फोकस भारत। (milkha singh called flying sikh story of the race in pakistan) 91 साल के मिल्खा सिंह का निधन 18 जून,2021 को चंडीगढ़ में हो गया। वे भारत के सबसे मशहूर एथलीट रहे हैं। दरअसल 1929 में अविभाजित भारत में जन्मे मिल्खा सिंह की कहानी जीवटता की कहानी है। जी हां ऐसी शख्सियत जो विभाजन के दंगों में बाल-बाल बचा, जिसके परिवार के कई सदस्य उसकी आंखों के सामने क़त्ल कर दिए गए, जो ट्रेन में बेटिकट सफ़र करते पकड़ा गया और जेल की सज़ा सुनाई गई और जिसने एक गिलास दूध के लिए सेना की दौड़ में हिस्सा लिया और जो बाद में भारत का सबसे महान एथलीट बना।
उस दौड़ की कहानी जिसके बाद ‘फ्लाइंग सिख’ कहे जाने लगे मिल्खा सिंह
1960 में मिल्खा सिंह के पास पाकिस्तान से न्योता आया कि वह भारत-पाकिस्तान एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लें। टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल ख़ालिक को फ़ोटो फ़िनिश में 200 मीटर की दौड़ में हराया था। पाकिस्तानी चाहते थे कि अब दोनों का मुक़ाबला पाकिस्तान की ज़मीन पर हो। मिल्खा ने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया क्योंकि विभाजन के समय की कई कड़वी यादें उनके ज़हन में थीं जब उनकी आंखों के सामने उनके पिता को क़त्ल कर दिया गया था लेकिन नेहरू के कहने पर मिल्खा पाकिस्तान गए। लाहौर के स्टेडियम में जैसे ही स्टार्टर ने पिस्टल दागी, मिल्खा ने दौड़ना शुरू किया। दर्शक चिल्लाने लगे-पाकिस्तान ज़िंदाबाद..अब्दुल ख़ालिक ज़िंदाबाद..ख़ालिक, मिल्खा से आगे थे लेकिन 100 मीटर पूरा होने से पहले मिल्खा ने उन्हें पकड़ लिया था। इसके बाद ख़ालिक धीमे पड़ते गए, मिल्खा ने जब टेप को छुआ तो वह ख़ालिक से करीब दस गज आगे थे और उनका समय था 20.7 सेकेंड। ये तब के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी थी। जब दौड़ ख़त्म हुई तो ख़ालिक मैदान पर ही लेटकर रोने लगे। मिल्खा उनके पास गए, उनकी पीठ थपथपाई और बोले, ”हार-जीत तो खेल का हिस्सा है, इसे दिल से नहीं लगाना चाहिए। ‘ लिहाजा दौड़ के बाद मिल्खा ने विक्ट्री लैप लगाया। मिल्खा को पदक देते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति फ़ील्ड-मार्शल अय्यूब खां ने कहा, ”मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं, उड़े हो, मैं तुम्हें फ़्लाइंग सिख का ख़िताब देता हूं”