राहुल गांधी के इस ‘ट्वीट’ के मायने कुछ अलग हैं, क्योंकि ये ‘कुदरत’ का मामला है !

  • पर्यावरण प्रभाव आंकलन-2020 प्रस्ताव
  • प्रस्ताव का देशभर में किया जा रहा विरोध
  • सोनिया-राहुल गांधी कर चुके हैं विरोध
  • ऐसा क्या है इस प्रस्ताव में, जानना जरूरी है

फोकस भारत। आपको विकास चाहिए या फिर विनाश ? आप कहेंगे कि ऐसा विकास चाहिए जिसमें विनाश की संभावना कम से कम हो। अगर आप इस तरह सोच रहे हैं तो बिल्कुल एक आम नागरिक की तरह सोच रहे हैं। लेकिन सरकार ऐसा नहीं सोच रही है। बल्कि किसी सरकार ने इस तरह नहीं सोचा। इस देश में भ्रष्टाचार इस हद तक जड़ें जमाए हुए है कि वे जड़े खोदते खोदते एक दिन आप अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार बैठेंगे।

राहुल गांधी ने मोदी सरकार के ईआईए ड्राफ्ट-2020 का विरोध किया है। यह कोई कानून नहीं है। सिर्फ प्रस्ताव है, सलाह मशवरे के बाद इसे कानून बना दिया जाएगा। आप खबरें पढ़ते हैं क्योंकि आप खबरों की बाढ़ से घिरे हैं। खबरों का भी भू-स्खलन होता है। मामूली और मसालेदार खबरों के कचरे के ढेर में आप उन खबरों को भी खो देते हैं जिन्हें जानना आपके लिए निहायती जरूरी है। ईआईए ड्राफ्ट-2020 ऐसी ही खबर है। इसे पढ़ें, समझें, शेयर करने को हम नहीं कहेंगे, इससे इरीटेशन होता है, बस आप बात को गहराई से समझ लें, इतना काफी है।

राहुल गांधी ने विरोध में क्या कहा, समझें

राहुल ने ट्वीट किया। लिखा- ‘Nature protects, if she is protected.’ GOI must stop dismantling India’s environmental regulations. Essential first step is to withdraw the Draft EIA 2020 Notification

इसका अर्थ है- ‘प्रकृति हमें तभी बचाएगी जब वो खुद सुरक्षित होगी, भारत सरकार को देश के पर्यावरण नियमों के साथ छेड़छाड़ करनी बंद करनी चाहिए, सबसे पहला जरूरी कदम है ईआईए मसौदे को वापस लेना।

क्या बला है ईआईए मसौदा ?

ये बात तो समझ आती है कि कुदरत खुद बचेगी तभी बचाएगी। लेकिन भारत सरकार का  ईआईए मसौदा क्या है, ये बात अगर आपके पल्ले नहीं पड़ी तो इसे समझने की बेहद जरूरत है। अंग्रेजी में यह ‘एनवायरमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट’ है। जिसके हिन्दी में मायने हैं- पर्यावरण प्रभाव आंकलन। यह एक ड्राफ्ट है। केंद्र सरकार ने आम जनता की राय के लिए यह प्रस्ताव पेश किया था। जिसकी अवधि 11 अगस्त को खत्म हो चुकी है।

ईआईए मसौदे में क्या है, जिस पर एतराज ?

ये तो आप जानते होंगे कि विकास परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से ग्रीन क्लीयरेंस लेना पड़ता है। पर्यावरण पर अमुक परियोजना का क्या असर पड़ेगा इसे देखते हुए उस योजना को मंजूरी या नामंजूर किया जाता है। ईआईए-2020 में ऐसे प्रावधान किये गए हैं जिनसे योजना से जुड़े लोगों/उद्योगपतियों/ठेकेदार कंपनियों/कारखानों को तो फायदा मिलेगा, साथ ही कई प्रोजेक्ट को ग्रीन क्लीयरेंस लेने की बंदिशों से ही मुक्त कर दिया गया है। एक प्रावधान ये भी है कि पर्यावरण संबंधी मंजूरी बाद में मिलती रहेगी पहले प्रोजेक्ट शुरू कर दिया जाए। इसके अलावा आम लोगों और जानकारों को राय देने के लिए भी 20 ही दिन का प्रावधान किया गया है। योजनाओं को दो कैटेगिरी में बांट दिया गया है, बी1 और बी2, छोटी सड़कें, छोटे प्रोजेक्ट, छोटा खनन का काम बी2 श्रेणी में आएगा, इसके लिए ग्रीन क्लीयरेंस लेने का प्रावधान ही हटा दिया गया है। यानी इन प्रोजेक्ट से अगर पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, तब भी इन कामों से जुड़ी कंपनियों की कोई जवाबदारी नहीं होगी। नुकसान हुआ तो भरपाई कैसे होगी, इसका भी कोई जिक्र नहीं। आरोप लग रहे हैं कि माइनिंग, ओयलिंग, पेट्रो इंडस्ट्री, कोल इंडस्ट्री, सीमेंट इंडस्ट्री आदि से जुड़े बड़े उद्योगपतियों और औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए ये सब किया जा रहा है। इससे विकास के नाम पर सिर्फ पर्यावरण का नाश होगा, और कुछ नहीं।

अब ज़रा ध्यान दें

भोपाल में गैस त्रासदी हुई। हजारों लोग नींद में ही खत्म हो गए। पीढ़ियां तबाह हो गई। सरकार पर आरोपियों को सुरक्षित देश से बाहर निकालने के आरोप लगे। पर्यावरण को नुकसान हुआ जो हुआ, आम जन के नुकसाई की भरपाई कैसे हुई होगी। इन खबरों की तरफ ध्यान दें जिन्हें पढ़कर आप भूल जाते हैं- केरल के इडुक्की में चाय बागान मजदूरों की बस्ती भूस्खलन की चपेट में आई, 55 लोग मरे। उत्तराखंड में बाढ़ और भूस्खलन से तबाही, बागेश्वर में 34 सड़कें मलबा बनीं। हिमाचल में खिसके पहाड़, सतलुज ने मचाया तांडव। केदारनाथ के रास्ते पर हुआ भूस्खलन, यात्री फंसे, रेस्क्यू जारी। पहाड़ों पर विकास के नाम पर सड़कों का जाल फैला दिया गया है, पर्यावरण विभाग ने कैसे मंजूरी दे दी, पहाड़ पर सड़क बनाने के लिए पहाड़ काटा जाता है, मिट्टी का जमाव लगातार पेड़ों की कटाई से ढीला हो जाता है, और टीवी पर आप भूस्खलन की खबरों को हैरानी भरी आखों से देखने के अलावा न कुछ कर पाते हैं, न सोच पाते हैं। आपके आस-पास ही हो सकता है कोई बर्फ फैक्ट्री चल रही हो जिसके अमोनिया की गंध से आप परेशान होते हों, कोई रंगाई-छपाई के कारखाने चल रहे हों, जिसका पानी नाले में, खेतों में जा रहा हो, आप कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि आप नियमों को जानते ही नहीं।

क्या सफाई दी पर्यावरण मंत्री जावड़ेकर ने ?

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सफाई में कहा कि ड्राफ्ट में संशोधन का अंतिम मसौदा तैयार नहीं हुआ है इसलिए इसको लेकर विपक्ष का रवैया ठीक नहीं है। अभी तो यह प्रारूप है। अभी ये जो सुझाव आये हैं। उन पर विचार होगा। उसके बाद अंतिम मसौदा तैयार होगा। जावड़ेकर ने राहुल गांधी और जयराम रमेश की आपत्तियों के बारे में कहा कि सुझाव देने की तारीख जा चुकी है, अब सुझावों पर विचार होगा। अधिसूचना के प्रारूप पर हजारों लोगों ने अपनी राय दी है। नियम है कि 60 दिन जनसुझाव के लिए रखा जाता है, लेकिन कोविड-19 के चलते तीन महीने का अतिरिक्त समय दिया गया। कुल 150 दिन दिये गये। वह कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने जनता को पूछे बिन’ ही ईआईए में बहुत सारे ऐसे बदलाव किये थे।

असम के लोगों ने इस ड्राफ्ट को क्यों बताया ‘पूर्वोत्तर विरोधी’ ?

सरकारें एक दूसरे पर आरोप अत्यारोप लगाते रहते हैं। लेकिन इस ड्राफ्ट को लेकर असम और पूरे पूर्वोत्तर की बात सुना जाना बेहद जरूरी है। ड्राफ्ट को ‘एंटी नॉर्थईस्ट’ भी कहा जा रहा है। क्यों कहा जा रहा है, इसे दो उदाहरण से समझिये।

पहला उदाहरण– इसी साल 9 जून को असम के तिनसुकिया के बाघजान तेल के कुएं में भयानक आग लगी थी। दो लोगों की मौत हुई, सात हजार से ज्यादा को पलायन करना पड़ा। इस आग से डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क को भारी नुकसान हुआ। ये पार्क 650 वर्ग किमी में फैला हुआ है। उस आग से इलाके का जल, हवा, जमीन सब भयंकर रूप से प्रदूषित हुई। लेकिन 11 मई 2020 को पर्यावरण मंत्रालय ने ऑयल इंडिया को डिब्रू सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान में फिर से 7 नई जगहों पर ड्रिलिंग की मंजूरी दे दी। ये रिजर्व 575 वर्ग किमी में फैला है।

दूसरा उदाहरण- एलिफेंट रिजर्व डेहिंग पटकई का है। अप्रैल 2020 में ही पर्यावरण मंत्रालय हाथियों के लिए रिजर्व इस इलाके डेहिंग पटकई में कोल इंडिया को कोयला खनन की मंजूरी दे दी। यहां पहले से ही खनन हो रहा था, उसे अब विस्तार दे दिया गया। अब आप सोचिये, राष्ट्रीय उद्यान और रिजर्व तक में पर्यावरण मंत्रालय खुद ऑयल इंडिया और कोल इंडिया को आंख बंद करके मंजूरी दे रहा है तो पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव होगा। हजारों पक्षी मारे जाएंगे। जानवरों में अजीब रोग हो जाएंगे। संरक्षित जानवर मरने लगेंगे। भूमिगत जल खराब होने लगेगा। नदियां जहर उगलने लगेंगी।

बहरहाल, ईआईए-2020 के ड्राफ्ट की यह 5 फीसदी जानकारी भी नहीं है। क्योंकि आप सतर्क नहीं है। आप बस ईश्वर को कोसते रहिये या फिर कुदरत को या भाग्य को। आपके गांव के पास से गुजरने वाली नदी क्यों सूख गई है। बांध में पानी क्यों नहीं आता है। बारिश बेहद कम या बहुत ज्यादा क्यों आने लगी है। गिद्ध या कौए दिखाई क्यों नहीं देते। बार बार टिड्डियां क्यों आ रही हैं। ये तमाम सवाल हैं, जिन्हें आप चौंककर सुनते हैं। अखबारों में आंखें फैलाकर भूस्खलन की खबरें पढ़ते हैं और चींखते हुए मीडिया चैनल्स पर बेतुकी खबरों में आनंद पाते हैं। पर्यावरणविद की तरह भी मत सोचिए, लेकिन इंसान होने के नाते सोचिए, जानकारी लीजिए। राहुल गांधी ने इसीलिए कहा- कुदरत तब हमारी हिफाजत करेगी, जब खुद बचेगी।

रिपोर्ट – आशीष मिश्रा