बड़ी दिलचस्प है रूस की ‘स्पूतनिक गाथा’, वाकई ‘अंगूर खट्टे हैं !’

  • रूस ने बनाई दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन
  • वैक्सीन को नाम दिया ‘स्पूतनिक वन’
  • दुनिया का पहला सैटेलाइट का रूस का स्पूतनिक उपग्रह

फोकस भारत। वो साल था 1957 जब रशिया ने दुनिया का पहला आर्टीफिशियल सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ा था। सारी दुनिया हैरान थी। अमेरिका, जिससे रूस का शीत युद्ध चल रहा था, वो भी हैरान था, अमेरिका के सभी साथी पश्चिमी देश भी हैरान थे रूस की इस उपलब्धि पर। रूस ने उस सैटेलाइट को नाम दिया था – स्पूतनिक। और अब उसने अपनी कोरोना वैक्सीन को नाम दिया है- स्पूतनिक वन।

रूस के रक्षा मंत्रालय और गामलेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ने कोरोना की वैक्सीन बना लेने का दावा किया है। साथ ही रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने इस वैक्सीन को ‘स्पूतनिक वी’ का नाम देकर अमेरिका को चिढ़ा भी दिया है। पश्चिमी देशों समेत डब्लूएचओ ने जब वैक्सीन की सफलता पर संदेह किया तो रशिया ने ‘अंगूर खट्टे हैं’ का मुहावरा भी याद दिया दिया। रशिया ने वैक्सीन का नाम स्पूतनिक ही क्यों रखा, इसके पीछे की कहनी भी बड़ी रोचक है।

पुतिन का दावा- टेस्ट में टीका टकाटक

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन ने कल एक सरकारी बैठक में साफ कहा कि परीक्षण में उनका टीका खरा उतरा है। पुतिन ने कहा कि इस सुबह दुनिया में पहली बार कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन रजिस्टर्ड हो गई है। राष्ट्रपति ने वैक्सीन पर काम करने वाली टीम को धन्यवाद दिया। साथ ही वैक्सीन के बड़े पैमाने पर उत्पादन की बात भी कही।

वैक्सीन बनते ही धड़ाधड़ ऑर्डर

वैक्सीन के लिए रूस को 20 देशों से सौ करोड़ खुराक के ऑर्डर भी मिल चुके हैं। खुद प्रत्यक्ष निवेश निधि के प्रमुख किरिल दिवमित्रीव ने ये दावा किया। रूस ने हर साल 50 करोड़ खुराक बनाने की बात भी कही है। दिवमित्रीव ने बताया कि दक्षिण अमेरिका, कई दक्षिण-पश्चिम एशियाई देशों ने दवा खरीदने के लिए संपर्क किया है।

पुतिन की बेटी को लगा पहला टीका

आम लोगों के लिए भले यह टीका अगले साल जनवरी में मुहैया हो, लेकिन पुतिन ने अपनी दो बेटियों में से एक को यह टीका लगवाया है और दावा किया कि टेस्ट में टीका मानव की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में सफल रहा है। टीके पहली और दूसरी खुराक लगाने के बाद पुतिन की बेटी को हल्का बुखार आया, लेकिन फिर एंटीबॉडी में बढोतरी दर्ज की गई। ये भी कहा गया कि बुखार आने का मतलब टीका काम कर रहा है।

क्या है स्पूतनिक की डोज़ ?

रूस की कोरोना डोज में दो इंजेक्शन हैं, इनमें एक लिक्विड है तो दूसरा पाउडर। रूस का सरकारी विभाग को दवाओं का पंजीकरण करता है, उसने कहा है कि आम लोगों को यह टीका 1 जनवरी से मिलने लगेगा। रूस की तरफ से मानव ट्रायल का पहला चरण 18 जून से शुरू हुआ था। 38 लोगों को टीका लगाया गया। 13 जुलाई को दूसरा चरण और 3 अगस्त को सभी लोगों की जांच की गई। इन सभी लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा दर्ज किया गया। हालांकि तीसरे चरण का क्लीनिकल ट्रायल अब रशिया से बाहर संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और अन्य देशों में किया जाएगा।

रूस का ‘जनता टीकारण अभियान’

रूस ने अपनी अवाम के टीकाकरण की योजना भी बना ली है। 1 जनवरी से वह अपने देश में सबसे पहले कोरोना वॉरियर्स चिकित्साकर्मियों, शिक्षकों और जोखिम का काम करने वाले लोगों को सबसे पहले टीके लगाना शुरू करेगा। इसके बाद सीनियर सिटिजन्स को टीके लगाए जाएंगे। रूस में यह टीका दो स्थानों पर उत्पादित होगा साथ ही रूस के चार साझेदार देश भी इस टीके का उत्पादन करेंगे। रूस के दावों पर यकीन करें तो अगले महीन यानी सितम्बर से बड़े पैमान पर इस वैक्सीन का उत्पादन शुरू कर देगा।

रूस के टीके पर WHO, अमेरिका को शक

सबको पता है कि अमेरिका और रूस में हमेशा ठनी रही है। 1992 से पहले अमेरिका और रूस में लंबा शीत युद्ध चला है। लिहाजा अमेरिका और दुनिया के ज्यादातर देशों के अलावा डब्लूएचओ को भी रूस के टीके ‘स्पूतनिक वी’ पर शक है। कहा जा रहा है कि अभी तीसरे चरण का टेस्ट बाकी है, वो होने से पहले ही टीका कैसे रजिस्टर्ड कराया जा सकता है? सवाल में दम है लेकिन रूस ने कहा कि दो चरणों में उसने अपने देश में टेस्ट कर लिये थे और दोनों में यह टीका सफल रहा है, तीसरे चरण में अन्य देशों में लोगों पर इसके प्रभाव का आंकलन किया जाना है। डब्लूएचओ ने दावा किया है ह्यूमन ट्रायल हजारों लोगों पर होता है और कई महीनों में इसके रिजल्ट आते हैं। अमेरिकी स्वास्थ्य मंत्री ने अलेक्स अजर ने कहा है कि दुनिया की पहली वैक्सीन बनाने की जगह सुरक्षित वैक्सीन बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण है।

अब सुनिये ‘स्पूतनिक’ की कहानी

अमेरिका और उसके समर्थित देशों के शक को ब्लादिमिर पुतिन ने ‘अंगूर खट्टे हैं’ कहकर चिढाया। साथ ही वैक्सीन का नाम ‘स्पूतनिक वी’ रखकर तो जैसे जले पर नमक ही छिड़क दिया। दरअसल स्पूतनिक रूस का पहला उपग्रह था। उस समय रूस सोवियत संघ था और अमेरिका से उसकी भयंकर प्रतिस्पर्धा चलती थी। इसे शीत युद्ध कहा गया था। इस स्पर्धा में बाजार, हथियार, अंतरिक्ष कार्यक्रम, वैश्विक गुटबंदी सब शामिल था। अमेरिका सब मामलों में खुद को बेहतर होने का दावा करता रहा, लेकिन 1957 में रूस ने दुनिया को हैरान करते हुए ‘स्पूतनिक वन’ नाम के उपग्रह को लॉन्च कर दिया। यह दुनिया की पहली आर्टिफीशियल सैटेलाइट थी। स्पूतनिक का रशियन भाषा में अर्थ होता है सफर का साथी। रशिया के राष्ट्रपति ने तंज की भाषा में कहा कि जिस तरह 1957 में दुनिया हमारी सफलता से हैरान थी, उसी तरह आज कोरोना वैक्सीन तैयार करने पर भी हैरान है।

बहरहाल, कभी रूस के दुश्मन रहे अमेरिका, ब्रिटेन और कनाड़ा जैसे देशों ने स्पूतनिक वैक्सीन पर सवाल उठाया है, कभी कहते हैं कि इतनी जल्दी वैक्सीन कैसे बन सकती है, कभी कहते हैं कि पूरी रिसर्च ही रूस ने चुरा ली है, कभी कहते हैं कि तीसरे चरण का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है। वैश्विक राजनीतिक पंडितों का मानना है कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश ये पचा नहीं पा रहे हैं कि पूरी दुनिया में आतंक फैलाने वाले कोरोना वायरस को काबू में करने वाली वैक्सीन उनके रहते रूस ने कैसे बना ली, अमेरिका और ब्रिटेन के लिए बेहद शर्म की बात है कि वे इस पर सफलता से अभी तक कुछ नहीं कर पाए हैं। ऐसे दुश्मन देशों को रूस ने ये कहते हुए करारा जवाब दिया है कि ‘अंगूर खट्टे हैं।’

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा