ऐसे थे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी

  • अटल बिहारी वाजपेयी की दूसरी पुण्यतिथि
  • भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के किस्से 
  • क्यों सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं वाजपेयी

फोकस भारत। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज दूसरी पुण्यतिथि है। हो सकता है कि  प्रधानमंत्री के तौर पर मौजूदा समय में मोदी का जलवा हो। लेकिन नरेंद्र मोदी को वह सुख नहीं मिल सकता जो अटल बिहारी वाजपेयी ने उठाया। वे विपक्ष के भी चहेते थे। संसद में जब अटल जी बोलते थे तो उनके विरोधी भी ठहाके लगाकर मेजें थपथपाया करते थे। देश को परमाणु सम्पन्न बनाने की दिशा में अटल बिहारी वाजपेयी ने मजबूत कदम उठाया तो पड़ोसी मुल्क से रिश्ते सुधारने के लिए बस से लाहौर तक की यात्रा भी की।

अटल का जीवन

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्‍वालियर में एक स्कूल शिक्षक के घर हुआ। वे  स्वभाव से नटखट थे, कंचे खेलने का बेहद शौक था उन्हें। घर कमलसिंह के बाग में था । खाने पीने के शौकीन थे दौलतगंज की भजिया, गुजिया और चिवड़ा खूब भाता था अटल बिहारी को। प्रारंभिक पढ़ाई ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज ( लक्ष्मीबाई कॉलेज) और कानपुर के डीएवी कॉलेज से हुई। राजनीतिक विज्ञान में उन्होंने एमए किया था और पत्रकारिता से करियर की शुरुआत। उन्होंने कई मैग्जीन का संपादन भी किया- राष्ट्र धर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन इनमें प्रमुख हैं। बचपन से ही उनके दिल में देशभक्ति का जज्बा था और गांधीजी का प्रभाव। साल था 1942 और इसी साल गांधीजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था। अटल इस दौरान ग्वालियर की गलियों में झंडाबरदारी किए घूमते। पुलिस की उन पर निगाह थी। कभी भी धरे जा सकते थे। उनके पिता कृष्णबिहारी चूंकी सरकारी नौकर थे लिहाजा कोतवाल ने बुलाकर समझाया- अटल को संभाल कर रखो, आंदोलनों में आगे रहता है, उठाकर जेल में पटक दिया तो हमारी जिम्मेदारी न होगी। पिता कृष्णबिहारी ने अटल को अपने पैतृक गांव आगरा के बटेश्वर भिजवा दिया।  लेकिन अटल कहां मानने वाले थे, वहां भी उनका आंदोलन जारी रहा। पुलिस ने सच में धर दबोचा और 24 दिनों के लिए जेल में डाल दिया। उनकी उम्र कम थी इसलिए उन्हें बच्चा बैरक में रखा गया। पत्रकार से नेता बने अटल बिहारी वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली, 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया। लखनऊ से वे चुनाव हार गए, मथुरा में जमानत जब्त हो गई लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीते और लोकसभा में पहुंच गए। इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और अगले पांच दशक राजनीति का सिरमौर बने रहे।

अटल बिहारी वाजपेयी के किस्से

होने को तो राम…

संसद चल रही थी। राम मंदिर मुद्दे पर सरकार घिरी हुई थी। चारों तरफ से सवालों की बौछार हो रही थी। अटल बिहारी जाने पहचाने अंदाज में जवाब दे रहे थे। रामविलास पासवास उस समय भाजपा से अलग थे और विपक्ष में थे। रामविलास ने राम का नाम लेकर तीखी टिप्पणी की, कहा कि आप यूं ही राम-राम करते हैं, राम तो यहां है, राम विलास पासवान में। अटल बिहारी जैसा वाकपटु पूरे सदन में कोई नहीं था, राम विलास के समर्थन में मेजें थपथपाई जा रही थीं, अटल बिहारी वाजपेयी ने जवाब दिया- रामविलास जी, होने को तो राम हराम में भी होता है। उनका ये कहना था और सदन में ठहाके गूंज पड़े। ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी।

सादी तो मैंने की ही नहीं…

अटल जी को  ठंडाई का बड़ा शौक था। वे कभी लखनऊ जाते तो राजाजी की दुकान की ठंडाई पीना नहीं भूलते। उनके साथ कोई नेता या मित्र होता तो उसे भी ठंडाई का स्वाद चखाने अपने साथ ले जाते। ठाठ से सड़क पर ही खड़े होकर ठंडाई पीते। एक बार वे अपने मित्र के साथ ठंडाई पीने पहुंचे। ठंडाई तैयार होकर हाथों में थी। घूंट पिये जा रहे थे और चुनावी चर्चा भी साथ ही चल रही थी। इस बीच ठंडाई बनाने वाले दुकानदार त्रिपाठीजी ने टोका, पूछा ठंडाई कैसी रही, सादी या….त्रिपाठीजी अपना वाक्य पूरा करते इससे पहले ही अटलजी ने ठहाका मारकर कहा- सादी तो मैंने की ही नहीं। ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी।

तुम तो बड़े चालाक निकले…

जनसंघ ने बलिया से वयोवृद्ध कार्यकर्ता सुधाकर मिश्र को चुनाव में द्वाबा से प्रत्याशी बनाया गया था। अटल बिहारी अब तक बड़े नेताओं में गिने जाते थे। उस समय ये परंपरा थी कि जिस प्रत्याशी के समर्थन में कोई बड़ा नेता प्रचार करने आएगा तो उसे पार्टी फंड के लिए 11 हजार रुपए की थैली सौंपी जाएगी। अटल बिहारी वाजपेयी ने सुधारकर मिश्र के समर्थन में धुआंधार प्रचार किया और तेरह जनसभाएं कर डाली। तमाम सभाओं के बाद भी जब फंड की थैली नहीं पहुंची तो वाजपेयी ने मिश्र को बुलाकर कहा- भई मिश्रजी, तुम तो बड़े चालाक निकले, हमसे भरपूर मजदूरी कराई लेकिन मजदूरी नहीं दी। ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी

(मुजफ्फर अली)

सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है…

बात है साल 1996 की। ये वो साल है जब लोकसभा चुनाव हुए थे। अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में थे। उन्हें टक्कर देने उतरे थे फिल्म निदेशक मुजफ्फर अली। चुनावी माहौल में एक-दूसरे पर सियासी टिप्पणियां होती ही हैं, लेकिन मुजफ्फर अटल बिहारी वाजपेयी के कायल हो चुके थे। जैसा कि पहले से नजर आ रहा था, अटल बिहारी की जीत हुई और उनके नेतृत्व में बीजेपी पहली बार केंद्र की सत्ता पर काबिज हुई। इसके बाद जब भी मुजफ्फर अली अटल से मिलते तो अटल बिहारी एक लाइन गुनगुना कर उनका स्वागत करते- सीने में जलन, आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है। अपने विरोधियों को जलाने का उनका ये तरीका भी नायाब था। दरअसल मुजफ्फर अली की निर्देशित गमन फिल्म का गीत ही अटलजी गुनगुनाया करते थे और मुफफ्फर को उनकी हार की याद दिलाया करते थे। ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी।

तस्वीर वापस लगा दो…

अटल बिहारी वाजपेयी पक्के संघी थे। पहली दफा जब वे विदेश मंत्री बने तो कार्यभार संभालने दफ्तर पहुंचे। वे जब भी विदेश मंत्री के दफ्तर गए तब उन्हें नेहरू जी की तस्वीर दिखाई देती थी। लेकिन जब विदेश मंत्री के तौर पर कार्यालय पहुंचे तो तस्वीर हटा दी गई थी। दीवार सूनी देखकर अटलजी ने पूछा –यहां से तस्वीर कहां गई। अर्दली से जवाब मिला कि आप जनसंघ से जुड़े हैं, तस्वीर कांग्रेस के प्रधानमंत्री की थी, इसलिए हटा दी। अटलजी ने कड़ककर कहा- जनसंघ से तो मैं जुड़ा हूं, नेहरू जी से हमारी पार्टी के वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन ये मत भूलो कि वे देश के प्रधानमंत्री रहे हैं, तस्वीर वापस वहीं लगा दो। तस्वीर उसी जगह दोबारा लगा दी गई। ये बातें 1977-78 की हैं, सादगी का आलम ये था कि विदेश मंत्री बनने के बाद भी ग्वालियर पहुंचने के बाद साइकिल पर अपने साथी के साथ बाजार में घूमते थे। राजनीति में ऐसे नेता कम मिलते हैं। ऐसे थे अटल बिहारी वाजपेयी।

अविवाहित हूं, कुँवारा नहीं…

अटल बिहारी वाजपेयी अक्सर अपने अविवाहित होने पर विपक्ष ने खूब ताने सुनते थे और हंसकर उनका जवाब दिया करते थे। वे कहते थे कि मैं अविवाहित हूं, कुंवारा नहीं। लोग इसे उनका मजाक समझा करते थे लेकिन उन पर लिखी गई किताब अटल बिहारी वाजपेयी-ए मैन ऑफ ऑल सीजंस में तफ्सील के साथ उनकी इस पंक्ति का खुलासा किया गया है। किताब के मुताबिक कॉलेज के दौरान अटलजी की एक महिला मित्र थी, नाम था राजकुमारी कौल। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में दोनों साथ पढ़े थे। दोनों एक दूसरे को पसंद भी करते थे लेकिन अटल बिहारी राजनीति की राह पर निकल गए। जनसंघ से जुड़े हुए ही थे, लिहाजा आजीवन विवाह न करने का संकल्प ले लिया। इस संकल्प को उन्होंने निभाया लेकिन राजकुमारी ने भी अपना प्रेम आजीवन निभाया। राजकुमारी की शादी प्रोफेसर ब्रजनारायण कौल से हुई थी। राजकुमारी ने पति को बता दिया था कि वे अटल से लगाव रखती हैं। लेकिन वह रिश्ता इतना पवित्र था कि ब्रजनारायण कोई आपत्ति नहीं कर सके। राजकुमारी का देहांत 2014 में हो गया था। अटल बिहारी वाजपेयी ने विवाह नहीं किया लेकिन उनकी दत्तक बेटी हैं नमिता भट्टाचार्य। ये वही नमिता हैं जिन्होंने अपने पिता अटल बिहारी वाजपेयी को मुखाग्नि दी और बेटे की तरह तमाम कर्मकांड किए।

 

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा