- 19 बागियों की सदस्यता हो सकती है खत्म
- सरकार को 19 सीटों पर कराना होगा उपचुनाव
- उपचुनाव में होगी पायलट – गहलोत गुट की असली परीक्षा
फोकस भारत। कांग्रेस से 19 बागियों की छुट्टी की रास्ता साफ हो गया है। गहलोत सरकार के लिए सबसे बड़ी समस्या इन 19 बागियों के क्षेत्रों में उपचुनाव को लेकर है। अभी तो कोरोना काल चल रहा है, लेकिन 19 बागियों की सदस्यता रद्द होते ही उपचुनाव की खींचतान से गहलोत और डोटासरा को गुजरना होगा। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जाट नेता डोटसरा की नियुक्ति कर गहलोत ने दिखा दिया कि डैमेज कंट्रोल और जातिगत समीकरण उनकी उंगलियों पर रहते हैं। फिर भी विश्वेंद्र सिंह जैसे कद्दावर का विकल्प वे किसे बनाएंगे? एसटी में अपनी धाक रखने वाले रमेश मीणा के सामने किसे उतारेंगे ? दौसा, महुआ और बांदीकुई में बाजी पलटने में सक्षम मुरारीलाल मीणा का कोई ऑप्शन है जादूगर के पास ? हेमाराम चौधरी, रामनिवास और मुकेश भाकर की जाट तिकड़ी के सामने क्या डोटासरा का दांव चल पाएगा ? और सबसे बड़ा सवाल क्या उनके पास कोई एक भी ऐसा नेता है जो अब सचिन पायलट को उनके इलाके और जमीन पर पटखनी दे सके ?
दरअसल, उपचुनाव के हालात गहलोत के लिए ज्यादा सिरदर्द वाले होंगे। सचिन पायलट के साथ सहानुभूति है और भाजपा भी कोशिश करेगी कि वह अपनी भूमिका सचिन पायलट के समर्थन में रखे। उपचुनाव की तारीखों का एलान होते ही बड़ी तादाद में वे प्रत्याशी भी चुनावी टिकट की मांग करने लगेंगे जो काफी साल से उन इलाकों में सक्रिय हैं लेकिन बड़े चेहरों के कारण उन्हें टिकट से वंचित रहना पड़ा, अब उनके पास मौका होगा लेकिन जिन्हें इस बार भी मायूसी मिलेगी उनके पायलट खेमे से जुड़ने का अंदेशा भी उभरेगा। फिर विश्वेंद्र सिंह, रमेश मीणा, मुरारीलाल मीणा, हेमाराम चौधरी और सचिन पायलट खुद इतने बड़े नेता हैं कि ये बाजी पलटने में सक्षम हैं, अगर सभी सीटों पर पायलट का पलड़ा भारी पड़ा तो निश्चित है कि गहलोत सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी।
ऐसे में उपचुनाव के बहाने चुनाव से पहले ही दोनों गुटों के दमखम की परीक्षा होगी। गहलोत के लिए सबसे बड़ी मुसीबत सचिन का तोड़ ढूंढना रहेगा। कर्नल बैंसला जैसी शख्सियत उन्हें टक्कर नहीं दे पाएगी।
बहरहाल, अशोक गहलोत के लिए एक अच्छी बात ये है कि अब वे दिमागी तौर पर फ्री हैं, उनकी राह का सबसे बड़ा कांटा हट गया है और अब वे पूरी ताकत से फैसले ले सकते हैं। पार्टी में भी एक मैसेज ये गया है कि बगावत करने वाले बख्शे नहीं जाते।
रिपोर्ट – आशीष मिश्रा