- एक आईपीएस की अभिनव पहल
- चर्चा में आईपीएस किशन सहाय का ‘आदेश’
फोकस भारत। भारत में सदियों से समाज को जातियों ने अपने मकड़जाल में जकड़े रखा। संविधान ने जातीय भेदभाव को दूर करने के प्रयास लिखित रूप से किये लेकिन व्यवहारिक काम समाज को करना था। आजादी के 70 साल बाद भी हमारा समाज जातीय भेदभाव और जातीय अहंकार से मुक्त नहीं हो पाया है। ऐसे में समाज को सही दिशा दिखाने के लिए कभी कभी कुछ लोग मार्गदर्शक बनकर उभरते हैं और अपनी अभिनव पहलों से समाज के सामने एक मिसाल कायम कर देते हैं। इसी कड़ी में एक नाम और जुड़ गया है, यह नाम है आईपीएस किशन सहाय का।
किशन सहाय जी राजस्थान में आर्म्ड बटालियन्स द्वितीय जयपुर के अतिरिक्त महानिदेशक हैं। अपने विचारों को लेकर वे सुर्खियों में रहते हैं। उन्हें ईश्वर, अल्लाह, गॉड में यकीन नहीं है, विश्वास है तो बस इंसानी मंसूबों और कोशिशों में, साथ ही वे अंधविश्वासों और ढकोसलों पर भी जबरदस्त प्रहार करते रहते हैं। हाल ही 15 जुलाई को उन्होंने अपने कार्यालय से एक आदेश जारी किया, जिसके बाद इस आदेश की चर्चा न केवल पुलिस महकमे में होने लगी है, बल्कि सोशल मीडिया और पत्रकारिता जगत में भी उनके आदेश के हवाले दिए जा रहे हैं।
दरअसल 15 जुलाई को अपने समस्त कमांडेंट्स, अधिकारियों, कर्मचारियों, हाडीरानी महिला बटालिन और एमसीबी खेरवाड़ा के नाम उन्होंने एक आदेश जारी करते हुए निर्देश दिया कि कोई भी अपनी वर्दी के बैज, कमरे के बाहर नेमप्लेट या टेबल पर रखी नेम प्लेट में अपनी जाति का उल्लेख न करे, बल्कि अपने गोत्र का भी उल्लेख न करे, कार्यालयी पत्र व्यवहार में भी जाति का जिक्र न किया जाए। उन्होंने आदेश में कहा कि एक दूसरे से बात करते समय सामान्य व्यवहार में या फिर आम जन से बात करते समय भी जाति या गोत्र का इस्तेमाल न किया जाए।
उन्होंने सलाह दी कि कांस्टेबल-हेड कांस्टेबल अपने मुख्य नाम के साथ जाति की जगह बेल्ट नंबर का इस्तेमाल करें, जबकि जो अधिकारी हैं वे अपने नाम के साथ पद का हवाला दें। इस आदेश के साथ ही आईपीएस किशन सहाय ने उम्मीद जताई कि इस तरह स्टाफ और आम जन की सोच में जातिगत भावनाओं में कमी आएगी और आपस में एकजुटता बढ़ेगी। उन्होंने आदेश में ही लिखा कि इस तरह के प्रयास को अमल में लाने से कार्यप्रणाली में निष्पक्षता के साथ साथ विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।
इस मामले पर जब फोकस भारत ने आईपीएस किशन सहाय से बात की तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है इस तरह का आदेश पहली बार ही दिया जा रहा है, इस तरह के प्रावधान पहले से हैं, लेकिन इस आदेश को जारी करने को लेकर मेरे पास ऊपर से कोई निर्देश नहीं आया था। उन्होंने कहा कि समाज से जातिगत भेद खत्म होना चाहिए, साथ ही अंधविश्वास से मुक्त होते हुए समाज को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की दरकार है।
आईपीएस किशन सहाय ने कहा कि आजादी के 70 साल के बाद भी अगर जातिगत भेदभाव हमारे समाज में हैं तो हम शिक्षा व्यवस्था को दोष नहीं दे सकते, शिक्षा हमें कहीं भी भेद-भाव नहीं सिखाती। बस जरूरत है कि हम आम व्यवहार में तब्दीली लाने की कोशिश करें।
दलित चिंतक, लेखक भंवर मेघवंशी ने की सराहना
कई सामाजिक संगठनों और समाजसेवियों जो कि समाज में भेदभाव के खिलाफ पहले से कार्य कर रहे हैं, उन्होंने आईपीएस किशन सहाय के इस प्रयास की तारीफ की है। सामाजिक कार्यकर्ता, दलित चिंतक और लेखक भंवर मेघवंशी ने सोशल मीडिया पर इस आदेश की कॉपी को शेयर करते हुए लिखा है कि सरकार के मृत्यु भोज के खिलाफ आदेश के बाद यह एक और महत्वपूर्ण आदेश है।
रिपोर्ट- आशीष, फोकस भारत।