महामारी रोकने में विफल सरकार राम दरबार में नतमस्तक
यूपी में कोरोना बरपा रहा कहर, क्या जरूरी था आयोजन ?
Ayodhya PM Modi Ram Mandir। आपदा को अवसर में बदलने की कला कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Ayodhya PM Modi Ram Mandir) से सीखे। शिलान्यास कार्यक्रम में उन्होंने ये कहकर छुटकारा पा लिया कि कोरोना से बने हालात के कारण भूमिपूजन का यह आयोजन अनेक मर्यादाओं के बीच हो रहा है। हालात में और वैश्विक आपदा में अंतर होता है, जबकि कोरोना के आंकड़े भारत में 20 लाख की तरफ बढ़ रहे हैं, लगभग 40 हजार मौतें हो चुकी हैं और उत्तरप्रदेश में संक्रमितों का आंकड़ा 1 लाख से पार निकल गया है।
आपदा को अवसर में बदलना अच्छी बात है, लेकिन अवसर के लिए आपदा को ताक पर नहीं रखा जा सकता। रामगढ़ी और राम दरबार में मोदी नतमस्तक और दंडवत नजर आए। क्या अब कोरोना का इलाज भगवान राम करेंगे? क्या कोरोना को हालात पर छोड़ दिया गया है? सरकार ने क्यों अपनी ही गाइडलाइन इस आयोजन के लिए तोड़ दीं ?
नतमस्तक मोदी
प्रधानमंत्री मोदी की ये तस्वीरें जबरदस्त वायरल हो रही हैं। राम दरबार में मोदी नतमस्तक हैं। बल्कि दंडवत ही हैं। चारों तरफ से सवाल यही उठ रहे हैं को कोरोना ने जब तमाम मंदिरों को पट बंद करा दिए, तमाम धार्मिक सामाजिक आयोजनों को तिलांजलि दिला दी, लोगों में दो गज की दूरी कायम कर दी, हर चेहरे को मास्क के पीछे छुपा दिया, घर से निकलने के लिए उम्रें तय कर दी। ऐसे हालात में क्या अयोध्या में राम-मंदिर भूमि पूजन का इतना साहसिक आयोजन जरूरी था ? क्या दरकार थी ?
आयोजन को लेकर अब मोदी सरकार को जबरदस्त ढंग से घेरा जा रहा है। भूमि पूजन या शिला पूजन की असली और नकली तस्वीरें भी अब सामने आ रही हैं। दावा किया जा रहा है कि राम मंदिर के लिए भूमि पूजन तो कब का हो चुका है, तो क्या सिर्फ क्रेडिट लेने के लिए मोदी सरकार ने पूरी अयोध्या नगरी, संत समाज, प्रमुख लोगों और खुद को कोरोना के आगे सरेंडर कर दिया?
उत्तरप्रदेश के कोरोना के आंकड़े डराते हैं
उत्तरप्रदेश में कोरोना पॉजिटिव मरीजों का आंकड़ा कब का 1 लाख से पार पहुंच चुका है। देश में छठे पायदान पर यूपी पहुंच गया है. हालात ये है कि अस्पतालों में ऑक्सीजन तक मुहैया नहीं है। सरकारी अस्पतालों की हालात बदतर हैं। जिस स्पीड से कोरोना फैल रही है, उसके आगे योगी सरकार भी हथियार डालती नजर आ रही है, आवाम राम-धुन में खोयी हुई है और यूपी में कोरोना के एक दिन में लगभग 3 हजार मामले सामने आए हैं।
योगी सरकार कोरोना के आगे नतमस्तक
उत्तरप्रदेश में कोरोना ने बवंडर मचा रखा है। योगी सरकार के मंत्रियों के गले तक कोरोना की पहुंच हो गई है, योगी सरकार खुद को नहीं बचा पा रही है, योगी के कानून मंत्री बृजेश पाठक की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। इससे पहले बृजेश की पत्नी कोरोना संक्रमित मिली थीं। योगी के जल शक्ति मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह भी कोरोना की चपेट में हैं, यूपी सरकार के अब तक 8 मंत्री कोविड- 19 का शिकार हो चुके हैं। इनमें खेल मंत्री उपेंद्र तिवारी, जय प्रताप सिंह, राजेंद्र प्रताप सिंह, धर्म सिंह सैनी और चेतन चौहान भी शामिल हैं। योगी की कैबिनेट मंत्री कमल रानी का कोरोना से निधन तक हो चुका है।
क्या मोदी को होना चाहिए था कोरेन्टाइन ?
एक सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को कोरोना की गंभीरता को देखते हुए खुद कोरेन्टाइन हो जाना चाहिए था? सवाल इसलिए है क्योंकि उनके सबसे करीबी और खास दोस्त केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कोरोना की चपेट में हैं। मोदी के मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी संक्रमण की जद में आ चुके हैं। ऐसे में क्या अयोध्या का आयोजन किया जाना जरूरी था? जबकि राम मंदिर का भूमि पूजन पहले ही हो चुका है।
असली और नकली भूमिपूजन
राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर दो तस्वीरें तेजी से शेयर की जा रही हैं। राम जन्मभूमि ट्रस्ट के चंपत राय खुद कह चुके हैं को मंदिर का भूमि पूजन तो 1989 में ही हो चुका था। अब तो निर्माण कार्य की ईंट रखी जानी थी। कुछ लोग एक पुरानी तस्वीर सोशल मंच से लगातार शेयर कर रहे हैं, दावा है कि ये तस्वीर राम मंदिर के भूमि पूजन की है जिसे राजीव गांधी सरकार की परमीशन के बाद 9 नवंबर 1989 को आयोजित किया गया था, यहां पहली ईंट दलित कामेश्वर चौपाल ने रखी थी। उस समय देश में आम चुनाव का माहौल था लिहाजा राजीव गांधी हिंदू बहुल जनता को नाराज नहीं करना चाहते थे, उन्होंने विवादित स्थल के पास राम मंदिर शिलान्यास की इजाजत दे दी थी। अब कहा ये जा रहा है कि 9 नवंबर 1989 को मुहूर्त से हुआ भूमिपूजन ही असल शिलान्यास था और अब मोदी सरकार नकली शिलान्यास का आयोजन कर वाहवाही लूटना चाहती थी।
क्या सूक्ष्म स्तर पर किया जाना चाहिए था आयोजन ?
राम मंदिर शिलान्यास कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के अनुसार मर्यादा की सीमा में आयोजन किया गया, लेकिन एक तरफ पूरा विश्व जहां संक्रमण की चपेट मे हैं ऐसे में क्या इस तरह का आयोजन किया जाना गैर जरूरी नहीं लगता। जबकि यूपी के मंत्री-सांसद-विधायक तक संक्रमण की चपेट हैं। अयोध्या के पांच में से दो मुख्य पुजारी कोरोना के प्रभाव में आ चुके थे, रामलला की सेवा में हाजिर पुलिसकर्मी खुद चपेट में आ चुके थे। यहां तक कि खुद मोदी के सहयोगी और मंत्री कोरोना की गिरफ्त में हैं, ऐसे में भगवान राम के दरबार प्रधानमंत्री का नतमस्तक हो जाना दंडवत कम और सरेंडर ज्यादा नजर आता है।
रिपोर्ट- आशीष मिश्रा