- नए कृषि अध्यादेशों के खिलाफ उबले किसान
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में आंदोलन शुरू
फोकस भारत। केंद्र सरकरा के नए कृषि अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान लामबंद हो गए हैं। प्रदेश के पंजाब से लगते गंगानगर और हनुमागढ़ जिलों में किसानों ने तमाम किसान संगठनों के आह्वान पर ट्रैक्टर रैली निकाल कर अध्यादेशों को तत्काल वापस लेने की मांग की और पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों के खिलाफ भी हल्ला बोल दिया। किसानों का कहना है कि ये अध्यादेश पूरी तरह किसान विरोधी है और सिर्फ एग्रो इंडस्ट्री से जुड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए हैं।
कौन से तीन अध्यादेश, जिनका हो रहा व्यापक विरोध ?
- कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश
- मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा समझौता अध्यादेश
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश
किसान संगठनों का दावा है कि तीनों ही अध्यादेश लघु और मध्यम किसानों को बर्बाद करने के लिए बनाए गए हैं और इन्हें तत्काल वापस नहीं लिया गया तो किसान पूरे देश में आंदोलन छेड़ देंगे। पंजाब की बात करें तो इन अध्यादेशों का बीजेपी के अलावा कोई राजनीतिक दल भी समर्थन नहीं कर रहा है। यहां तक कि शिरोमणि अकाली दल ने भी धमकी दे दी है। वहां सभी दलों ने बैठक कर इन अध्यादेशों को निरस्त करने की मांग की है। हरियाणा में भी किसानों ने ट्रैक्टर रैली निकाली और अंबाला-हिसार हाइवे पर धरना दे दिया।
किसानों- किसान संगठनों-दलों का तर्क
- अध्यादेश के मुताबिक मंडी सिस्टम खत्म कर दिया जाए, कोई भी सीधे किसानों से उनकी फसल खरीद सकेगा। किसानों का तर्क है कि सरकार का यह फैसला फसलों से जुड़े उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए है, ऐसा हुआ तो मंडी के मजदूर, मुंशी, आढ़ती बर्बाद हो जाएंगे। किसान संगठनों का कहना है कि सीधे किसान से फसलें खरीदकर पूंजीपति व कंपनियां स्टॉक करेंगी और मनमाने दामों पर बेचेंगी।
- एक अध्यादेश के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म कर दिया गया है, किसानों का तर्क है कि इससे उन्हें उनकी फसल का सही दाम नहीं मिल पाएगा।
- अध्यादेश के मुताबिक सरकार ने प्याज, आलू, दालों और तिलहन के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया। अब इनके स्टॉक करने की कोई सीमा नहीं रही है। किसानों का तर्क है देश का 80 फीसदी किसान छोटा है, वह भंडारण नहीं कर सकता, ऐसे में भंडारण का लाभ पूंजीपति उठाएंगे और कालाबाजारी करेंगे।
- एक अध्यादेश किसानों के कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग से जुड़ा है। यानी किसान कंपनी से समझौता करेगा, कंपनी किसान से उसी के खेत में इच्छित फसल की खेती कराएगी और किसान को उसका पैसा देगी। किसानों का तर्क है कि इससे किसान अपने ही खेत पर मजदूर बनकर रह जाएगा।
किसान नेताओं ने अध्यादेशों के अलावा पेट्रोल डीजल के दामों में भी भारी कटौती की मांग की है, कहा है कि पेट्रोल डीजल के दाम किसान के बर्बाद कर रहे हैं। किसान संगठनों ने मांगें नहीं मानने पर आंदोलन की चेतावनी भी दी है।
मोदी सरकार दोबारा सत्ता में इस वादे पर आई थी कि वह 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करेगी। इसका कोई आंकलन नहीं है कि किसानों की आय कितनी बढ़ी। केंद्र सरकार ने ई-नैम, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सम्मान योजना आदि शुरू तो कीं, लेकिन इसका कितना लाभ किसानों को मिल पाया है, कहना मुश्किल है।
फिलहाल, जिस प्रकार से इन अध्यादेशों का पुरजोर विरोध, किसानों, किसान संगठनों और किसान नेताओं की ओर से हो रहा है, उससे लगता है कि जल्द ही सरकार को बैकफुट पर जाना होगा। इस मामले में हालांकि हरियाणा में खट्टर सरकार को भी किसानों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पंजाब और राजस्थान में कांग्रेसनीत सरकारें होने के कारण केंद्र के खिलाफ किसान आंदोलन का उग्र रूप भी देखने को मिल सकता है, जबकि इस मुद्दे पर भाजपा की सहयोगी पार्टियां ही धमकाने की भाषा पर उतर आई हैं।
रिपोर्ट- आशीष मिश्रा