नए सहकारिता मंत्रालय के जरिए क्या है मोदी सरकार और अमित शाह का मास्टरप्लान?

फोकस भारत। नरेन्द्र मोदी सरकार ने पिछले हफ्ते कृषि मंत्रालय से अलग कर सहकारिता मंत्रालय बनाया। मोदी ने 7 जुलाई को कैबिनेट में फेरबदल किया तो नए मंत्रालय की जिम्मेदारी अमित शाह को सौंप दी। मोदी के बाद सरकार के प्रमुख मंत्रियों में से एक शाह को यह नया मंत्रालय सौंपना कई सवाल खड़े कर रहा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि अमित शाह को यह मंत्रालय देना बताता है कि इसका उद्देश्य सिर्फ एडमिनिस्ट्रेटिव सुधार नहीं है, बल्कि गुजरात मॉडल को पूरे देश में लागू करना भी है। मसलन शाह को नए मंत्रालय को सौंपने के पीछे एजेंडा विकास का कम और राजनीतिक अधिक है। कोऑपरेटिव्स से जुड़े एक विश्वत सूत्र का कहना है कि पूरे देश में गुजरात मॉडल लागू करने की यह शुरुआत है। किसानों के कानूनों और कोविड-19 की हैंडलिंग से पार्टी की गांवों में पकड़ कमजोर हुई है। यूपी में अगले साल चुनाव हैं, जहां किसानों की नाराजगी महंगी पड़ सकती है। छह महीने के भीतर कोऑपरेटिव्स से जुड़ा कोई बड़ा कानून आ सकता है, जो ग्रामीण इलाकों में पार्टी को मजबूती देगा। इसके साथ ही 2022 में गुजरात समेत 7 राज्यों में विधानसभा चुनाव है।

 

कोऑपरेटिव कितने प्रकार ?-

  • कंज्यूमर कोऑपरेटिव सोसायटी
  • कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी
  • प्रोड्यूसर्स कोऑपरेटिव सोसायटी
  • कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसायटी
  • कोऑपरेटिव फार्मिंग सोसायटी
  • हाउसिंग कोऑपरेटिव सोसायटी

राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि करीब सालभर पहले केन्द्रीय सरकार ने कोऑपरेटिव बैंकों को आरबीआई (रिजर्व बैंक) के आधीन  करके राज्य सरकार  का इन बैंकों में हस्तक्षेप खत्म कर दिया। और अब हाल ही में रिजर्व बैंक ने यह परिभाषित किया है कि कौन हो सकता है इस कोऑपरेटिव बैंक में पूर्णकालीन निदेशक व प्रबंध  निदेशक। रिजर्व बैंक के नए निर्देशों के अनुसार कोई विधायक, सांसद या पार्षद कोऑपरेटिव बैंक का पूर्णकालीन निदेशक नहीं हो सकेगा।  इससे भी सख्त शर्त ये है कि बैंक का पूर्णकालीन निदेशक कोई व्यवसायी नही होना चाहिए।

gujarat cooperative model amit shah narendra modi govt created new cooperative ministry