- 14 अगस्त तक क्या अशोक गहलोत बचा पाएंगे सरकार ?
- पहली खेप में 53 विधायक जैसलमेर के लिए रवाना
फोकस भारत। जादूगर अशोक गहलोत को विवादों के दड़बे में छटपटा रही सरकार को सकुशल बचाना है। तारीख तय है ही- 14 अगस्त। यानी आज़ादी के एक दिन पहले तक विधायकों को गुलाम रहना ही होगा। 11 अगस्त को बसपा विधायकों को लेकर भी सुनवाई है। उस दिन पर भी नजरें रहेंगी। कुल मिलाकर सरकार अब फेयरमोंट से जैसलमेर के लिए रहाना हो गई है। पहले जत्थे में 53 विधायक रवाना हो गए हैं। कड़ी सुरक्षा में विधायकों को एयरपोर्ट पहुंचाया गया जहां से वे जैसलमेर की फ्लाइट पकड़ कर रवाना होंगे।
क्या खूब तमाशा हो रहा है। प्रदेश कोरोना की चपेट में है। संक्रमण बढ़ता जा रहा है और प्रदेश का मुखिया बहुमत को लिए-लिए फिर रहा है, भटक रहा है। मामला इसलिए भी पेचीदा है क्योंकि यह बहुमत बिल्कुल कगार पर है। जो विधायक अशोक गहलोत के साथ जुड़े हुए हैं, वे अगर 14 तारीख तक बने रहे तो सरकार बच जाएगी। उनमें से एकाध भी इधर उधर हुआ तो सरकार पर तलवार लटक जाएगी। क्या ईद, क्या राखी। नेताओं की बोली ऐसी लगी कि सारे त्योहार होटलों के हवाले हो गए।
वन्दे भारत मिशन के तहत विदेशों में फंसे भारतीयों को लाने का क्रम चल ही रहा है। सोचा नहीं था कि वन्दे राजस्थान मिशन के तहत ‘फंसी हुई सरकार’ को स्पेशल विमानों से जयपुर टू जैसलमेर भी ले जाना पड़ सकता है। बताया जा रहा है कि स्वर्णनगरी जैसलमेर में होटल सूर्यागढ और मैरियट रिसोर्ट में इन महंगे विधायकों को ठहराया जाएगा। पत्रकार अब फेयरमोंट का चक्कर लगाकर अब तक का सरकार का बिल भी खंगलाने की कोशिश करेंगे, कई उत्साही ये भी तलाश कर रहे होंगे कि जैसलमेर के इन होटलों का बजट आम आदमी के लिए कितना है।
ये विधायक स्पेशल चार्टर्ड फ्लाइट के जरिए जैसलमेर पहुंचने की प्रोसेस में हैं। ये भागदौड़ क्यों है, ये तामझाम कैसा है, अगर बहुमत है तो भागने की क्या जरूरत है, अगर आंकड़ा है तो बाड़े खुल क्यों नहीं जाते? तमाम सवाल हैं जिनका सामना अशोक गहलोत बहादुरी से कर रहे हैं। कल ही उन्होंने एक बहादुरी भरा बयान भी दे डाला था। ईद आ रही है, बकरों की खरीद पर सियासत हो रही है, लेकिन गहलोत साहब का बयान विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर था, उन्होंने कहा-
कल रात से जब से विधानसभा सत्र बुलाने की घोषणा हुई है, राजस्थान में खरीद-फरोख्त का रेट बढ़ गया है, इससे पहले पहली किस्त 10 करोड़ और दूसरी किस्त 15 करोड़ रुपए थी, अब ये असीमित हो गई है, सब लोग जानते हैं कि कौन लोग खरीद-खरोख्त कर रहे हैं
अब बताइये, ये भी कोई बात हुई भला। त्योंहार जैसे-जैसे पास आएगा ‘बकरों’ के रेट तेज ही होंगे। त्योंहार गुजर जाने के बाद बकरों को कौन खरीदता है। राजनीति के कालीन के नीचे कितना दलदल है, ये आप राजस्थान की राजनीति देखकर-भोगकर अंदाजा लगा सकते हैं। सारे रेट जब मुख्यमंत्री तक आ रहे हैं तो उन्हें यह भी पता लगाना चाहिए कि कौन ‘बकरा’ बिकने के लिए तैयार है।
अमूमन राजनीति में सरकार बनाने-गिराने के खेल इतना लंबे नहीं चलते। ये तो अशोक गहलोत की जादूगरी है कि वे ‘गिलि गिलि हुश’ करके तस्वीर बदल देते हैं। आगे क्या होगा, कोई नहीं जानता। 14 दिन सरकार को बचाना बड़ा भारी काम है। जबकि केंद्र में अलग सरकार और अलग तरह की सरकार हो। इस बार का स्वतंत्रता दिवस कौन सा खेमा मनाएगा, इस पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है।
रिपोर्ट- आशीष मिश्रा