- कोसी बैरास संधि की सज़ा बिहार को
- 40 साल से भुगत रहा बाढ़
- उधर, बांध के गेट खुले, इधर हुई तबाही
फोकस भारत। नेपाल के दक्षिणी इलाके भयंकर बाढ़ से जूझ रहे हैं। नेपाल के जल मंत्री बर्मन पुण के इस समस्या का कोई रास्ता ढूंढने के लिए अपने अफसरों से कहा कि वे भारत के अधिकारियों से बात करें।
बताया जा रहा है कि कल यानी शुक्रवार को आई बाढ़ में दक्षिण नेपाल के कुछ इलाकों जिनमें मायागढ़ी जिला और सिंधुपल चौक इलाकों में भयंकर तबाही हुई है, नेपाल में इस सीजन में अब तक 60 से ज्यादा लोगों के मारे जाने और 40 से ज्यादा के लापता होने की खबरें हैं। अकेले मायागढ़ी में 27 लोगों की मौत की खबरें आ रही हैं।
भारत नेपाल संयुक्त समिति करेगी बाढ़ नियंत्रण-
शुक्रवार को हुई बैठक में नेपाल के जल मंत्री ने इस समिति के जरिये भारत को बाढ़ प्रबंधन के लिए तैयार करने की बात कही है। वे लोग संयुक्त समिति के भारत के अधिकारियों से बात करना चाहते हैं, लेकिन अभी भारत-नेपाल के रिश्ते तल्ख चल रहे हैं।
नेपाल के गृहमंत्री ने भारत पर ही लगाए आरोप-
एक तरफ नेपाल भारत को लेकर बयानबाजी भी कर रहा है और दूसरी तरफ उसे भारत से मदद भी चाहिए। नेपाल के गृह मत्री राम बहादुर थापा ने भारत पर आरोप लगाया था, कहा कि भारत ने पानी के प्रवाह के साथ छेड़छाड़ की है, जिसकी वजह से नेपाल में बाढ़ की त्रासदियां आ रही हैं।
बाढ़ त्रासदी और नेपाल-बिहार संबंध
चलिए, नेपाल और भारत दोनों देशों की बाढ़ त्रासदी को जरा समझने की कोशिश करते हैं। नेपाल ने अपना पक्ष रख दिया। अब आप भारत के पक्ष को समझिये और यह भी जानिये कि नेपाल के कारण भारत के बिहार राज्य ने क्या कुछ भोगा है।
बिहार में बाढ़ की तबाही –
बिहार को कोसी का शोक कहा जाता है। कोसी एक नदी है जो नेपाल से बिहार में प्रवेश करती है। दरअसल, नेपाल एक पहाड़ी देश है, जहां कई नदियां निकल कर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती हैं। नेपाल ने पहाड़ी इलाकों में जमकर वनों को काटा है, जिसके चलते पानी का प्रवाह बढ़ा है और साथ ही कटाव भी। ये नदियां मैदानी इलाकों में आकर बिहार में प्रवेश करती हैं और नेपाल के मैदानी इलाकों के साथ ही बिहार में भी तबाही का मंजर हर साल पैदा करती हैं। नेपाल में लगातार बारिश का असर है कि बिहार के दस जिलों के 600 से ज्यादा गांव इस वक्त बाढ़ की विभीषिका से गुजर रहे हैं।
नेपाल से ये नदियां आती हैं बिहार –
बिहार के पश्चिमी और पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज जिले नेपाल की सीमा से सटे हैं। नेपाल से बागमती नदी सीतामढी में आकर शिवहर, मुजफ्फरपुर समस्तीपुर होते हुए बेगुसराय में गंडक नदी में मिल जाती है, नेपाल से कारछा नदी भी सीतामढी में प्रवेश करती है और दरभंगा सहरसा खगडिया होते हुए मधेपुरा में कोसी में मिल जाती है। नेपाल से कोसी नदी सुपौल में प्रवेश करती है और मधेपुरा खगड़िया मुंगेर होते हुए कटिहार में गंगा में मिल जाती है, नेपाल से ही कोनकाई नदी किशनगंज में प्रवेश करती है और कटिहार के रास्ते पश्चिम बंगाल का रुख करती है, नेपाल की ही कमला नदी मधुबनी में प्रवेश करती है और सहरसा होते हुए मधेपुरा में कोसी में मिल जाती है। नेपाल से गंडक नदी वाल्मीकिनगर में प्रवेश करती है और हाजीपुर-सोनपुर की सीमा बनाकर गंगा में मिल जाती है।
देश के अन्य राज्यों से बिहार आने वाली नदियां-
बिहार में यूपी से गंगा आती है, गंगा बक्सर-छपरा-पटना-भागलपुर होते हुए कटिहार के रास्ते बंगाल चली जाती है। घाघरा नदी भी सीवान-छपरा आकर गंगा में मिल जाती है। झारखंड से सोन, पुनपुर, फल्गु नदियां बिहार आती हैं। महानदी बंगाल से आती है और कर्मनाशा और दुर्गावती नदी बिहार की आंतरिक नदियां हैं।
अब आप ये तो समझ ही गए होंगे कि बिहार में नदियों का जाल फैला हुआ है। इन नदियों में बारिश के सीजन में भरपूर पानी आता है और सबसे ज्यादा पानी आता है बिहार से। क्योंकि बिहार पहाड़ी इलाका है।
कोसी बांध और भारत-नेपाल संधि-
कोसी नदी बिहार में भयंकर तबाही मचाती है। इसके लिए गुलाम भारत में ब्रिटिश हुकूमत ने संधि की पहल की थी। कोसी पर नेपाल-भारत सीमा पर बांध प्रस्तावित था। हालांकि यह बांध भारत के आजाद होने के बाद 1956 में बनकर तैयार हुआ और दोनों देशों भारत और नेपाल ने बारिश के प्रवाह को लेकर संधि कर दी। संधि का अहम मुद्दा ये था कि अगर कोसी में ज्यादा पानी आएगा तो वह बांध के गेट खोल देगा। लेकिन बांध के तल में रेत इतनी ज्यादा इकट्ठा हो गई है कि यह बारिश शुरू होते ही लबालब हो जाता है और फिर नेपाल इस बांध से पानी छोड़ देता है, यही पानी बिहार में आकर तबाही मचाता है। वैसे कोसी बांध बनने के बाद सात बार टूट भी चुका है। लिहाजा, जब पानी ज्यादा आता है तो कोसी बांध के सभी 56 गेट खोल दिये जाते हैं।
40 साल से बाढ़ भुगत रहा बिहार-
बांध बनने के बाद भी बिहार लगातार 40 साल से बाढ़ के हालात से जूझता है। हाल ही आपने देखा होगा कि गोपालगंज में 262 करोड़ की लागत से बने नए पुल की एप्रोच रोड ही बह गई थी। इस तरह नेपाल से आया पानी बिहार में करोड़ों का नुकसान करता है। उत्तर बिहार में फिलहाल नौ नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। बिहार जल संसाधन विभाग का दावा है कि हर साल बिहार में बाढ़ से लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र तबाह होता है।
रिपोर्ट- आशीष मिश्रा