जयंती विशेष : जानें स्वामी विवेकानंद के जीवन की प्रेरणादायक बातें

फोकस भारत। “स्वामी विवेकानंद” असाधारण प्रतिभा के धनी दिव्य आभा और ओज से दैदीप्यमान स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 सौभाग्यशाली नगरी कोलकाता में हुआ। बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त व “स्वामी विवेकानंद” नाम आपको आपके गुरु रामकृष्ण परमहंस ने दिया था। अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में आपने भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया, तथा वेदांत दर्शन का प्रसार पुरे विश्व में किया। आपने समाज के सेवा कार्य के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।

इनके जैसी असाधारण और दिव्य प्रतिभा का धनी होना शायद मुश्किल हो किंतु उनके विचारों में से यदि हम 20% भी विचारों को अपनाए तो हम साधारण से असाधारण की यात्रा पर निश्चित रूप से निकल सकते हैं। मेरा सौभाग्य है कि मुझे विश्वविद्यालय में विवेकानंद के शैक्षिक दर्शन को पढ़ाने का सौभाग्य मिला ।अहोभाग्य कि ऐसे विद्वानों के दर्शन को पढ़ने और पढ़ाने का अवसर मिलता है ।आज विवेकानंद जयंती मात्र उनकी तस्वीर को अपनी डीपी बनाकर या सोशल मीडिया पर साझा कर ही ना मनाएं बल्कि उनके कुछ विचारों को तन मन धन से अपनाने का प्रयास कर अपने जीवन को शिवसंकल्पमय और सफल बनाने का प्रयास कर मनाएं। मेरा वादा है निश्चित रूप से जीवन बदलेगा। एक कदम बढ़ाइए ,प्रयास तो करिए।
आप सब के लाभ के लिए उनके कुछ मुख्य विचार आप सबके साथ साझा कर रही हूं:
* एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका हैं।
*यदि शिक्षा का अर्थ सूचनाओं से होता तो पुस्तकालय संसार के सर्वश्रेष्ठ संत होते तथा विश्वकोश ऋषि बन जाते।
*जो शिक्षा जनसाधारण को संघर्ष के लिए तैयार नहीं कर सकती जो चरित्र निर्माण नहीं कर सकती जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं कर सकती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती ऐसी शिक्षा से क्या लाभ।
* उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।
*खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं।
* तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
* सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
*: विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
* दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
*शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
*एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
* “जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।
*जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
* जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।
* चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।
* हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
*जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
* कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
*जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।
*तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।
** किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
*यही दुनिया है; यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचायेंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे – स्नेहियों द्वारा ठगे जाते हैं।
* सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है- वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता। पूर्ण रूप से निःस्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल हैं।
*क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
* लोग तुम्हे गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
* हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हैं।
* जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो; वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही हैं।
* यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
लेखन- डॉ. नीलिमा शेखावत