठीक तीन दिन पहले एक फाइटर प्लेन ने अपना बैलेंस खोया और क्रैश होकर मुझपर गिर गया, मेरे दोनों हाथ-पैर जल गए, किस्मत तेज थी मेरी, कुछ लोगों ने मुझे सही समय पर अस्पताल में भर्ती करवा दिया था। खैर एक सप्ताह बाद जब मेरी कुछ हालत सुधरी तो मेरा रिजल्ट आ गया था, दर्द क्या होता है, मानों भूल गया था मैं। मेरी खुशी की इंतिहा ही नहीं थी क्योंकि मैं अपने जिले में फर्स्ट आया था, मुझे एक महीने बाद शारीरिक परीक्षण के लिए उपस्थित होने के लिए कहा गया था, यह जानते ही मैं एक वॉकर की मदद से खुद को फिट करने में लग गय।

बहता खून भी नहीं तोड़ पाया हौंसला
जिस दिन मेरा फिजिकल टेस्ट था, उस दिन मैं ग्राउंड पर गया, मैंने अपनी सारी शक्ति जुटाकर ग्राउंड के करीब 10 चक्कर लगाए, इसके बाद मेरा खून बहने लगा पर अपना खून देखकर मैं जरा भी नहीं घबराया, मैंने खुद से कहा कि यह मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहिए, बस यही सोचकर मैं आखिरी तक दौड़ा।

आखिरकार बन गया कॉन्स्टेबल
सब्र कर प्यारे फल मिलेगा, आज नहीं तो कल मिलेगा, यह लाइनें शायद मेरे लिए ही बनीं थी। आखिरकार 2015 में मैं कॉन्स्टेबल बन गया। उस समय मीडिया ने मुझे ‘थार का तारा’ कहा। यकीं मानिए उस समय उससे ज्यादा खुशी का पल शायद ही मेरे लिए हो सकता था। मेरे पापा मुझपर गर्व कर रहे थे। उनकी खुशी देखकर मेरी खुशी चार गुना बढ़ गई थी, उस दिन से मैंने अपनी ड्यूटी पर फोकस करना शुरू किया।2020 में कोविड महामारी के दौरान मैंने सैंकड़ो प्रवासियों की मदद की, इस साल भी ड्यूटी पर रहते हुए मैं जागरूकता फैला रहा हूं और मैं मुफ्त में मास्क बांटता हूं। इसके साथ ही लूण सिंह सामाजिक कार्यो जैसे रक्तदान, गरिबो की सेवा में भी भाग लेते हैं। जैसलमेर जिले में इनकी छवि एक ईमानदार ओर जुझारू पुलिसकर्मी के रूप में जानी जाती हैं। पुलिस विभाग (Rajasthan Police) द्वारा भी सम्मानित हो चुके हैं।

लोगों को सुनाता हूं अपनी ही कहानी
एक लंबी सी सांस भरकर कॉन्स्टेबल लूण सिंह कहते हैं कि कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि न जाने कि यह महामारी कब जाएगी? तो मैं उन्हें अपनी कहानी सुनाता हूं। वह बताते हैं कि मैं लाखों बार उतार-चढ़ाव से गुज़रा पर मजबूत खड़ा रहा। कभी-कभी, हमारे पास होने वाली घटनाओं पर कोई नियंत्रण नहीं होता है पर आखिर में सब अच्छा ही होता है।

रिपोर्ट- सिकंदर शैख