- कौन है ‘बजरी किंग’, जानिये सिर्फ यहां
- जो सरकार गिरा रहा था, वही बचा रहा है ?
- राजस्थान के सियासी संकट की पूरी पड़ताल
फोकस भारत। अब हिस्ट्रीशटर तस्कर और एकछत्र बजरी माफिया चाहेंगे तो राजस्थान में सरकार बच जाएगी, वरना गिर जाएगी। ये आपकी सोच से भी बहुत बड़ी बात है और शायद आपके जल्दी से पल्ले पड़े भी ना। लेकिन असल में राजनीति, अपराध और धन का ऐसा ध्रुवीकरण है, जो हर बार सरकार बनाने-बिगाड़ने के समीकरण रचता है और पर्दे के पीछे से अहम भूमिकाएं निभाता है। मुश्किल वक्त में सरकारें इन्हीं की शरण में जाती हैं और फिर ये लोग अपना काम करते हैं। ये लोग सरकारों की मदद करते हैं, इसीलिए हिस्ट्रीशीटर तस्करों की फाइलें भी गायब हो जाती हैं, फाइल खोलने वाले अधिकारियों के तबादले भी हो जाते हैं या फिर पूरे राज्य में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद धड़ल्ले से बजरी की तस्करी होती है और बजरी तस्कर पुलिसकर्मियों और प्रशासन के लोगों को कुचलने से भी नहीं डरते हैं। यही वजह है कि राजस्थान के रास्ते से धड़ल्ले से शराब हरियाणा से गुजरात पहुंचाई जाती है और ये सब खेल सरकारों की नाक के नीचे चलते हैं और चलते रहते हैं। इस कहानी के कई रूपाकार हैं, कोशिश रहेगी आपको खुलासा समझाने की-
सतीश पूनिया को क्यों याद आया ‘बजरी माफिया’ ?
राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने ट्वीट करके मुख्यमंत्री पर दो अहम तंज किये। इनमें एक तो था गाजी फकीर की मेहमाननवाजी, और दूसरा तंज दरअसल एक सवाल था- कहां से आएगी लक्जरी बजरी? राजनीतिक पंडित इस ‘लक्जरी बजरी’ का श्लेष अलंकार और व्यंजना शब्द शक्ति को समझ गए होंगे। पूनिया का इशारा बजरी माफिया और लग्जरी यानी मोटे धन से था। सतीश पूनिया को अचानक क्यों प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था और बजरी माफियाओं का आतंक याद आ गया? उन्होंने क्यों कहा कि मुख्यमंत्री गृहमंत्री भी हैं और प्रदेश में बजरी खनन माफिया सरकार से भी ज्यादा ताकतवर हो चुके हैं और वे आपने वाहनों से सामान्य जन से लेकर पुलिस तक को कुचलने में नहीं चूकते हैं। इसके लिए पूनिया ने धौलपुर के पगुली गांव के जंगलों में बजरी माफियाओं और पुलिस के बीच हुई फायरिंग का जिक्र किया। पूनिया ने सवाई माधोपुर के विधायक दानिश अबरार, बाड़ी विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा का हवाला देकर कहा कि शासन प्रशासन किस तरह बजरी माफियाओं का संरक्षक बना हुआ है। ये भी हवाला दिया कि सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद बजरी माफियाओं के हौसले नहीं टूटे।
ज्ञानदेव आहूजा ने किस ‘बजरी किंग’ की दिलाई याद ?
भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा भी सक्रिय हुए और अशोक गहलोत को याद दिलाया कि आप जिस सूर्यागढ़ होटल में रुके हो ये उसी बजरी किंग का होटल है, जिसे लेकर आप वसुंधरा राजे पर उनसे मिलीभगत के आरोप लगाते रहे हैं, जब आप पांच साल विपक्ष में थे। आहूजा ने ये भी आरोप लगाया कि अशोक गहलोत खुद पिछली अपनी सरकार में इस बजरी किंग को बजरी की खानों का आवंटन करके गए थे।
कौन है ये बजरी किंग, नेता इसका नाम क्यों नहीं लेते ?
सतीश पूनियां हों या फिर ज्ञानदेव आहूजा, या फिर विपक्ष में रहे अशोक गहलोत। सबने एक दूसरे पर बजरी किंग से कनेक्शन को लेकर कीचड़ खूब उछाला। लेकिन उसका नाम लेने की हिमाकत कोई नहीं करता। जबकि सच ये है कि ऐसे ही ‘किंग’ की शरण में सरकार को सरकार बचाने के लिए भटकना पड़ता है। फिर चाहे वो भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की।
जिसका नाम कोई नहीं लेता, वो बजरी किंग है मेघराज सिंह शेखावत
सूत्रों का मानना है कि गाजी फकीर के बाद एक नाम और जुड़ गया है जिसके भरोसे गहलोत को अब सरकार बचने की उम्मीद बंध गयी है। दरअसल ये नाम है मेघराज सिंह शेखावत का। मेघराज सिंह शेखावत उर्फ मेघराज सिंह रॉयल एमआरएस कंपनीज़ ऑफ ग्रुप के मालिक हैं। एमआरएस होटल्स की श्रंख्ला का ही एक होटल सूर्यागढ़ भी है, जो जैसलमेर में है और इस समय जहां गहलोत सरकार ने शरण ली हुई है। मेघराज का बेटा मानवेंद्र उर्फ जैकी बन्ना एमआरएस होटल्स के छोटे मालिक हैं। इन्हीं मेघराज सिंह पर कभी अशोक गहलोत विपक्ष में रहते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को 5 करोड़ की बंधी देने का आरोप लगाया करते थे।
मेघराज सिंह शेखावत का वसुंधरा राजे से कोई लिंक है ?
जैसा कि विपक्ष में रहते अशोक गहलोत अक्सर आरोप लगाते थे बजरी किंग पर वसुंधरा का कृपा हाथ है और उन्हें इसके लिए बंधी मिलती है, और जैसा कि ज्ञानदेव आहूजा ने भी इस बात को इशारों में कहा है तो सवाल उठना लाजिमी हो जाता है कि क्या वाकई बजरी किंग मेघराज सिंह शेखावत का लिंक वसुंधरा राजे से था ? इसका जवाब है हां, दरअसल मेघराज सिंह शेखावत राजपूत विकास परिषद के संरक्षक हैं। इस संगठन के माध्यम से वे राजपूत छात्रों और राजपूत समाज के लिए कई काम करते हैं, बल्कि बहुत मोटी रकम राजपूत कल्याण के नाम पर दी जाती है। अजमेर से लेकर सीकर और जोधपुर से लेकर जैसलमेर तक मेघराज सिंह की राजपूत समाज पर अच्छी पकड़ है। इस लिहाज से वसुंधरा के पिछले शासनकाल में अजमेर में उपचुनाव के वक्त वसुंधरा राजे ने कथित तौर पर मेघराज सिंह से राजपूत समाज को उनके समर्थन में एकजुट करने की बात रखी थी। कहा जाता है कि वसुंधरा ने मेघराज के साथ मंच भी साझा किया था।
वसुंधरा राजे को क्यों पड़ी थी मेघराज सिंह शेखावत की जरूरत ?
मेघराज का राजपूतों और रावणा राजपूतों में बराबर होल्ड बताया जाता है। वसुंधरा के पिछले कार्यकाल में हिस्ट्रीशीटर आनंदपाल का एनकाउंटर हुआ था। इस वजह से रावणा राजपूत समाज वसुंधरा से खासा नाराज था। बल्कि समूचा राजपूत समाज ही उस घटना से नाराज था। कुछ फिल्मों को लेकर भी एतराज उठा था जिसके बाद प्रदेश में राजपूत लामबंद हो गए थे और वसुंधरा राजे से जमकर नाराजगी जाहिर की थी। ऐसे में राजपूतों पर अपनी पकड़ कायम रखने के लिए वसुंधरा को मेघराज सिंह शेखावत जैसे बड़े और दमदार चेहरों को जरूरत थी, जो राजपूत समाज पर खासा प्रभुत्व रखते हैं।
मेघराज सिंह शेखावत उर्फ रॉयल का कारोबार
नाम- मेघराज सिंह शेखावत उर्फ मेघराज सिंह रॉयल, ठिकाना- रॉयल, सीकर, वर्तमान निवास- जयपुर। एक फेसबुक पेज से ये दावा किया गया है कि मेघराज सिंह राजपूत समाज को हर साल 5 करोड़ का चंदा देते हैं। जयुपर में उन्होंने राजपूतों के लिए निशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की है। उन्होंने जगह-जगह राजपूत बालिका छात्रावास खोले हैं। मेघराज कंस्ट्रक्शन, होटल, खनन, बजरी और शराब के लंबे चौड़े कारोबार से जुड़े हैं। जैसलमेर का सूर्यागढ़, बीकानेर का लक्ष्मीनिवास और कुचामन फोर्ड के ये मालिक हैं। उसी पेज पर ये अहसान भी जताया गया है कि इन्हीं मेघराज की वजह से राजपूतों की कई हवेलियां और महल गैरों के हाथों में जाने से बचे हैं। सबसे बड़ी और अहम बात इस पेज में ये कही गई है कि राजस्थान के समस्त बजरी के ठेके दो जिलों को छोड़कर सब मेघराज सिंह शेखावत के कब्जे में हैं। मार्बल हो या शराब, सब में मेघराज सिंह सबसे आगे हैं।
तो क्या गहलोत सरकार बचाने में वसुंधरा की कोई भूमिका है ?
ये यकीनी तौर पर कहा नहीं जा सकता। सिर्फ अटकलें लगाई जा सकती हैं और अटकलें लगाई भी जा रही हैं। दरअसल बड़े कारोबारियों के लिंक सरकारों से होते ही हैं। ये नहीं भूलना चाहिए कि मेघराज सिंह शेखावत जैसे लोग गहलोत सरकार के शासनकाल में भी पनपे हैं और वसुंधरा राजे के शासनकाल में भी। गहलोत पर ही ये आरोप है कि उन्होंने मेघराज सिंह को बजरी के ठेके आवंटित किए थे। बड़ी बात है, कैसे एक व्यक्ति दो जिलों को छोड़कर पूरे राज्य में बजरी का माफिया बन सकता है और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद धड़ल्ले से बजरी खनन चलता रहता है।
बजरी माफियाओं के हौसले कितने बुलंद हैं ये आप अखबारों में रोज पढ़ते होंगे। कार्रवाई के नाम प ट्रोली जब्त हो जाती है, माफिया फरार हो जाते हैं। हम अखबार पढ़ने और समाचार देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। एक अनुमान ये लगाया जा सकता है कि सचिन पायलट ने उपमुख्यमंत्री रहते हुए कुछ बड़े गुर सीख लिए थे। अजमेर उनका क्षेत्र रहा है और मकराना में मार्बल का कारोबार, मेघराज सिंह जैसे कारोबारी मार्बल व्यवसाय से भी जुड़े होते हैं, उनका लिंक दोनों पार्टियों से होता है, संभव है कि उन्हीं की शह पर अजमेर के मार्बल व्यापारी भाजपा नेता ने सचिन के कहने पर सौदा किया हो। हो सकता है कि भाजपा के बड़े मंत्री जो खुद शेखावत हैं वो डील में शामिल रहे हों, हो सकता है डील पक्की हो गयी हो, हो सकता है पहली किस्त भेजी जा चुकी हो। हो सकता है पूरी डील का फाइनेंसर वही हो जिसके होटल में इस वक्त सरकार ठहरी हुई है। सोचते रहिये, इस ‘हो सकता है’ में भी बहुत कुछ हो सकता है।
रिपोर्ट – आशीष मिश्रा