क्या बेबी रानी मौर्य मायावती के किले में सेंध लगा पाएंगी?

( Uttar Pradesh Assembly Election 2022)  उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ही नहीं सपा और कांग्रेस भी मायावती (Mayawati) के दलित वोट बैंक(Dalit Vote Bank) में सेंधमारी करने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन बीजेपी इससे पहले 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में दलितों को अपनी ओर लाने में सफल हुई है। मसलन मायावती के प्रति समर्पित माना जाने वाला जाटव वोट बैंक अभी भी बसपा के साथ ही है। तो ये तस्वीर बहुत कुछ बयां कर रही है।  क्या बीजेपी बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya )को जाटव(Jatav) समुदाय से आने वाली नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है?

baby rani maurya

राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि  इसका उदाहरण बीजेपी की प्रचार सामग्री और बैनर एवं होर्डिंग में नजर आ रहा है, जहाँ बेबी रानी मौर्य (Baby Rani Maurya )के नाम के साथ जाटव उपनाम जोड़ा गया है, इसके साथ ही ट्विटर पर बीजेपी कार्यकर्ता भी उनका ज़िक्र करते हुए नाम के साथ जाटव उपनाम लिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए दलित मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कवायद तेज कर दी है। इससे पहले भी केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार में मंत्रिमंडल विस्तार के ज़रिए बीजेपी दलित नेताओं को साधने की कोशिश कर चुकी है। लेकिन अब बीजेपी ने मायावती के कोर वोट बैंक माने जाने वाले जाटव समुदाय की ओर हाथ बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि  उत्तर प्रदेश की आबादी में दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 19 फ़ीसदी है, जिसमें से जाटव समुदाय की हिस्सेदारी लगभग 50 फ़ीसदी है, और ये एकमात्र ऐसा दलित समुदाय है, जिसे बीजेपी अब तक अपने साथ लाने में कामयाब नहीं हो पाई है। लेकिन इस  बार चुनाव में बीजेपी जाटव समुदाय को अपनी ओर खींचना चाहती है। बीजेपी ने इस समुदाय को ध्यान में रखते हुए ही उत्तराखंड की पूर्व गवर्नर बेबी रानी मौर्य को मैदान में उतार दिया है। लेकिन सवाल ये उठता है कि  क्या BJP बेबी रानी मौर्य की जातीय पहचान उभार कर मायावती के किले में सेंध लगा पाएंगी?

कौन हैं बेबीरानी मौर्य?

 आगरा की पहली महिला मेयर बनने वालीं बेबी रानी मौर्य ने बीजेपी के साथ लगभग तीन दशक लंबा राजनीतिक सफ़र तय किया है। बेबी रानी मौर्य को एक ऐसी दलित नेता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने एक कार्यकर्ता के रूप में अपना सफ़र शुरू किया था और तमाम आयोगों और विभागों में काम करते हुए वह एक लंबे समय तक बीजेपी की दलित राजनीति का हिस्सा रही। इसके बाद बीजेपी ने साल 2018 में उन्हें उत्तराखंड का गवर्नर बनाया, लेकिन मात्र दो साल बाद बेबी रानी मौर्य को बीती सितंबर में इस्तीफ़ा देना पड़ा। अब बीजेपी ने उन्हें अपना राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर एक नई ज़िम्मेदारी सौंपी है।