इन आदिवासियों ने नकारा ‘मुफ्त’ का राशन, भूख से बड़ा ‘स्वाभिमान’

फोकस भारत। देश में लॉकडाउन की वजह से लोगो के सामने दो वक्त के रोटी का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं ने जरूरतमंदों तक अनाज पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। लेकिन राजस्थान के सिरोही के आदिवासी अंचल के लोग स्वयंसेवी संस्था की ओर से बांटा जा रहा राशन नहीं ले रहे हैं। दरअसल वे जरूरतमंद हैं, लेकिन वे बरसों से चली आ रही स्वाभिमान की परंपरा को मरते दम न छोड़ने की जिद पर अड़े हैं। जिद ऐसी है कि स्वयंसेवी संस्था से काम करवाने का वादा लेकर ही राशन ले रहे हैं।

‘करो ना काम, कोरोना नाकाम’

कोरोना महामारी के समय ‘मैं भारत’ संस्था द्वारा सुदूर ग्रामीण इलाकों में भूमिहीन श्रमिकों, दैनिक मजदूरी, कारखाने के श्रमिकों और अपनी नौकरी खो चुके लोगों के लिए सूखे राशन का वितरण किया। जिला सिरोही के मिंगलावा फॉल और होक्कफाली गाँव में वितरण के दौरान हमारे स्वयंसेवक को ग्रामीण समूह ने सूखा राशन लेने से मना कर दिया क्योंकि वे नहीं चाहते कि कोई उन पर दया दिखाए। कुछ ग्रामीणों ने राशन के बदले काम देने की प्रार्थना की ।इस सकरात्मक सोच को सहयोग करने के लिए संस्था ने एक पहल ” करो ना काम, कोरोना नाकाम” शुरू की । जिसका अर्थ है ‘काम करो और कोरोना को निष्क्रिय बनाओ’। इन ग्रामीण परिवारों को शहरी क्षेत्र में सड़क के कुत्तों और गायों को खिलाने के लिए गेहूं, मकई का आटा, ज्वार और गुड़ (गुड़) से बने मिक्स आटा उपलब्ध कराया । जिसकी मदद से इन ग्रामीणों को बेजुबान जानवरो के लिए रोटी बनाने का काम दिया गया । उसके बदले इन्होने अपना राशन स्वीकार किया। उन्होंने संस्था से वादा किया है कि लॉकडाउन खुलने के बाद अपनी मजदूरी में से वे इस ऋण को चुकाएंगे। इसके लिए स्थानीय भाषा में ‘चोपड़ा’ कहे जाने वाले रजिस्टर में इन लोगों ने बाकायदा अपने नाम भी रिकॉर्ड के लिए लिखवाए हैं ताकि वे इस कठिन समय में लिया गया ‘ऋण’ चुका सकें।

बेसहारा जानवरों के लिए बनाते है रोटियां
न्यूज 18 से बातचीत की सिरोही के वासा गांव के 27 वर्षीय किसना राम देवासी कहते हैं कि लॉकडाउन के चलते अहमदाबाद में कुक की नौकरी छूट गई। 9 लोगों के परिवार के सामने खाने का संकट खड़ा हो गया। संस्था ने मदद की, लेकिन दान में कुछ भी स्वीकार करना हमारे पुरखों की सीख के खिलाफ है। लेकिन बेसहारा जानवरों के लिए रोटियां बनाकर बदले में राशन पाकर मेरा परिवार खुश है। जबकि गांव की दिहाड़ी मजदूर वरजू देवी भी हर दूसरे दिन तकरीबन 100 रोटियां बेसहारा जीवों के लिए बना रही हैं ताकि पेट भी भरे और स्वाभिमान भी न मरे।

‘मैं भारत’ संस्था की पहल
इन लोगों को स्वयंसेवी संस्था ‘मैं भारत’ के पदाधिकारियों ने आवारा और इस वक्त लगभग बेसहारा हो चुके गायों और कुत्तों के लिए रोटियां बनाने का काम सौंपा है। इस काम को आदिवासियों ने हाथों-हाथ लिया और ऐसा करके उन्होंने खुद के राशन का प्रबंध तो किया ही इलाके के आवारा जीवों की जिंदगी बचाने में भी अहम भूमिका निभा रहे है। आदिवासियों का हर घर यूं लगता है जैसे कोरोना को हराने की जिद पर अड़ा है। फिलहाल हर घर से रोजाना तकरीबन सौ रोटियां बेसहारा जानवरों के लिए बनाई जा रही हैं। संस्था इन्हें इसके लिए गेहूं, बाजरा, मक्के का आटा और गुड़ उपलब्ध करवा रही है।

मास्क भी बना रहीं आदिवासी महिलाएं
जानकारी के मुताबिक सिलाई का काम जानने वाली ग्रामीण महिलाओं ने मास्क बनाना सीखा है, हम उन्हें कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं, ये मास्क जरूरतमंदों और प्रशासन को मुफ्त मुहैया करवाए जाएंगे।सिरोही जिला कलक्टर भागवत प्रसाद के कहते हैं कि संस्था की ‘करो ना काम, कोरोना नाकाम’ वाकई एक अनूठी पहल है। इसने इस दौर में भी लोगों के स्वाभिमान को उजागर किया है। मैंने ग्रामीण आजीविका मिशन को भी सभी आवश्यक जानकारी संस्था को मुहैया कराने का निर्देश दिया है।

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