- जैसलमेर के सूर्यागढ़ में सरकार का सुरक्षा चक्र
- क्या भाजपा के पास है गाजी फकीर के ‘सियासी तिलिस्म’ का तोड़ ?
- गाज़ी फकीर की मेहमाननवाज़ी में ‘सरकार’ पहुंची स्वर्णनगरी के सूर्यगढ़ ?
- कौन हैं गाजी फ़कीर ?
- क्या गाज़ी लेकर गए सरकार को जैसलमेर ?
फोकस भारत। राजस्थान का सियासी संग्राम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए जी का जंजाल बन गया है। गहलोत के दावे को सच मानें तो सचिन पायलट भाजपा की गोद में बैठकर चालें चल रहे हैं, केंद्र सरकार, केंद्रीय गृहमंत्री, तमाम केंद्रीय एजेंसियां, राजभवन सब मिलकर सरकार के पीछे पड़े हैं। कोई ये नहीं कह सकता कि सरकार बचेगी या जाएगी।
ऐसे में गहलोत अपने पक्ष के विधायकों को लेकर जयपुर के फेयरमोंट होटल में कैद हो गए। अटकलों का दौर चल रहा था। घटनाक्रम बदल रहे थे कि एक दिन अचानक एक बुजुर्ग फेयरमोंट होटल पहुंचता है और अंदरखाने नई सुगबुगाहट पैदा हो जाती है।
कौन था वो शख्स, जो अचानक पहुंचा था फेयरमोंट ?
फेयरमोंट पहुंचने वाला वो करीब 80-85 साल का बुजुर्ग शख्स कहने को तो अपने विधायक बेटे से मिलने होटल पहुंचा था। लेकिन उसके वहां पहुंचने के कई मतलब निकाले गए। वो शख्स था गाजी फकीर। गाजी फकीर का विधायक बेटा है सालेह मोहम्मद। जी, वही सालेह मोहम्मद जिसे जैसलमेर के सूर्यागढ़ होटल में विधायकों की देखरेख की जिम्मेदारी और बागड़ोर खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दी है। सालेह मोहम्मद पोकरण से विधायक हैं।
वो तारीख थी 17 जुलाई, जब गाजी फकीर अचानक फेयरमोंट होटल पहुंच गए थे और दावा किया था किस सरकार पर किसी भी तरह का संकट नहीं है।
सेहत की वजह से कार्यक्रमों से दूर, लेकिन होटल क्यों पहुंचे थे गाजी ?
गाजी का फेयरमोंट पहुंचना आम बात नहीं थी, सबका चौंकना लाजिमी था, क्योंकि उनकी सेहत नासाज चल रही थी और काफी समय से वे कार्यक्रमों से दूर थे। ऐसे में जैसलमेर से जयपुर पहुंचना बड़ी बात थी और उससे बड़ी बात थी ये दावा करना कि सरकार पर कोई संकट नहीं है। जबकि देशभर की मीडिया और राजनीतिक पंडित दावे से ये नहीं कह पा रहे थे कि सरकार टिकेगी या जाएगी।
विधायक रूपाराम धनदे को क्यों लगा था झटका ?
गाजी के फेयरमोंट पहुंचने पर सबसे ज्यादा झटका जैसलमेर से ताल्लुक रखने वाले विधायक रूपाराम धनदे को लगा। रूपाराम सोशल मीडिया पर पायलट के समर्थन में पोस्ट करते रहे थे और उन्हें पायलट गुट का माना जाता था, मामला बिगड़ा तो रूपाराम गहलोत खेमे में नजर आए। ये भी माना जा रहा था कि मंत्रीमंडल विस्तार में कहीं जैसलमेर से रूपाराम बाजी ने मार ले जाएं, इसीलिए गाजी फेयरमोंट पहुंचे हैं ताकि गाजी परिवार की ओर से सरकार पर दबाव बना सकें। फिलहाल गाजी के बेटे सालेह मोहम्मद के पास अल्पसंख्यक मंत्रालय है।
मुख्यमंत्री से गाजी फकीर ने की थी मुलाकात, क्या कहा ?
जयपुर आकर गाजी फकीर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से भी मिले थे और कहा था कि सरकार परकोई संकट नहीं है, सरकार पूरी तरह सुरक्षित है। इतना ही नहीं, अपने दावे के साथ गाजी ने मुख्यमंत्री को सरकार बचने की अग्रिम बधाई भी दी थी।
सरकार का जैसलमेर के सूर्यागढ़ पहुंचना मजह इत्तेफाक नहीं
अब सबसे अहम बात ये है कि सरकार का अपने विधायकों के साथ जैसलमेर में डेरा डाल देना महज इत्तेफाक नहीं है, जबकि फेयरमोंट होटल में सब कुछ चल रहा था। सियासी प्रेक्षक अब ये दावा कर रहे हैं कि अशोक गहलोत को गाजी फकीर ने ही जैसलमेर के लिए इनवाइट किया और ये भरोसा दिलाया कि सरकार वहीं बच सकती है।
तो क्या ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ के अनलिमिटेड दाम बहाना था ?
मुख्यमंत्री ने मीडिया के सामने दावा किया था कि फेयरमोंट में विधायकों के परिजन पहुंच कर कह रहे हैं कि उन्हें फोन आ रहे हैं, संपर्क किया जा रहा है और कहा जा रहा है कि विधायकों को पाला बदने के लिए अनलिमिटेड ऑफर दिया जाएगा। खुद मुख्यमंत्री ने अपने ही विधायकों को ‘ब्याज सहित लाभ’ देने की बात कही थी। अब सवाल ये कि जब गाजी फकीर ने 13 दिन पहले ही सरकार को जैसलमेर आमंत्रित कर लिया था तो क्या मुख्यमंत्री ने हॉर्स ट्रेडिंग की बात भाजपा पर सिर्फ आरोप लगाने के लिए कही ?
कौन है गाजी फकीर, कितनी है सरहदी जिले में उसकी ताकत ?
गाजी फकीर को सरहद का सुल्तान कहा जाता है। गाजी फकीर सिंधी मुस्लिमों का धर्मगुरू है, सरहद के दोनों तरफ सिंधी मुसलमानों में गाजी की तूती बोलती है। सरहदी जिलों जैसलमेर और बाड़मेर में गाजी की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। रेगिस्तानी इलाके की सियासत गाजी के इशारे पर चलती है, इलाके में सिंधी मुस्लिमों की तादाद और गाजी के अनुयायियों की तादाद लाखों में है। जैसलमेर से 20 किलोमीटर दूर भागू का गांव गाजी फकीर की राजधानी मानी जाती है और ये इत्तेफाक ही है कि सूर्यागढ़ होटल भी जैसलमेर से 15-20 किलोमीटर की ही दूरी पर है। गाजी का पूरा परिवार राजनीति में सेट है, बेटा सालेह मोहम्मद मंत्री है, एक बेटा जैसलमेर का जिला प्रमुख रहा है, बाकी सदस्य जिला परिषदों और पंचायतों में सदस्य रहे हैं। ये कहना भी बड़ी बात नहीं होगी कि जैसलमेर और बाडमेर की राजनीति गाजी फकीर के इर्दगिर्द ही घूमती है।
गाजी की हिस्ट्रीशीट जिसने खोली, उस पर गिरी गाज़
यहां ये बताना भी जरूरी है कि गाजी का ताल्लुक किसी दौर सरहद पार तस्करी के कामों से था, लेकिन उनके खिलाफ कभी सबूत नहीं मिले। हां हिस्ट्रीशीट जरूर बनी। 2013 में ये हिस्ट्री शीट जैसलमेर के एसपी रहे पंकज चौधरी ने खोलने की हिमाकत थी जिनका तबालदा किया गया फिर बर्खास्त कर दिया गया। इससे पहले 1965 में हिस्ट्रीशीट खुली, फिर 1984 में हिस्ट्रीशीट खुली, फिर 1990 में हिस्ट्रीशीट खुली लेकिन हर बार या तो फाइल गायब हो गई या फिर अधिकारी का तबादला कर दिया गया।
अगर हॉर्स ट्रेडिंग हो भी रही है, तो जैसलमेर में कामयाब होगी ?
ये कहना बेहद मुश्किल है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अगर किसी भी राजनीतिक दल से इस तरह का कोई ऑफर विधायकों को दिया भी जा रहा है, तो जयपुर में यह संभव था, लेकिन जैसलमेर में इसकी सारी संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। जैसलमेर एक तो वैसे ही आउटर जिला है। वहां कौन पहुंच रहा है इस पर आराम से निगरानी रखी जा सकती है। सूर्यागढ़ होटल अपने आप में एक किला है जिसकी दीवारें बहुत ऊंची हैं। वहां मोबाइल नेटवर्क भी काम नहीं करते हैं, कहा जा रहा है कि सिर्फ बीएसएनएल से ही बातचीत संभव है। फिर वहां विधायक किसी भी बहाने से बाहर नही निकल सिकते। जैसलमेर के पॉलीटिकल टूर से पहले ही गहलोत ने साफ कर दिया था कि विधायक अपने कपड़े और जरूरी सामान रख लें, परिवार के सदस्य को भी साथ ले सकते हैं, लेकिन वहां पहुंचने के बाद परिंदा भी सूर्यागढ़ में पर नहीं मार सकता। ऐसे में हॉर्स ट्रेडिंग के लिए कोशिश करने वालों का किसी भी तरह से गहलोत खेमे के विधायकों के साथ संवाद नहीं हो पाएगा।
तो क्या 17 अगस्त को गहलोत सरकार का बचना तय है ?
राजनीतिक पंडित कह रहे हैं कि 11 अगस्त के झटके से अगर गहलोत सरकार बच जाती है तो फिर सरकार बचाने में मुश्किल नहीं है। गहलोत के पास सरकार बचाने लायक आंकड़ा है। लेकिन 11 अगस्त को बसपा विधायकों की सदस्यता को लेकर हाईकोर्ट में लगाई गई याचिका पर सुनवाई होनी है। अगर ये फैसला गहलोत सरकार के पक्ष में गया तो 14 अगस्त से शुरू होने वाले सत्र में कोई दिक्कत नहीं होगी। 14 अगस्त को कोरोना पर सदन में बात हो सकती है, 15 अगस्त का अवकाश रहेगा। 16 अगस्त को बहस जारी रह सकती है और 17 अगस्त को मुख्यमंत्री अपना बहुमत साबित कर सकते हैं। इसीलिये मुख्यमंत्री ने अपने विधायकों को 17 अगस्त तक की डेडलाइन दी है कि वे डटकर इन हालात का सामना करें।
कुल मिलाकर राजस्थान की सरकार अब गाजी फकीर की शरण में है और गाजी के अभयदान के बाद अशोक गहलोत के चेहरे पर भी चिर परिचित मुस्कान दिखाई देने लगी है, जैसलमेर निकलने से पहले उनके विक्ट्री साइन को कौन भूल सकता है। गहलोत ये मानकर चल रहे हैं कि अब सरकार बच ही गई। इस बीच केंद्र सरकार में बैठे चाणक्य क्या दांव चलेंगे और हरियाणा में बागी बनकर डटे पायलट खेमे के विधायक अगला कदम क्या उठाएंगे, इस पर कयासों का दौर जारी है।
रिपोर्ट – आशीष मिश्रा