फोकस भारत। बात ज्यादा पुरानी नहीं है। हाल ही में देश की सियासी राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई से मजदूरों का पलायन पूरे देश ने देखा। दूसरे शहरों की बात तो छोड़ दीजिए, कोरोनाकाल में ये समृद्ध महानगर भी श्रमिकों का बोझ नहीं उठा सके और सड़कें मजदूरों की अंतहीन कदमताल की गवाह बनीं। खैर, मुद्दा यह नहीं, मुद्दा उस बवाल का है जो कुवैत के एक संभावित कानून को लेकर उठा हुआ है। खाड़ी देश कुवैत एक ऐसे विधेयक को अपनी नेशनल असेंबली में पास कराने की फिराक में है जिसे मंजूरी मिलते ही वहां रह रहे लगभग 8 लाख भारतीयों को कुवैत छोड़कर निकलना होगा। लेकिन यह सब अचानक नहीं, बल्कि चरणबद्ध तरीके से होगा।
प्रवासियों को देशनिकाला क्यों ?
दरअसल, छोटे से देश कुवैत की कुल जनसंख्या फिलहाल 43 लाख से कुछ ज्यादा है। कच्चे तेल और पेट्रो उत्पाद कुवैत की रीढ की हड्डी रहे हैं। लेकिन हाल ही में क्रूड ऑयल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट और कोरोनाकाल ने कुवैत को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया है। समस्या यह है कि कुवैत की कुल आबादी में मूल निवासियों की जनसंख्या महज 13 लाख है जबकि विदेशी प्रवासियों की संख्या 30 लाख के आस-पास है। उस पर भी वहां सबसे ज्यादा प्रवासी अकेले भारतीय ही हैं जिनकी संख्या 14 लाख से भी पार चली गई है। कहने के मानी ये हैं कि कुवैत में कुवैतियों से ज्यादा भारतीय हो गए हैं। कोरोना संकट के मद्देनजर कामगारों में कटौती करने का सवाल उठा तब यह तस्वीर साफ हुई कि कुवैत में 70 फीसदी आबादी विदेशी कामगारों की हैं जिसके कारण यह छोटा देश कई तरह की समस्याओं से घिर सकता है। इस अंदेशे को जाहिर करते हुए कुवैत नेशनल असेंबली की विधि समिति ने देशों के आधार पर प्रवासियों का कोटा तय करने के बिल को संविधान के दायरे में करार दे दिया था। इसके मुताबिक कुवैत में भारतीयों की संख्या कुल आबादी के 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। बिल को अगर नेशनल असेंबली में कानूनी जामा पहना दिया जाता है तो करीब 8 लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है।
कुवैत में विदेशियों की आबादी 70 फीसदी
हाल ही में हालात को देखते हुए कुवैत के प्रधानमंत्री शेख सबाह अल खालिद ने 70 फीसदी तक पहुंची प्रवासी आबादी को 30 फीसदी पर समेटने का प्रस्ताव रखा था। हालांकि असेंबली अध्यक्ष मरजक अल गहनेम ये जाहिर कर चुके हैं कि यह काम चरणबद्ध तरीके से होगा। प्रस्ताव में यह भी जिक्र है कि ‘काम के कामगारों’ को कुवैत में रहने दिया जाए और अकुशल श्रमिकों को छांट कर बाहर का रास्ता दिखाया जाए। कुवैत में भारतीय दूतावास के मुताबिक भारतीयों की पहुंच कुवैती प्रशासन तक है, यहां 28 हजार इंडियन्स सरकार में नर्स, तेल कंपनियों में इंमजीनियर और वैज्ञानिक हैं। पांच लाख से ज्यादा भारतीय कामगार निजी क्षेत्रों में कार्यरत हैं जबकि कुछ संख्या कामगार भारतीयों पर आश्रित और छात्रों की भी है।
कुवैत की उलझन को इस लिहाज से भी समझा जा सकता है कि वहां कोरोना रोगियों की संख्या 50 हजार के पार चली गई है और लगभग चार सौ लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें अधिकतर मरीज भारतीय श्रमिक ही हैं। भारत के लिए कुवैत का यह विधेयक झटका इसलिए भी है क्योंकि साल 2018 में कुवैत में रह रहे कामगारों ने 480 करोड़ डॉलर की राशि कमाकर भारत भिजवाई थी। कोरोना के संकटकाल में दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर अपने ही देश के मजदूरों को नहीं संभाल पाए, ऐसे में उस छोटे से मुल्क से उम्मीद कैसे की जा सकती है जिसकी आबादी इन महानगरों से भी बहुत बहुत कम है।
फिलहाल बिल को संबंधित समिति को सौंपने की तैयारी चल रही है जिससे इस पर विस्तृत योजना बनाई जा सके।
रिपोर्ट- आशीष मिश्रा