फोकस भारत। तस्वीरें बहुत कुछ बोलती हैं। तस्वीरें अपने आप में बहुत कुछ छुपाकर रखती हैं। इतिहास के अध्याय से एक तस्वीर निकलकर आजकर सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रही है। श्वेत-श्याम यह तस्वीर है राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र की, ये उन दिनों की तस्वीर है जब कलराज मिश्र उत्तरप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष हुआ करते थे।
तस्वीर का प्रत्यक्ष पहलू
तस्वीर उत्तरप्रदेश के राजभवन की है। तारीख है 2 जून 1995, हालांकि उत्तरप्रदेश की राजनीति में इस तारीख को काला दिवस के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस तस्वीर में तत्कालीन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र विक्ट्री साइन दिखा रहे हैं। उनके चेहरे पर चौड़ी मुस्कुराहट साफ देखी जा सकती है। साथ ही भाजपा के अन्य नेताओं के चेहरों पर भी संतोष साफ झलक रहा है।
राजभवन, धरना और कलराज मिश्र
कलराज मिश्र आज राजस्थान के राज्यपाल हैं। गहलोत सरकार बहुमत का दावा कर रही थी और विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की चिट्ठी राज्यपाल को मुख्यमंत्री ने सौंपी थी। दूसरे दिन दोपहर तक जब चिट्ठी का जवाब नहीं आया तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, जो खुद गृह मंत्री भी हैं, अपने पर काबू नहीं रख पाए। उन्होंने धमकी भरे लहजे में कह दिया कि राज्यपाल ने अगर सत्र बुलाने की अनुमति नहीं दी तो जनता राजभवन का घेराव करेगी और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी। इसके बाद गहलोत समर्थित विधायकों ने राजभवन पहुंचकर डेला डाल दिया, अनिश्चितकालीन धरने का एलान कर दिया गया, ‘शर्म करो’ के नारे लगाए और दबाव की राजनीति का स्पष्ट रूप यहां देखने को मिला। राज्यपाल ने बाद में मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर तंज भी कसा कि सुरक्षा के लिए राज्यपाल किस एजेंसी से संपर्क कर सकते हैं। पुलिस और प्रशासन के उच्च अधिकारी भी राजभवन में तलब किए गए।
तब और अब के कलराज की तुलना
सोशल मीडिया पर यह तस्वीर पोस्ट करके शेयर की जा रही है। उत्साही लोग इसे तब की और अब की राजनीतिक परिस्थितियों से जोड़कर देख रहे हैं। तंज कसा जा रहा है कि राजस्थान में जब कांग्रेस विधायकों ने धरना दिया तो राज्यपाल को यह दबाव की सियासत लग रही है, गलत लग रहा है, और उत्तरप्रदेश राजभवन में धरना इन्हें लोकतांत्रिक और संवैधानिक नजर आया था। राज्यपाल को अनुच्छेद 174 भी याद दिलाया गया और मौजूदा घटनाक्रम को 70 साल के इतिहास में राज्यपाल के नजरिये से दागदार बताया गया है।
तब और अब की परिस्थितियों में क्या अंतर ?
ये सही है कि संविधान के अनुच्छेद 174 के तरह राज्यपाल की संवैधानिक सीमाएं और बाध्यताएं होती हैं। लेकिन तब के राजनीतिक हालात और अब के हालात में अन्तर है। दरअसल, उस समय समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सत्ता में थी। दोनों दलों में खटपट बढ़ने लगी तो बहुजन समाज पार्टी ने सपा के साथ गठबंधन तोड़ने का फैसला कर लिया। बसपा को भारतीय जनपा पार्टी ने समर्थन का वादा किया था। इसी को लेकर लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस पर बसपा और भाजपा की एक मीटिंग चल रही थी। इसी दौरान समाजवादी पार्टी के 200 से ज्यादा नेताओं, कार्यकर्ताओं ने गेस्ट हाउस को घेर लिया। बसपा कार्यकर्ताओं को जमकर पीटा गया। मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। वहां मीडिया भी थी और भाजपा के नेता भी थी। पुलिस को फोन किया गया लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया। मायावती का मानना था कि उनकी जान पर बन आई थी, भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी और लालजी टंडन वहां नहीं होते तो उन्हें जान से मार दिया जाता। इसी घटना के विरोध में कलराज मिश्र के नेतृत्व में भाजपा नेताओं ने राजभवन में धरना दिया था।
आज की परिस्थितियों की बात की जाए तो राजस्थान में सत्ता में आने के बाद से ही कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर कलह की कलई खुल गई थी। कांग्रेस के ही एक खेमे का आरोप है कि उनके इलाके में विकास के काम नहीं करने दिए जा रहे थे, फाइलें अटाकाई जा रहीं थी, जासूसी तक करवाई जा रही थी, डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट से कोई विधायक मिलने आता तो उसे संदेह की नजरों से देखा जाता था। विधायकों के फोन टेप किये जा रहे थे। कांग्रेस में फूट की इंतेहां तब हो गई जब सचिन पायलट व कुछ विधायकों को एसओजी की तरफ से ‘विधायक खरीद फरोख्त मामले’ का एक नोटिस भिजवा दिया गया। नोटिस मिलते ही सचिन पायलट और 18 विधायकों ने बगावत का स्वर बुलंद कर लिया।
1995 की परिस्थितियों में कोरोना नहीं था। केंद्र और राज्य सरकारों की गाइडलाइन के मुताबिक 50 से ज्यादा लोग एक जगह इकट्ठे नहीं हो सकते हैं। मौजूदा पूरे ही प्रकरण में सरकार की तरफ से हड़बड़ी की गई। स्पीकर ने मुख्य सचेतक के कहते ही बागियों के खिलाफ एक ही दिन में अयोग्यता का नोटिस जारी कर दिया। राजस्थान हाईकोर्ट ने स्पीकर को नोटिस की कार्रवाई से रोक दिया। सुप्रीम कोर्ट में फैसला आने से पहले स्पीकर महोदय ने स्पेशल लीप पिटीशन ही वापस ले ली। राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव में कई खामियां छोड़ दीं गईं। राजभवन में उपद्रव का माहौल तैयार कर धमकी भरे लहजे में चेतावनियां प्रसारित की गईं। देशभर के राजभवनों को घेरने का एलान कर दिया गया। स्पीक अप फोर डेमोक्रेसी अभियान चला दिया गया।
सिनैरियो में फिर आई बसपा
1995 के दृश्य में बहुजन समाज पार्टी थी, मायावती थीं। राजस्थान के मौजूदा सिनैरियो में मायावती का आगमन हुआ है। तब भाजपा ने मायावती की मदद की थी। अब मायवती का सॉफ्ट कार्नर भाजपा के साथ नजर आ रहा है। दरअसल मौजूद विधानसभा के चुनाव में बसपा के टिकट पर जीत कर आए 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा कोई मर्जर नहीं हुआ था। भाजपा के मदन दिलावर ने इस पर स्पीकर को नोटिस भिजवाया जिसे खारिज कर दिया गया। बसपा ने अब व्हिप जारी करके फ्लोर टेस्ट की स्थिति में अपने 6 विधायकों को कांग्रेस के खिलाफ वोट करने का आदेश दिया है। कहा जा रहा है कि वे पार्टी लाइन से अलग चलेंगे तो उनकी सदस्यता खत्म कर दी जाएगी।
अगर ऐसा हुआ तो पहले से संकट से घिरी गहलोत सरकार चारों खाने चित हो जाएगी। फिलहाल, मामला तस्वीर का है। एक तस्वीर हजार शब्दों के बराबर होती है। लेकिन कुछ तस्वीरें ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ का आभास करा जाती हैं।
रिपोर्ट – आशीष मिश्रा