‘प्रगतिशील कांग्रेस’ ही सचिन का विकल्प ?

  • सचिन के सामने तीन विकल्प
  • लेकिन सबसे सॉलिड- नई पार्टी

फोकस भारत। सचिन पायलट जल्द ही अपनी नई राजनीति पार्टी ‘प्रगतिशील कांग्रेस’ का एलान कर सकते हैं। सूत्रों के हवाले से खबर है कि वे अब नई पार्टी बनाने पर ही फोकस कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मत है कि भाजपा में पायलट के विलय का नुकसान भारतीय जनता पार्टी को भी होगा तो वहीं सचिन को खुद को भी खामियाजा उठाना पड़ेगा।

क्या सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पायलट की फौरी जीत ?

व्हिप उल्लंघन का मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चल रहा है, फैसला कल तक के लिए सुरक्षित रखा गया है, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष की ओर सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन यानी विशेष याचिका दायर कर कहा गया कि हाईकोर्ट स्पीकर के नोटिस देने के संवैधानिक अधिकार में अतिक्रमण नहीं कर सकता, हाईकोर्ट की खंडपीठ ने स्पीकर से फैसला आने तक बागियों पर कार्रवाई न करने का आग्रह किया था। स्पीकर ने आग्रह तो माना, लेकिन हाईकोर्ट पर यह इल्जाम भी लगा दिया कि वह इस प्रकार आग्रह कर विधानसभा अध्यक्ष की कुछ संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने से उसे रोक रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा जहां न्यायाधीश ने तंज कसा कि आप एक दिन का इंतजार नहीं कर सकते ?  साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाने से भी इन्कार कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कल फैसला आ जाने दीजिए, उसके बाद सोमवार को सुनवाई हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने कहा- जनतंत्र में असंतोष की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। संकेत साफ है कि मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख क्या है। इसे पायलट गुट की फौरी जीत के तौर पर देखा जा रहा है।

सचिन के लिए कोई भी राह आसान नहीं

सचिन पायलट समेत 19 विधायक अब उस स्थिति में पहुंच गए हैं जहां से कोई भी राह आसान नहीं है। अब इतना कुछ हो जाने के बाद उनका कांग्रेस में लौटना अंसभव सा है। केंद्रीय आलाकमान को भी लगने लगा है कि सचिन जहां पहुंच गए हैं वहां से उनका लौटना नामुमकिन है, इसलिए मनाने की कोशिशें अब छोड़ दी गई हैं। सचिन और उनके साथी भाजपा में जाने के लिए शायद एकमत नहीं हैं। मुश्किल वक्त में साथ खड़े सभी 19 साथियों की सहमति से ही पायलट अब आगे का रुख करेंगे और भाजपा में जाकर वे अपने मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा को भी पूरा नहीं कर पाएंगे। साथ ही, उनके साथ के विधायक भी भाजपा को लेकर दो मत रखते हैं, या भी सचिन अपना जनाधार भी खो सकते हैं। अलग पार्टी बनाने की राह में भी अभी कई बाधाएं हो सकती हैं, लेकिन यही रास्ता फिलहाल सही होता नजर आ रहा है। सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि अब नई पार्टी के विकल्प पर ही विचार किया जा रहा है। इससे सचिन के जनाधार की भी परीक्षा हो जाएगी और वे अपने लिए बनी सहानुभूति का राजनीतिक लाभ भी उठा सकेंगे। चुनाव के बाद समर्थन लेने-देने का निर्णय भी उनको सशक्त बनाएगा।

लेकिन क्या पार्टी लाइन से अलग हटकर नई पार्टी बनाने वाले लोग राजस्थान में सफल हो सके हैं? जबकि राजस्थान में थर्ड फ्रंट की कोशिशें कई बार फेल हुई हैं। साथ ही अलग पार्टी बनाने का विचार करके खड़े होने वाले नेता भी छोटे स्तर पर सिमट कर रहे गए और आखिर किसी न किसी बड़े दल का हिस्सा उन्हें होना ही पड़ा।

इन नेताओं ने बनाई अलग पार्टी

हाल के कुछ वर्षों की बात  की जाए तो पार्टियों से बगावत के सुर भी उठे, उठापटक भी मची और अलग पार्टी बनाने की चाल भी चली गई। इनमें भाजपा से बागी होकर अलग पार्टी बनाने और फिर कांग्रेस में शामिल होने वाले नेता घनश्याम तिवाड़ी शामिल हैं, तिवाड़ी ने भाजपा छोड़ने के बाद भारत वाहिनी पार्टी बनाई थी, 63 सीटों पर चुनाव भी लडा, एक पर भी नहीं जीत पाए, इसके बाद निराश होकर वे कांग्रेस में शामिल हो गए। किरोड़ीलाल मीणा 2013 में भाजपा से रूठकर किरोडी लाल मीणा ने नेशनल पीपुल्स पार्टी बनाई, 134 सीटों पर प्रत्याशी उतारे, सिर्फ 4 जीत पाए, 2018 के चुनाव से पहले वे वापस भाजपा में लौट आए। तीसरा नाम है हनुमान बेनीवाल, जाटों के कद्दावर लेकिन बड़बोले नेता, 2018 के चुनाव से पहले आरएलपी के नाम से नई पार्टी बनाई, 58 सीटों पर चुनाव लड़ा, सिर्फ 3 सीटों पर जीत मिली, 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया।

सचिन के सामने तीनों उदाहरण हैं, लेकिन पार्टी बनाकर उसी पार्टी को खडा और बड़ा कोई नहीं कर सका। या तो अपनी ही पार्ट में लौट गए, या दूसरी पार्टी में शामिल हो गये या फिर गठबंधन कर लिया गया। तो क्या सचिन को यकीन है कि उनकी नई पार्टी ऐसे हालातों से नहीं गुजरेगी ? समय तय करेगा।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा