नई पीढ़ी को जगह नहीं देना और पुरानी पीढ़ी के नेताओं का सत्ता से चिपके रहने की प्रवृति इस पराजय की जड़ में हैं

फोकस भारत। राजस्थान के जिला परिषद और पंचायत समिति चुनावों में सत्ता के सिंहासन पर काबिज कांग्रेस पार्टी को प्रदेश के 21 जिलों में करारी हार मिली है भाजपा के हाथों।  राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि कांग्रेस के अनुभवी नेता किस तरह उस पार्टी को दफनाने के लिए कैसे कब्र खोद सकते है। जिस पार्टी ने उन्हें पद और प्रतिष्ठा  के साथ अधिकार दिये है। ये कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इन नेताओं ने कांग्रेस को वास्तव में मृत्यु शैया पर पहुंचा दिया है।

राजस्थान में इतिहास अलग ही होता, अगर मुख्यमंत्री गहलोत ये कदम उठाते?

राजनैतिक पंड़ित मानते है कि तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत के पास भारी अनुभव है और उन्हें ईमानदारी से इसे काम मे लेते हुए मार्गदर्शक की भूमिका के लिए एक उपयोगी साधन बन जाना चाहिए था। जिसके लिए आने वाली पीढ़ियां उनको सदेव याद करती। लेकिन कांग्रेस को कब्र में धकेलने से वे उन लोगों की श्रेणी मे आ जायेंगे, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के साथ विश्वासघात किया है। कांग्रेस की पराजय ने भाजपा नेता और केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को यह कहने का मौका दे दिया कि इन चुनावों के परिणामों से इस बात की पुष्टि हो गई कि उन तीनों विवादस्पद कृषि कानूनों को किसानों क समर्थन प्राप्त है।  जिनके खिलाफ देश के किसान दिल्ली में आंदोलन कर रहे है। प्रेषक कहते है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी के इस निकृष्ट प्रदर्शन के लिए अकेले जिम्मेदार है।  देखा जाए तो पूरे देश में ही कांग्रेस की यही कहानी है कि युवा नेताओं को पार्टी का भविष्य संवारने का अवसर न देना और सत्ता व पद से चिपके रहना । जिसकी वजह से देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी  को आत्मघात और विनाश के रास्ते पर धकेल दिया है। जहां पार्टी की वर्तमान स्थिति के लिए आंशिक रुप से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। वहीं प्रांतीय नेता भी अपने स्वार्थ के लिए केन्द्रीय नेतृत्व के बराबर जिम्मेदार जरुर है।  लिहाजा कहा जाता है कि राजनीति के क्षेत्र में कब्र में पैर होने पर भी उसका मोह नहीं छोड़ा जाता है। मसलन युवा और नई पीढ़ी के नेताओं को जगह नहीं देना और पुरानी पीढ़ी के नेताओं का सत्ता से चिपके रहने की प्रवृति इस पराजय की जड़ में है। राजस्थान में इतिहास अलग होता अगर तीन बार के सीएम रहे अशोक गहलोत नई पीढ़ी को मौका देते और युवा पीढ़ी के पथ- प्रदर्शक के रुप में सामने आते?

रिपोर्ट- फोकस भारत डेस्क