- जम्मू कश्मीर में भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले
- कई कार्यकर्ताओं पर हो चुके हैं आतंकी हमले
- डर कर पार्टी और पद छोड़ रहे कार्यकर्ता
फोकस भारत। क्या घाटी में बीजेपी आतंकियों के लिए नाकाबिले बर्दाश्त हो चुकी है? क्या घाटी में पुलिस में मुस्लिम युवाओं की भर्ती नाकाबिले बर्दाश्त हो चुकी है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि जम्मू कश्मीर में बीजेपी के नेताओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। दहशत का आलम ये है कि बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता अब जान बचाने के लिए पार्टी और पद से इस्तीफा दे रहे हैं।
जम्मू कश्मीर में बीजेपी नेताओं पर हमले
घाटी में सेना आतंकियों का सफाया कर रही है। ऑपरेशन ऑल ऑउट जारी है। सौ से ज्यादा आतंकियों का एनकाउंटर किया जा चुका है। बचे हुए आतंकी बौखलाए हुए हैं। आतंकियों को सिर छुपाने की जगह नहीं मिल रही है। लिहाजा अब उन्होंने जम्मू कश्मीर में बीजेपी के नेताओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है।
बड़गाम में बीजेपी कार्यकर्ता पर हमला
ताजा हमला बड़गाम में बीजेपी कार्यकर्ता पर हुआ है। हमले में कार्यकर्ता अब्दुल हमीद नजर घायल हो गए हैं, उन्हें अस्पताल भर्ती कराया गया है। बडगाम में आतंकियों ने मेहिदपोरा के रहने वाले 38 साल के अब्दुल हमीद को गोली मार दी थी। इस हमले से घबरा कर घाटी में बीजेपी के चार नेताओं ने पार्टी और पद से इस्तीफा दे देया, इससे पहले भी बीजेपी नेता कश्मीर में इस्तीफे दे चुके हैं। बड़गाम जिले में बीजेपी महासचिव और एमएम मोर्चा बडगाम शामिल हैं।
हाल में कई जगह हो चुके हैं बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले
बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं को टारगेट बना लिया गया है। 6 अगस्त को कुलगाम के काजीगुंड में बीजेपी संरपंच की हत्या कर दी गई थी। वेस्सु गांव के सरपंच सजाद अहमद को आतंकियों ने गोलियों से छलनी कर दिया था।
पार्टी से इन कार्यकर्ताओं का इस्तीफा
संदेश साफ है, जान बचानी है तो बीजेपी छोड़ दो। जिन कार्यकर्ताओं ने इस्तीफा दे दिया है उनमें कुलगाम के देवसर से बीजेपी सरपंच, बीजेपी नेता सबजार अहमद पाडर, बीजेपी कार्यकर्ता निसार अहमद वानी और बीजेपी कार्यकर्ता आशिक हुसैन शामिल हैं।
आतंकियों ने इससे पहले पुलिस के उन जवानों को निशाना बनाया था जो कश्मीर के थे और मुस्लिम थे। संदेश साफ है कि कश्मीर का कोई युवा न तो बीजेपी से जुड़े और न ही पुलिस या सेना से। धारा 370 को हटे 370 दिन हो गए हैं, लेकिन जन्नत का अमन कब लौटेगा ये कोई नहीं जानता।
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रिपोर्ट- आशीष मिश्रा