कार्यकर्ताओं के चहेते, राजस्थान की सियासत के ‘चाणक्य’ बनकर उभर रहे डॉ. सतीश पूनियां

नेतृत्व का नया अध्याय

चाल, चरित्र वही चेहरा पूनिया

संगठन का चाणक्य

एक जड़-पकड़ कार्यकर्ता

समीकरणों से आगे का समीकरण

नेतृत्व में बदलाव समय की मांग होती है। कांग्रेस में जो संकट खड़ा हुआ है उसका कारण यही है कि उसने समय के साथ खुद को नहीं बदला।   -सतीश पूनियां, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा

जयपुर, फोकस भारत। सतीश पूनिया की राजस्थान में भाजपा के 14वें  प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति ने एक नए अध्याय का आरंभ किया। आप इसे जाति समीकरण से देखते होंगे। लोगों के लिए ये हैरत की बात हो सकती है कि भाजपा ने चार दशक के बाद पार्टी संगठन की बागडोर किसी जाट नेता के हाथ में दी है। लेकिन राजनीति में समीकरण में भी समीकरण होते हैं। जाति इसका बहुत छोटा हिस्सा है। कांग्रेस में सत्ता को लेकर शीर्ष स्तर पर चली लंबी खींचतान के दौरान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने जब एक इंटरव्यू में कहा कि ‘नेतृत्व में बदलाव समय की मांग होती है’ तो कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि ‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है।’ बस, इसी कुदरती सिद्धान्त को लोग राजनीतिक नजरिये से देखने लगते हैं। डॉ. सतीश पूनिया का मत एकदम स्पष्ट है, प्रदेश में सत्ता के शीर्ष पर नए चेहरे के सवाल पर वे बेबाकी से कहते हैं कि भाजपा आलाकमान ने उत्तरप्रदेश, असम और त्रिपुरा में नई लीडरशिप को प्रमोट किया है और उनको स्थापित भी किया है।‘ उनके इसी ‘राजनीतिक नवीनीकरण’ के फलसफे को अपनी सहूलियत से गतिरोध का नाम देकर सियासी अटकलें लगाई जाती हैं। नए विचारों का हमेशा स्वागत होना चाहिए और सतीश पूनिया राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के एक नए विचार की तरह उदित हुए।

 

satish poonia bjp president

डॉ. सतीश पूनियां

पदभार ग्रहण- 14 सितम्बर 2019

विधानसभा क्षेत्र- आमेर, विधायक

जन्म- 20 दिसंबर 1964

जन्मस्थान- राजगढ़, चूरू

शिक्षा- विज्ञान में स्नातक, एलएलबी, भूगोल से स्नातकोत्तर

प्रदेशाध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान 

पदभार ग्रहण- 14 सितम्बर 2019

विधानसभा क्षेत्र- आमेर, विधायक

जन्म- 20 दिसंबर 1964

जन्मस्थान- राजगढ़, चूरू

शिक्षा- विज्ञान में स्नातक, एलएलबी, भूगोल से स्नातकोत्तर

 

कार्यकाल का फीडबैक

सतीश पूनिया ने पिछले साल 14 सितंबर को प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार गृहण किया था। इस साल सितम्बर में उनके कार्यकाल का एक साल पूरा होने जा रहा है। इस दौरान उन्होंने अभी तक कार्यकारिणी में बदलाव नहीं किया है। जो कार्यकारिणी चली आ रही है उसी से काम चला रहे हैं। अमूमन होता ये है कि नया प्रदेश अध्यक्ष अपनी सहूलियत से कार्यकारिणी में परिवर्तन करता है। लेकिन पूनिया ने अभी तक यह कदम नहीं उठाया है। इन्होने हाल ही में अपनी नई कार्यकारणी का गठन किया है जिसमें ज्यादातर संघ पृष्ठभूमि और युवा मोर्चा से जुड़ें नेताओं को ज्यादा तव्वजों दी है।

सतीश पूनिया का वर्किंग स्टाइल

सतीश पूनिया लगातार सक्रिय रहते हैं और जमीन से अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। वे लगातार प्रदेश की कार्यकारिणी सदस्यों से जुड़े रहते हैं और अपनी बात रखने का पूरा मौका देते हैं। छात्र राजनीति से राजनीति में आने वाले पूनिया युवाओं को तरजीह देते हैं और उनके काम पर भरोसा करते हैं। कोरोना काल में जब सब काम काज और गतिविधियां ठप हो गईं तब भी वे सोशल मीडिया के माध्यम से, वर्चुअल कॉन्फेन्स और तमाम संचार माध्यमों से संगठन से न केवल जुड़े रहे बल्कि निर्देश देते रहे। इसके लिए वे समय या परिस्थिति की परवाह भी नहीं करते। एक बार पंचायती राज के एक कार्यक्रम को उन्हें संबोधित करना था, वे गाड़ी में थे और उन्हें समय नहीं मिल रहा था। उन्होंने गाड़ी रुकवाई और पंचर की दुकान में बैठकर वीडियो कॉन्फ्रेंस कर डाली। यह घटना उनके वर्किंग स्टाइल को दर्शाती है।

 

satish poonia bjp president

अध्याय आरंभिक संघर्ष का

आमेर से विधायक सतीश पूनिया का भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर चुना जाना सामान्य राजनीति का हिस्सा नहीं था, तब जबकि भाजपा संगठन की बागडोर सियासत का चाणक्य कहे जाने वाले राजनेता अमित शाह के हाथों में थी। जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके पूनिया की राह आसान नहीं रही थी। उनकी प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति से पहले 82 दिन तक मंथन चला था। किशोरवय में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े पूनिया को परिपक्वता आने पर भाजपा युवा इकाई के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई थी, इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और भाजपा के सदस्यता अभियान को ग्राउंड पर सफल बनाया, पार्टी ने इस सफलता का ईनाम भी दिया। वे भाजपा के सबसे युवा प्रदेश अध्यक्षों में शुमार किये जाते हैं। पिता सुभाषचंद्र पूनिया राजगढ़ पंचायत समिति के प्रधान रहे थे, बेटे सतीश इतना आगे जाएंगे, उन्होंने कभी नहीं सोचा था।

साथ रहा बाबोसा का आशीर्वाद

चूरू में एक जनसभा का आयोजन था। साथ था 2000, तकरीबन 35-36 की उमर का युवा सादुलपुर सीट के उपचुनाव में भाजपा का प्रत्याशी था। नाम था सतीश पूनिया। पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने सभा को संबोधित किया था। जिन्हें टिकट नहीं मिला था वे मुंह फुलाए बैठे थे। भैरोंसिंह शेखावत ने हालात भांप लिए थे। मंच से उन्होंने कहा, मनभेद मतभेद न रखें, आज अगर पूनिया का साथ नहीं दिया तो वो घाटे में रहेगा, लेकिन उसका साथ नहीं देने वाले भविष्य में घाटे में रहेंगे। इतना यकीन करते थे बाबोसा पूनिया पर, स्नेह जो था सो अलग।

युवा कार्यकर्ताओं पर भरोसा

पूनिया 1992 में भाजपा से जुड़े थे। तब राजनीति उथल-पुथल भरे दौर से गुजर रही थी। युवा पूनिया का जोश सिर्फ अपने तक सीमित नहीं था, पार्टी से वे युवाओं को जोड़ते रहे और उनके पसीने और अपने खून को बराबर करार देते रहे। आज भी उन्हें जमीनी और युवा कार्यकर्ताओं पर गाढ़ा भरोसा है। 2013 में वे आमेर से महज 329 मतों से विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन अपने क्षेत्र में युवाओं के दम पर सक्रिय रहे और 2018 में यह सीट अपने खाते में लिखवा ही ली। वे आज भी खुद को पार्टी का एक अदना सा कार्यकर्ता मानते हैं।

bjp president satish poonia

82 दिन का मंथन

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर सतीश पूनिया राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पसंद थे। मदनलाल सैनी के देहावसान के बाद यह पद खाली रहा और राजनीतिक असमंजस में उलझा रहा। राज्यवर्धन राठौड़, राजेंद्र राठौड़ के नाम पर भी चर्चा चली। प्रदेश स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक मंथन चला। सोशल इंजीनियरिंग के समीकरण भी खंगाले गए। 82 दिन तक तय नहीं किया जा सका कि कौन प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर संभाल सकता है। पंचायत और निकाय चुनाव भी सिर पर थे। खैर, पूनिया सदस्यता अभियान के संयोजक बने था तब पार्टी में 57 लाख से ज्यादा नए सदस्य जोड़े थे और कुछ ही वक्त में यह आंकड़ा 1 करोड़ 9 लाख को पार कर गया था। साथ ही उनके पास लगातार 14 साल प्रदेश महामंत्री रहने का अनुभव भी था। वे सभी समीकरणों में फिट बैठ गए।

 

पंचर की दुकान से वीडियो कॉन्फ्रेंस

इस बात को कौन भूल सकता है? एक बड़ी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने का मतलब है व्यस्तता का रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाना। एक बार वे अपने विधानसभा इलाके आमेर के दौरे पर निकले थे। कार्यक्रमों की लिस्ट हाथ में थी। व्यस्त कार्यक्रम था। पंचायतीराज से संबंधित एक कार्यक्रम चल रहा था जिसमें वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए उन्हें जुड़ना था और संबोधित करना था। चलती गाड़ी में यह सब डिस्टर्बिंग होता है। नेटवर्क आता-जाता है। विषय गंभीर था। उन्होंने हरमाडा थाने के पास गाड़ी रुकवाई। इधर उधर देखा। एक पंचर की दुकान नजर आई। वहीं दीवार पर निकली छोटी टांड पर फोन को रखकर उन्होंने वेबिनार को ऑन कर दिया। खुद एक कुर्सी पर बैठ गए। पंचायती राज के विषय पर होने वाली वीडियो कॉन्फ्रेंस को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पंचर की दुकान से संबोधित कर रहे थे।

 

सफ़रनामा-ए-संगठन

आरएसएस से किशोरवय से ही जुड़ाव

एबीवीपी से लंबे समय तक जुड़ाव

छात्रसंघ अध्यक्ष पद का चुनाव हारे

भाजपा के प्रदेश महामंत्री रहे (4 बार)

 

लो प्रोफाइल, लेकिन कार्यकर्ता होने का फायदा

सतीश पूनिया लो प्रोफाइल नेता माने जाते थे हालांकि लगातार कई साल उन्होंने प्रदेश महामंत्री रहते हुए भाजपा की जड़ों को मजबूत बनाया। वे किसी भी तरह की गुटबाजी या खेमेबाजी से अलग-थलग रहे और चुपचाप अपना काम करते रहे। वे महामंत्री होने के बाद भी एक कार्यकर्ता की तरह बीजेपी की सेवा करते रहे। संघ से जुड़ाव था ही इसलिए पद की लालसा उन्होंने कभी नहीं दिखाई थी। बीजेपी के अध्यक्ष पद के लिए जब मंथन का दौर चल रहा था तब राजेंद्र राठौड़ और राज्यवर्धन सिंह जैसे हाई-प्रोफाइल नाम चर्चा में थे। लेकिन केंद्रीय आलाकमान ने लो प्रोफाइल होने के बावजूद सतीश पूनिया की कार्यकर्ता भावना का सम्मान करते हुए उन्हें यह बड़ी जिम्मेदारी दी। डॉ. सतीश पूनिया केंद्र में पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के करीबी और विश्वस्त माने जाते है।

 

फोकस भारत।