फोकस भारत। मौजूदा वक्त में नरेन्द्र मोदी की सरकार पूरी तरह से घिर गई है। इन दिनों पूरे देश में विभिन्न उच्च न्यायालय केन्द्र पर जमकर प्रहार कर रहे है। कोविड संकट के कुप्रबंधन और इससे निबटने के गलत तरीकों से रोजाना हजारों लोगों की जान जा रही है। इससे उच्च न्यायालय क्रोध से आगबबुला हो गए है। अब वे सरकार को खरी खरी सुनाने और उसका सामना करने, गलत को गलत लिखने में डर नहीं रहे है। आलम यह है कि अब कोरोना की जंग में सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग राज्यों के हाईकोर्ट को उतरना पड़ा है। पिछले एक महीने में कई मर्तबा, जब कोरोना से हो रही मौतों को लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने वह सब कह दिया, जो शायद इससे पहले किसी भी सरकार को न सुनना पड़ा हो। जी हां इस स्थिति की शुरुआत तब हुई जब मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को हत्यारा बताया था क्योंकि उसने कोविड महामारी के दौरान पश्चिम बंगाल में चुनाव कराने और वो भी 8 चरणों में चुनाव कराके उसे लम्बे वक्त तक खींचा।
- सुप्रीम कोर्ट ने भी मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ दायर याचिका में हाईकोर्ट के प्रति सहानुभूति पूर्ण रुख रखा।
- दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्रीय सरकार को लताड़ा, अस्तपतालों में ऑक्सीजन व अन्य दवाईयों आदि उपलब्ध न कराने के मुद्दे पर ।
- दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र को खरी खरी सुनाते हुए कहा कि किसी शुतुरमुर्ग की तरह आप भले ही अपना सिर रेत में छिपा ले लेकिन अदालत ऐसा नहीं करेगी।
- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी यूपी में अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध न होने से हुई मौतों को जनसंहार की संज्ञा दी। इलहाबाद हाईकोर्ट ने कोविड के दौरान मतगणना में लगे 750 शिक्षकों की हुई मौत की भी जांच करने के आदेश दिये व टीवी फुटेज मांगा।
- पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारों से पूछा कि किस अथॉरिटी व पावर से वहां गौ रक्षकों को घर में घुसकर तलाशी लेने के अधिकार दिये गए है।
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