राजनीति में ‘यूनीक’ राजनेता हैं अरविंद केजरीवाल

  • दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का जन्मदिन
  • प्रशासनिक अधिकारी से सबसे सफल सीएम तक का सरफनामा

फोकस भारत। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आज जन्मदिन है। ये वही अरविंद हैं जिनका राजनीति में आने से पहले राजनीति से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था। और ये वही अरविंद हैं जिन्होंने राजनीति में आने के बाद उस कल्प को मिथ्या साबित किया कि लहर विशेष के साथ कोई दूसरी लहर नहीं चल सकती। जिस वक्त देश में मोदी लहर चल रही थी, ठीक उसी वक्त दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के नाम की लहर चल रही थी।

अरविंद केजरीवाल अपने जन्मदिन पर हर बार बड़ा सा केक काटते हैं। ये सारा प्रबंध उनके चाहने वाले करते हैं। लेकिन इस बार केजरीवाल ने केक नहीं काटा। दिल्ली के लोगों से अपील की कि गांवों में फैल रहे कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए वे ऑक्सीमीटर दान करें। इससे पहले मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कोरोना के इलाज के लिए प्लाजमा दान करने की अपील की थी। इस तरह मुख्यमंत्री का सामाजिक चेहरा जनता के सामने आता रहा है। आइये जानते हैं अरविंद केजरीवाल के सफर के बारे में-

शुरूआती जिंदगी और नौकरी

अरविंद केजरीवाल का जन्म हरियाणा के हिसार में 16 अगस्त 1968 को हुआ था। अरविंद शुरू से ही पढ़ने में होशियार थे। जिस वक्त देश में राम मंदिर आंदोलन की सुगबुगाहट हुई थी और बीजेपी एक दल के रूप में आकार ले रही थी, उस वक्त यानी 1989 में उन्होंने खड़गपुर आईआईटी से यांत्रिकी अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि हासिल की थी। 1992 में जब देश में बाबरी विध्वंस का नजारा हाजिर हुआ और देशभर में दंगे फसाद होने लगे उसी साल 1992 में वे आईएएस बने और भारतीय राजस्व सेवा में आ गए। दिल्ली उनकी कर्मभूमि बनी और वे आयकर आयुक्त कार्यालय के अफसर बने। स्वभाव से ईमानदार अफसर अरविंद केजरीवाल ने देखा कि राजनीति किस कदर भ्रष्टाचार में डूबी है। योजनाओं के नाम पर कितनी लूट मची है, जिन योजनाओं का फायदा आम जनता को मिलना चाहिए उसे नेता-अफसर मिलकर डकार रहे हैं। सब कुछ उनकी आंखों के सामने था। वे यह सब देखकर व्यथित हुए। उन्हें लगा कि सिस्टम में पारदर्शिता होनी चाहिए। लोगों को पता होना चाहिए कि किसी योजना के लिए कितना पैसा मंजूर हुआ और कहां-कहां खर्च हुआ। अफसर रहते हुए ही अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंक दिया। शुरूआत आयकर विभाग से ही की।

सामाजिक आंदोलन की राह

कोई आठ साल नौकरी करने के बाद अरविंद को लगा कि सिस्टम में हर जगह भ्रष्टाचार की दीमक है। वे वह दौर भी देख चुके थे जब सत्ता बनाने बिगाड़ने के समीकरण केंद्र के स्तर पर चल रहे थे। राजनीति आयाराम-गयाराम का अड्डा हो चुकी थी। एक के बाद एक प्रधानमंत्री बदल रहे थे और भ्रष्टाचार का मायाजाल चारों ओर फैला हुआ था। ऐसे में देश में अटल बिहारी सरकार कुछ स्थिर हुई तो केजरीवाल अपनी नौकरी भी करते रहे और नागरिक आंदोलन में भी जुट गए। साल 2000 में उन्होंने ‘परिवर्तन’ नाम से दिल्ली में ही एक सामाजिक आंदोलन की शुरूआत की और पारदर्शी व जवाबदेह प्रशासन सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने लगे। उनके अभियान को तब सफलता मिली जब सूचना का अधिकार अधिनियम 2001 में दिल्ली में पारित हो गया। केजरीवाल, अरूणा राय और गोरेलाल मनीषी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार पर दबाव बनाए रखा और बड़ी सफलता मिली 2005 में, जब केंद्र सरकार ने सूचना के अधिकार को कानूनी जामा पहना दिया। कानून बन गया था, लेकिन लोगों को आरटीआई की जानकारी ही नहीं थी। केजरीवाल ने ठान लिया था कि वे आमजन को जागरूक करेंगे। लिहाजा पूरी तरह परिवर्तन के लिए काम करने के लिए केजरीवाल ने 2006 में नौकरी छोड़ दी और सामाजिक नागरिक आंदोलन में कूद पड़े। लोगों में सूचना के अधिकार की जागरूकता फैलाने के लिए केजरीवाल ने परिवर्तन संस्था के जरिए आरटीआई पुरस्कार की शुरूआत भी की। इसके बाद लोग सवाल पूछने लगे। सरकारें घिरने लगीं। सबसे बुरा असर हुआ दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार और मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 पर।

अन्ना आंदोलन और केजरीवाल की राजनीति

लोकपाल की नियुक्ति को लेकर और भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे ने गांधीवादी आंदोलन की शुरूआत की। हजारे के नेतृत्व में चले आंदोलन ने केंद्र सरकार की जड़े हिला दीं। लेकिन अन्ना हजारे भ्रष्टाचार की लड़ाई को जारी नहीं रख सके। अरविंद केजरीवाल को समझ आ गया था कि राजनीति को दोष देना गलत है। राजनीति का शुद्धिकरण करना है तो राजनीति में उतरना होगा। वो तारीख थी 2 अक्टूबर 2012, जब भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता जागरूक हो चुकी थी और उसका सबसे बुरा असर पड़ने वाला था यूपीए सरकार पर। इसी तारीख को अरविंद केजरीवाल ने राजनीति की गांधी टोपी पहनी और उस पर लिखवाया – मैं आम आदमी हूं। इसी तारीख को आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। अपने नजरिये के कारण इस पार्टी ने दिल्ली की जनता पर ही नहीं बल्कि देश की जनता पर भी गहरा प्रभाव छोड़ा। आम आदमी को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने का श्रेय अरविंद केजरीवाल को जाता है। पार्टी का नाम ‘आप’ चुनाव चिन्ह झाडू। यानी केजरीवाल जब सियासत की गलियों में निकले तो कोई कह नहीं सकता था कि उन्हें राजनीति का ककहरा नहीं आता। उन्होंने धूम मचा दी। नायक फिल्म के हीरो से उनकी तुलना होने लगी। हर ओर एक ही शोर- अरविंद केजरीवाल।

दिल्ली के तीन बार मुख्यमंत्री

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी शुरूआत में कुछ डगमगाई। 2013 में दिल्ली में चुनाव हुए। अरविंद की अग्निपरीक्षा थी क्योंकि वे नई दिल्ली विधानसभा सीट से मैदान में उतरे थे, सामने थीं शीला दीक्षित जो तीन बार की मुख्यमंत्री रहीं थीं। इस जंग में अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को 25 हजार से ज्यादा मतों से हराया। 28 दिसंबर 2013 को आम आदमी पार्टी सत्ता में आई लेकिन 14 फरवरी 2014 तक ही केजरीवाल मुख्यमंत्री रह सके। क्योंकि आप पार्टी को 70 में से 28 ही सीटें मिली थी। वैसे किसी नई पार्टी के लिए ये शुरूआत धमाकेदार कही जाएगी। 49 दिन की सरकार चलाने के बाद 2015 में फिर दिल्ली में चुनाव हुए। अरविंद केजरीवाल को इस बार 70 में से 67 सीटें मिलीं। ये अपने आप में एक रिकॉर्ड बन गया। तीसरी बार फरवरी 2020 में एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने सभी को चौंका दिया। उनकी पार्टी को 70 में से 62 सीटें मिलीं। 14 फरवरी को जब अरविंद केजरीवाल ने रामलीला मैदान में जनता के बीच शपथ ली तब गीत गाया- हम होंगे कामयाब।

चलिए अब आपको ये बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लिए क्या किया है। ऐसा क्यों है कि दिल्लीवासी कहते हैं कि केंद्र में मोदी चलेगा या कोई और भी चलेगा, लेकिन दिल्ली में तो अरविंद केजरीवाल ही चलेगा। यहां तक कि चुनाव के वक्त बीजेपी कार्यकर्ताओं तक ने अरविंद केजरीवाल के पोस्टर सड़कों पर टांग दिए थे। चलिए आपको बताते हैं कि ऐसी कौन सी सौगातें अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को दीं, कि दिल्ली का दिल सिर्फ केजरीवाल के लिए धड़कता है-

महिलाएं बस में फ्री

दिल्ली में महिलाएं बसों में फ्री यात्रा कर सकती हैं। यह अरविंद केजरीवाल की देन है। सीधे तौर पर इससे दिल्ली की हर महिला प्रभावित हुई। हालांकि इससे दिल्ली के रेवेन्यू पर असर पड़ा लेकिन लगातार तीसरी बार दिल्ली पर काबिज़ होने में केजरीवाल को इस योजना ने बहुत फायदा पहुंचाया।

200 यूनिट तक फ्री बिजली

केजरीवाल आम जन की नब्ज जानते समझते हैं। जब बुनियादी जरूरतों की बात आती है तो बिजली पानी सड़क सबसे पहले आते हैं। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली को 200 यूनिट तक फ्री कर दिया। इतना ही नहीं 200 से 400 यूनिट बिजली पर सब्सिडी दी। ऐसे में किराए के मकान में रहने वाले, छोटे उपभोक्ताओं को इसका सीधा फायदा मिला। विपक्षी पार्टियों ने इस योजना को लेकर केजरीवाल को घेरने की खूब कोशिश की, लेकिन घेर नहीं पाए।

निशुल्क पेयजल योजना

कोसों तक फैली दिल्ली में पेयजल हमेशा मुद्दा रहा है। केजरीवाल ने दिल्लीवालों को 20 हजार लीटर हर महीना फ्री पेयजल दिया। इस योजना ने दिल्ली की जनता के दिलों में केजरीवाल के लिए जगह को और पुख्ता कर दिया।

निजी स्कूलों की मनमानी पर शिकंजा

केजरीवाल सरकार ने शिक्षा को सस्ता और सुगम बनाया। साथ ही क्वालिटी शिक्षा पर भी जोर दिया। निजी स्कूलों पर फीस को लेकर कड़ा नियंत्रण किया। सरकार के सामने प्राइवेट स्कूलों को घुटने टेकने पड़े, बढ़ी हुई फीस वापस लेनी पड़ी। साथ ही आरटीई के तहत तमाम प्राइवेट स्कूलों को 25 फीसदी सीटें गरीब बच्चों को लिए छोड़ने प्रावधान कड़ा किया गया।

प्राइवेट जैसे सरकारी स्कूल

केजरीवाल ने सरकारी स्कूलों का नक्शा ही बदल दिया। सरकारी स्कूलों का वातावरण उन्नत हो गया। प्राइवेट स्कूल जैसे सरकारी स्कूल नजर आने लगे हैं। क्लासरूम बेहतरीन और तमाम सुविधाओं से लैस हो गए। विपक्षी पार्टियों ने इस योजना की पोल खोलने की जी-तोड़ कोशिश की, लेकिन केजरीवाल का काम आम जन के गले उतर गया था। सरकारी स्कूलों के कायाकल्प की कहानी दुनिया के कोने कोने में फैली, यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पत्नी मेलानिया ने दिल्ली की सरकारी स्कूल का दौरा कर ‘हैप्पीनेस क्लास’ को समझने की कोशिश की।

उच्च शिक्षा के लिए स्टूडेंट लोन

दिल्ली जैसे महानगर में हर छात्र को बेहतरीन उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना देखना अरविंद केजरीवाल ने सिखाया। स्टूडेंट लोन अरविंद केजरीवाल ने शुरू किया और छात्रों को बैंक से 10 लाख तक का लोन मुहैया कराया। इससे पहले ये राशि बहुत कम थी। सरकार ने स्‍कूलों में पढ़ाने वाले गेस्‍ट टीचर, आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय में भी बढ़ोत्‍तरी की

मोहल्ला क्लीनिक और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं

ये ऐसी योजना रही जिसकी नकल बाकी कई राज्यों ने की है। विपक्षी पार्टियां केजरीवाल को समझ नहीं सकीं, वे उनके काम में नुक्स निकालने की भरपूर कोशिशें करती रहीं, लेकिन मोहल्ला क्लीनिक जैसी योजनाओं ने केजरीवाल की लोकप्रियता को रत्ती भर भी नीचे नहीं आने दिया। मोहल्ला क्लीनिक में आम लोगों को मुफ्त चिकित्सा सेवाएं मिल रही हैं। तमाम तरह की जांचों को भी बहुत ही सस्ता किया गया। सड़क पर दुर्घटना होने पर घायल होने वालों के लिए फरिश्ता योजना लाकर उनके इलाज का खर्च वहन किया। जो लोग घायलों को अस्पताल पहुंचाने का कर्तव्य करते हैं, उन्हें केजरीवाल सरकार पुरस्कृत करती है।

श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी स्केल

केजरीवाल का फोकस चूंकि आम जन पर रहा है। इसलिए दिल्ली में मजदूरों की तादाद को देखते हुए उन्होंने कई काम किए। न्यूनतम मजदूरी जो 10 हजार से भी कम थी उसे 14 हजार रुपए प्रतिमाह किया।

बहरहाल, चुनावी जीत कभी अरविंद केजरीवाल के एजेंडे में नहीं रही। अभी भी वे यही कहते हैं कि हम होंगे कामयाब। उन्हें पता है, भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी लड़ाई लम्बी चलेगी।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा