सुनो…सुनो…सुनो…वसुंधरा राजे पधार रही हैं !

फोकस भारत। ‘दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान….’, 27 जुलाई को ट्वीटर पर वसुंधरा राजे ने ऐसा क्यों कहा ? आप कहेंगे कि उस दिन तुलसीदास जयंती थी इसलिए कहा। बात सही है, लेकिन राजस्थान में कोरोना काल में लगभग निष्क्रीय रहीं वसुंधरा राजे अचानक सक्रिय क्यों हो गई हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस की कलह को वे एक अवसर की तरह देख रही हैं, और जानती हैं कि किसी भी वक्त सरकार बनाने की नौबत आ सकती है। इसलिए भाजपा आलाकमान से जो उनकी रार चल रही है, कहीं तुलसी की ये पंक्तियां उसी रार पर ठंडा पानी डालने के लिए तो नहीं हैं ?

राजस्थान की सियासत में इस समय एक संकट-अध्याय चल रहा है जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है। सरकार बचाने और गिराने का खेल चल रहा है। इधर, चुपके से आंख बचाकर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे एक बार फिर राजस्थान की राजनीति में एक्टिव हो चली हैं। बड़ी बात ये कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद वे गायब ही हो गईं थी। इसके बाद केंद्र से उनकी तकरार की खबरें आती रहीं। प्रदेश अध्यक्ष को लेकर घमासान चला और उसके बाद वे अज्ञातवास अथवा कोपभवन में जाकर कहीं खो गईं।

इस दौरान कोरोना ने प्रदेश में पैर पसारे लेकिन भाजपा की दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री का कहीं अता-पता नहीं था। यहां तक कि वे अपने विधानसभा क्षेत्र झालावाड़ तक में नहीं देखी गईं। इस तरह से उनके गायब होने का राजनीतिक विश्लेषकों ने यह अनुमान लगाया कि राजस्थान की राजनीति से उनका गायब होना तय है क्योंकि भाजपा आलाकमान ने विधानसभा चुनाव के बाद से ही राजे को ‘ठिकाने’ लगाने की रणनीति पर काम किया। गृहमंत्री अमित शाह से वसुंधरा राजे की खींचतान की खबरें भी आती रहीं।

कोरोना काल में जनता के बीच दिखाई नहीं देना, या किसी भी माध्यम से जनता की सुध नहीं लेना बीजेपी कार्यकर्ताओं और वसुंधरा राजे को पसंद करने वाले कार्यकर्ताओं को भी अखरा। इस दौरान भाजपा से सिर्फ तीन चेहरे ही बार-बार हर जगह उभरते दिखाई दिए, प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़ और गुलाब चंद कटारिया। इसी बीच कोरोना के साथ ही प्रदेश में एक राजनीतिक संकट भी उत्पन्न हो गया। कांग्रेस सरकार की कलह घर की दीवारें लांघकर राज्य के बाहर तक पसर गई। पूरे देश में हल्ला मच गया। भाजपा पर आरोप लगा कि वह खरीद-फरोख्त में लगी है। यह मामला अभी तक नहीं सुलझा है, लेकिन इस पूरे मामले में भी पूनिया-राठौड़-कटारिया की तिकड़ी ही आगे बढ़-बढ़कर बैटिंग करती नजर आई।

रालोपा के हनुमान बेनीवाल ही आखिरकार इस पूरे सिनैरियो में वसुंधरा राजे को खींचकर लाए और उन पर एक के बाद एक धड़ाधड़ आरोप लगाते गए। यहां तक कह गए कि वसुंधरा राजे गहलोत सरकार का बचाव कर रही हैं। इसके बाद वसुंधरा राजे कुछ एक्टिव हुईं और उन्होंने प्रदेश भाजपा का  बचाव करते हुए गहलोत सरकार पर हमला बोला दिया।

अब जब वसुंधरा राजे प्रदेश की राजनीति के मौजूदा घटनाक्रम में उपस्थित हो ही गईं, तो उन्होंने एक्टिव हो जाने में ही भलाई समझी। लोगों को याद होगा कि इससे पहले भी वे 4 साल लंदन में रही और 2013 के विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सक्रिय होकर गहलोत एंड पार्टी को धूल चटा दी थी। हालांकि तब मोदी लहर का असर था, लेकिन राजस्थान में वसुंधरा के नेटवर्क और जनप्रिय छवि का लोहा सब मानते हैं। एक ही साल में वसुंधरा राजे ने कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया था।

मौजूदा संकट ये इशारा कर रहा है कि सरकार किसी भी वक्त गिर सकती है। ऐसे में वसुंधरा राजे का एक्टिव हो जाना लाजिमी भी है। केंद्र आलाकमान अभी तक इस पसोपेश में होगा कि वसुंधरा का विकल्प कौन हो सकता है। क्या नए चेहरे पर भाजपा दांव खेलना चाहेगी ? सवाल बड़ा है लेकिन वसुंधरा ऐसा ट्रम्प कार्ड हैं जो भाजपा को वोट मथकर सरकार निकाल कर देती रही हैं।

अब आप कहेंगे कि वसुंधरा एक्टिव हो गई हैं, इसका सबूत क्या है। सबूत भी है। वसुंधरा राजे, जो सोशल मीडिया से अब तक गायब रहीं, वे अचानक प्रकट हो गई हैं। फेसबुक पर अचानक टीम वसुंधरा एक्टिव हो गई है। धड़ाधड़ वसुंधरा राजे के नाम से फेसबुक आईडी और पेज बन रहे हैं। लगभग हर जिले की कार्यकर्ता टीम तैयार है और जिलेवार पेज बनाकर वसुंधरा की नेतृत्व क्षमता और प्रदेश के लिए किए गए कामों को गिनाया जा रहा है। ये टीमें आप फेसबुक पर वसुंधरा राजे का नाम सर्च करके देखेंगे तो मिल जाएंगे और खास बात ये है कि इनमें से बहुत से पेज नए नए ही बने हैं।

फेसबुक के बाद बात करते हैं ट्वीटर की। आजकल ट्वीटर के माध्यम से भी राजनेता की गतिविधियों और विचारों को पकड़ने का चलन है। जुलाई महीने के आखिरी पांच दिनों की पोस्ट पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि वसुंधरा राजे एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ का कोई भी मौका नहीं छोड़ रही हैं, दूसरी तरफ वे प्रदेशवासियों के दिल में अपनी पुरानी पड़ी तस्वीर को फिर से तरोताजा कर रही हैं।

31 जुलाई, ट्वीटर – तीन तलाक को लेकर वसुंधरा राजे ने एक के बाद एक, दो ट्वीट किये। उन्होंने मोदी सरकार की खुलकर तारीफ करते हुए इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में ठोस कदम बताया।

30 जुलाई, ट्वीटर- वसुंधरा राजे ने मोदी सरकार का धन्यवाद किया कि राजस्थान में जल समस्या का स्थायी समाधान किया गया और इसके लिए 4 लाख जल संरचनाओं के विकास के साथ 88 लाख पौधे लगाए गए। बड़ी बात ये कि जल समस्याओं का निराकरण जल शक्ति मंत्रालय की ओर से किया गया जिसके मंत्री हैं गजेंद्र सिंह शेखावत। कहीं वसुंधरा राजे यह तो नहीं दिखाना चाहती हैं कि केंद्र सरकार या उनके किसी भी मंत्री से अब उनका कोई मतभेद नहीं है।

29 जुलाई, ट्वीटर- प्रधानमंत्री मोदी को बधाई देते हुए वसुंधरा राजे ने केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति की मुक्त कंठ से तारीफ की।

28 जुलाई, ट्वीटर- राजे ने प्रदेश को याद दिलाया कि उनका राजस्थान की लोकरीति, लोक आस्थाओं, मान्यताओं, लोक देवी देवताओं में कितना विश्वास है, इसीलिए उन्होंने सालासर बालाजी के  266 स्थापना दिवस पर सालासर धाम की अपनी एक तस्वीर को शेयर किया।

27 जुलाई, ट्वीटर- तुलसीदास जयंती पर वसुंधरा ने लिखा- दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोड़िये, जब लग घट में प्राण’। हालांकि संत तुलसीदास के इस दोहे को लेकर वसुंधरा ने प्रदेशवासियों को तुलसी जयंती की बधाई दी। लेकिन राजनेता के कथन के कई अर्थ लगाए जाते हैं, और एक अर्थ यह लगाया जा सकता है कि क्या वसुंधरा राजे केंद्र सरकार से दया दिखाते हुए वापस प्रदेश की कमान उनके कंधों पर डालने का अनुरोध कर रही हैं ?

26 जुलाई, ट्वीटर- वसुंधरा ने याद दिलाया कि भाजपा की सरकार में ही शहीदों के परिजनों को मिलने वाली सहायता 20 लाख से बढ़ाकर 25 लाख की गई थी और जिला मुख्यालयों पर शहीद स्मारक बनाने का फैसला लिया गया था।

बहरहाल, राजनीति में सिरमौर रहे चेहरे कुछ समय के लिए छुप जाते हैं, लेकिन अंदरखाने सियासत सक्रिय रहती है। वसुंधरा वो नेता हैं जिनकी खामोशी भी अपने आप में बहुत कुछ कहती है। ऐसे में जब वे कुछ कहती हैं, तो उसके हजार मायने निकलना स्वाभाविक है।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा