- पायलट ने अकड़ दिखाई, अलग हो गए
- डोटासरा को झुकने का फायदा मिला
- आम कांग्रेसी के हाथ क्या लगा ?
पीछे तस्वीरों में राजीव गांधी गवाह हैं, सोनिया गांधी गवाह हैं। दोनों की स्माइल बता रही है कि प्रदेश अध्यक्ष का मुख्यमंत्री के चरणों की ओर इतना झुकाव आनंददायक है और अब कांग्रेस का भला होने वाला है, ये भूल है।
मुख्यमंत्री सत्ता की बागडोर संभालता है और प्रदेश अध्यक्ष संगठन की। मैं आज भी कहता हूं कि कांग्रेस को कभी भी सचिन पायलट जैसा प्रदेश अध्यक्ष नहीं मिलेगा।
उस बंदे ने ऐसे समय पर संगठन में ऊर्जा फूंकी थी जब कांग्रेस प्रदेश से देश तक दुर्गति के दौर से गुज़र रही थी।
गोविंद डोटासरा झुक सकते हैं इसलिए अच्छे प्रदेश अध्यक्ष साबित हो सकते हैं, इस पर मुझे संदेह है। राजस्थान के एक आईपीएस किशन सहाय ने 15 जुलाई को एक आदेश निकाल कर अपने कमांडेंट को नाम के साथ जाति का जिक्र हर जगह से हटाने का आदेश दिया है, न सीने पे, न गेट के बाहर, न टेबल पे और न बोलचाल में। काश राजनीतिक दल ये कर पाते। यहां सिर्फ जातिगत समीकरण बिठाए जाते हैं और प्रतिभा को दरकिनार कर दिया जाता है। किसी पद की लालसा कोई प्रभावशाली और प्रतिभावान व्यक्ति ही कर सकता है, सचिन कर सकता है, डोटासरा नहीं कर सकता।
देश में वेन्टीलेटर्स की भारी कमी है, कोरोना ने कई परतें खोली हैं। बीच बीच में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत की खबरें आती थीं, कोटा से आई, गोरखपुर से आई, बिहार से आईं, लेकिन लौ जली और बुझ गयी। कोरोना में अस्पतालों में ऑक्सीजन हो या न हो लेकिन भाजपा में भरपूर है, इसीलिए कांग्रेस में किसी का दम घुटता है तो वह भाजपा की तरफ भागता है। ज्योतिरादित्य को ले लीजिए, मिलिंद देवड़ा को ले लीजिए, सचिन का नाम अभी नहीं ले सकते लेकिन भाजपा ने उनके चारों तरफ ऑक्सीजन के सिलेंडर बिखेर रखे हैं।
सवाल ये कि कांग्रेस में दम क्यों घुट रहा है? दम इसलिए घुट रहा है कि वहां वेंटिलेशन नहीं है। घर को हवादार होना चाहिए। वरना घुटन पैदा होती है। सचिन जैसी प्रतिभाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। ज़रूरी नहीं कि बच्चों की हर ज़िद पूरी की जाए, लेकिन बड़े जब उन्हें सरेआम नालायक निकम्मा नाकारा कह देते हैं तो बच्चे पर गलत असर पड़ता है, बाल मनोविज्ञान पढ़ लीजिये।
अशोक गहलोत को जहां गार्जियन की भूमिका निभानी थी, वहां वे प्रतिद्वंद्वी की भूमिका में आ गए।
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के आवासों के बीच 50 कदम की भी दूरी नहीं है। इसके बाद भी अगर गहलोत ये कहते हैं कि डेढ़ साल से कोई संवाद नहीं था, तो ये सरकार का फेल्योर है।
वेंटिलेशन बहुत ज़रूरी है। सचिन की बातें सुनी जानी चाहिए थीं, उन्हें तवज्जो मिलनी चाहिए थी। गहलोत तो ये डर ही लेकर बैठ गए कि सचिन सीएम बनना चाहता है, वह षड्यंत्र कर रहा है।
किसी प्रेमी को वफादार प्रेमिका पर जब उसके चरित्र पर शक होने लगता है, तब प्रेमिका के मन में क्या ये सवाल नहीं उठते होंगे कि वफ़ा का सिला जब शक ही मिल रहा है, तो वफ़ा का फायदा क्या, इससे अच्छा है बेवफ़ा हो जाना।
गहलोत का डर वाजिब था भी और नहीं भी। वाजिब इसलिए ठहराया जा सकता है कि सचिन का कनेक्शन भाजपा से है ये जगजाहिर हो गया, वाजिब नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि सचिन ने सिर्फ नेतृत्व बदलने की बात की है, पार्टी नहीं। अगर वे चाहते तो डेढ़ साल में सीएम को मुद्दा बनाकर अपने पक्ष में लहर और उन्माद फैला सकते थे।
गहलोत कहते हैं कि अगर मुझे जरा भी लगता कि प्रदेश की जनता मुझे सीएम नहीं देखना चाहती तो मैं इस्तीफा दे देता, लेकिन घर घर से मुझे सीएम बनने की आवाज़ें उठ रही थी।
ये कैसा अहंकार है महोदय। कांग्रेस कब से मुखोटे पहनने लगी। लोगों ने सचिन के नाम पर भी कांग्रेस को वोट किया है, बाकी तमाम बड़े चेहरे भी वोटर लेकर आये हैं, राहुल और सोनिया के नाम पर भी कुछ वोट मिले होंगे। सिर्फ अशोक गहलोत ही तो कांग्रेस नहीं है।
अशोक गहलोत कितने मोर्चों पर लड़ रहे हैं, ये बात मैं अपने पिछले लेख में कर चुका हूं, सचिन को नालायक निकम्मा नकारा कहकर अशोक गहलोत ने क्या खोया इसका भी जिक्र कर चुका हूं।
अपने पत्रकार साथियों से भी कह चुका हूं कि घटनाओं को व्यापक दृष्टि से देखने की कृपा करें। भाजपा का राष्ट्रवाद और मोदी की ईमानदारी पर भी मैं सकारात्मक लिख चुका हूं। भाजपा की संकीर्णता को भी उजागर करता रहता हूँ, केंद्र के द्वारा सरकारी कंपनियां बेचा जाना भी ज्वलंत मुद्दा है।
पत्रकार भी पक्ष या विपक्ष हो गए हैं यह चिंतनीय है। सच्चा समाजवाद किताबी बात हो गयी है।
वेंटिलेशन हर जगह होना चाहिए। घर में, समाज में, मीडिया में, राजनीति में, राजनीतिक दलों में, सरकारों में। जहां सांस लेने में दिक्कत हो वहां से आदमी भागने की ही कोशिश करता है। समय रहते वेंटिलेशन नहीं किया गया तो आप जानते हैं, इस देश में वेन्टीलेटर्स की कितनी भयंकर कमी है।
खैर, कश्मीर इसका उदाहरण है। सरकार ने वहां वेंटिलेशन के सारे रास्ते बंद कर दिए। कश्मीरी घुट रहे हैं, इसलिए पाकिस्तान की हवा उन्हें सुहानी लगती है। इसलिए वेंटिलेशन देश की शर्त पर नहीं किया जा सकता। दीवार में कुछ छेद निकाले जा सकते हैं, समय भांप कर मोखियाँ निकाली जा सकती हैं, मोखियों को खिड़कियों में तब्दील किया जा सकता है, और जब आपको अपने वेंटिलेशन पे भरोसा हो जाये तो झरोखा भी निकाला जा सकता है।
अशोक गहलोत जी, आप सचिन की सदस्यता खत्म करने के लिए विधानसभा सत्र बुलाना चाहते हैं। सच्चे मन से सचिन को ही वापस बुलाने की कोशिश करते तो सदन बुलाने के लिए राजभवन तक चप्पल नहीं घिसनी पड़ती। और शायद ये कोशिश कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होती।
डोटासरा जैसे झुकने वाले लोग पार्टी की रीढ़ में दर्द ही पैदा करते हैं।
प्रदेश के आम कांग्रेसी से पूछिए। वो आपको मुख्यमंत्री तो देखना चाहता है, लेकिन इसी शर्त पर कि संगठन का अध्यक्ष सचिन पायलट ही हो, और पूरे सम्मान के साथ हो।
लेखक- आशीष मिश्रा
(ये लेखक के निजी विचार हैं।)