केशवानंद भारती : जिन्होंने मठ की जमीन और संविधान बचाया

  • केरल के धर्मगुरू केशवानंद का निधन
  • केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार का ऐतिहासिक वाद
  • संविधान के रक्षक माने जाते हैं केशवानंद भारती 

फोकस भारत। केशवानंद भारती नहीं रहे। ये केरल में रहने वाले धर्मगुरू थे। लेकिन उन्हें उनके धार्मिक आख्यानों की वजह से याद नहीं किया जाएगा। केशवानंद भारती याद रहेंगे संविधान के रक्षक के रूप में। केशवानंद भारती वही धर्मगुरू थे जिन्होंने संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट से तय कराया था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बे चलने वाले मामलों में से एक था। इसी मामले की नजीर बार-बार दी जाती है। जो फैसला आया था उसके मुताबिक संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता। केरल के इदानीर मठ में 79 साल की उम्र में केशवानंद भारती का निधन हो गया। वे लम्बे समय से बीमारी से जूझ रहे थे। रविवार तड़के उनका निधन हो गया। इंदिरा गांधी सरकार जब केंद्र में थी तब भूमि सुधार कानून लाया गया था। इसी कानून के आधार पर केरल की वामपंथी सरकार ने केशवानंद भारती के मठ की जमीन को अधीग्रहीत कर लिया था। मठ की जमीन वापस पाने की लड़ाई में केशवानंद भारती कुछ ऐसा कर गए, कि संविधान के रक्षक कहलाने लगे।

क्या था केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार मामला

केरल की तत्कालीन वामपंथी सरकार ने भूमि सुधार मुहिम के तहत जमींदारों और मठों के पास मौजूद हजारों एकड़ की जमीन अधिगृहीत कर ली थी, सरकार का कहना था कि वो जमीनें लेकर आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिश कर रही है। इस सरकारी फैसले को तब युवा संत केशवानंद ने चुनौती दी। क्योंकि उनके एडनीर मठ की संपत्ति भी केरल सरकार ने अधिग्रहीत कर ली थी। केशवानंद भारती ने केरल सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी। उन्होंने कोर्ट में याचिका दखिल कर अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए दलील दी थी कि मठाशीध होने के नाते उन्हें अपनी धार्मिक संपत्ति को संभालने का हक है। इतना ही नहीं संत ने स्थानीय और केंद्र सरकार के कथित भूमि सुधार तरीकों को भी चुनौती दी थी। केरल हाईकोर्ट में उनकी याचिका खारिज हो गई तब उन्होंने ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया ऐतिहासिक फैसला

1973 में केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय में तमाम बिंदुओं पर चर्चा करने के बाद 13 जजों की बेंच ने अपने संवैधानिक रुख में बदलाव किया। बात सरकार बनाम संविधान में उल्लेखित मूल अधिकारों की थी। सवाल यह उठा कि क्या संसद की शक्तियां असीमित हैं ? क्या संसद संविधान में आमूलचूल परिवर्तन कर सकती है? क्योंकि संविधान के ही अनुच्छेद 368 को पढ़ने पर यह लगता था कि संसद अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग कर संविधान के किसी भी हिस्से में बदलाव या संशोधन कर सकती है। तब 13 जजों की बेंच ने फैसला दिया कि संसद की शक्तियां सीमित हैं और संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता। इसके बाद संविधान संशोधनों के बारे में केशवानंद भारती मामले की नजीर दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 68 दिन तक हुई थी। ये इतना बड़ा फैसला था कि 16 साल बाद बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक ‘अनवर हुसैन चौधरी बनाम बांग्लादेश’ मामले में मूल सरंचना सिद्धांत को भी मान्यता दी थी।

संविधान के किस हिस्से का नहीं हो सकता संशोधन

उस ऐतिहासिक फैसले के बाद यह तय हो गया कि संविधान का एक मूल ढांचा है जिसमें संसद संशोधन नहीं कर सकती। इनमें – संविधान की सर्वोच्चता, संसद-कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच शक्ति का बंटवारा,  गणराज्य और लोकतांत्रिक स्वरूप वाली सरकार, भारत का धर्मनिरपेक्ष चरित्र, राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता,  संसदीय प्रणाली, व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा, मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्व, न्याय तक प्रभावकारी पहुँच और कल्याणकारी राज्य की स्थापना का जनादेश।

केशवानंद भारती मामले का महत्व इस पर आए फैसले की वजह से है जिसके मुताबिक संविधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसके मूल ढांचे में नहीं। इस लिहाज से धर्मगुरू केशवानंद भारती ने एक बड़ी और अहम लड़ाई न केवल लड़ी बल्कि संविधान के रक्षक भी बने। वे विलक्षण प्रतिभा वाले दार्शनिक, शास्त्रीय गायक और सांस्कृतिक आइकन रहे। उन्होंने यक्षगान को संरक्षण देकर उन्होंने कर्नाटक में इस पारंपरिक थिएटर को पुनर्जीवित करने का अहम कार्य भी किया था।  । उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भारती ने निधन पर शोक जताया है।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा