क्या वसुंधरा राजे चला रही हैं अघोषित समानान्तर पार्टी ?

  • प्रदेश कार्यकारिणी में वसुंधरा गुट को तरजीह नहीं
  • सोशल मीडिया पर एक्टिव हुई वसुंधरा की ‘पार्टी’! 

फोकस भारत। वसुंधरा राजे को कौन नहीं जानता? राजस्थान की जनप्रिय नेता हैं इसमें कोई दोराय नहीं। एक सच ये भी है कि भाजपा के पास वसुंधरा की फिलहाल कोई काट नहीं है। वसुंधरा के पास जन-समर्थन है। हालांकि पार्टी का समर्थन ने तो दिल्ली से मिल रहा है और न ही प्रदेश से। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और प्रदेश की जनता पर विश्वास है। लेकिन अमित शाह से लेकर ओम माथुर, गजेंद्र सिंह शेखावत, सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, गुलाबचंद कटारिया जैसे दिग्गजों से वसुंधरा का छत्तीस का आंकड़ा है। कुल मिलाकर प्रदेश की राजनीति से वसुंधरा राजे को अलग-थलग करने का प्लान चल रहा है और भाजपा की मौजूदा कार्यकारिणी इसका सबूत भी है।

प्रदेश कार्यकारिणी से वसुंधरा खेमा लगभग गायब

वसुंधरा राजे को उम्मीद थी कि प्रदेश कार्यकारिणी में उनके खेमे का ‘खयाल’ रखा जाएगा, लिहाजा 31 जुलाई तक उनके ट्वीटर हैंडलर से प्रधानमंत्री मोदी और उनके काम-काज के लिए फूल बरस रहे थे। लेकिन कार्यकारिणी में जब वसुंधरा खेमे को तरजीह नहीं मिली तो दो दिन प्रधानमंत्री की तारीफ का पुल भी ढहा रहा। हालांकि दावा है कि वसुंधरा गुट के तीन लोगों को कार्यकारिणी में जगह दे दी गई है। वैसे इस कार्यकारिणी पर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और राजेंद्र राठौड़ की छाप साफ दिखाई दे रही है। यहां तक जिन दो जिलों से वसुंधरा ताल्लुक रखती हैं वहां से प्रदेश कार्यकारिणी में किसी को भी शामिल नहीं किया गया है, धौलपुर और झालावाड़ रीते रह गए। हालांकि इस पर वसुंधरा ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है।

गहलोत को भी वसुंधरा के ‘गायब’ होने का मलाल

राजस्थान के सियासी संकट के दौर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भाजपा को पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। लेकिन साथ ही वसुंधरा राजे के प्रति उनकी संवेदना गाहे-बगाहे नजर आ रही है। प्रदेश संगठन से बाहर हुई वसुंधरा के लिए कई जगह, कई मोर्चों पर गहलोत सार्वजनिक तौर पर आवाज उठा चुके हैं। उन्होंने सतीश पूनिया और राठौड़ का नाम लेकर कहा कि वसुंधरा से टकराने के लिए दोनों नेताओं में होड़ चल रही है। गुलाबचंद कटारिया भले हैं लेकिन उनमें दम नहीं है। वसुंधरा जी पता नहीं कहां गायब हो गयी हैं।

क्या भाजपा का हाल आने वाले दिनों में कांग्रेस जैसा होने वाला है ?

बड़ा सवाल है। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि भाजपा की अंतर्कलह फिलहाल छुपी हुई है और सत्ता से बाहर होने के कारण वह सतह पर नहीं आ रही है। एक तरफ वसुंधरा है जिन्हें प्रदेश की जनता का भरोसा है और इसमें कोई दोराय भी नहीं कि जमीन पर उनकी पकड़ भाजपा के बाकी नेताओं से ज्यादा और जबरदस्त है। वे सिर्फ चुनावी साल में एक्टिव होती हैं और बाजी मार ले जाती हैं। उनके कद का नेता फिलहाल प्रदेश भाजपा में कोई नहीं है। लिहाजा, अगर अगर गहलोत सरकार गिरने की नौबत आती है तो भाजपा की कलह सतह पर आ सकती है। भाजपा ने अभी यह भी तय नहीं किया है कि वसुंधरा राजे नहीं, तो फिर सीएम के चेहरे के तौर पर वे किसे आगे करेंगे और जिसे आगे करेंगे, क्या जनता उस चेहरे को स्वीकर करेगी? क्योंकि राजस्थान में जब भी भाजपा सरकार की बात आती है तो मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा का चेहरा ही लोगों के जेहन में आता है। ऐसे में राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अगर अचानक सरकार बनाने की नौबत आ गई तो भाजपा में सिर-फुटव्वल होना तय है। क्योंकि वसुंधरा उन नेताओं में से नहीं है जो संगठन के कहने पर चुपचाप मंच से नेपथ्य में चली जाएं। वे जब प्रदेश अध्यक्ष के लिए अमित शाह को नाकों चने चबवा सकती हैं तो क्या नहीं कर सकती, लिहाजा संभव है कि ऐसे हालात बनने पर वे सचिन पायलट की राह पर चलती नजर आएं और विद्रोह कर बैठें। वैसे भी आप वसुंधरा का ट्वीटर प्रोफाइल कवर देखेंगे तो आपको ‘जय जय राजस्थान’ लिखा मिलेगा और प्रदेश की आम-जनता की भीड़ वाली तस्वीरें मिलेंगी। इसमें न मोदी हैं, न शाह हैं और न ही प्रदेश की राजनीति का कोई बड़ा चेहरा।

तो क्या अंदरखाने अघोषित समानांतर पार्टी रची जा रही है ?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह पूरी तरह संभव है। वसुंधरा लंबे समय से खामोश रही हैं। राजस्थान के सियासी संकट पर भी उन्होंने बहुत कम मुंह खोला। जबकि उन पर गहलोत खेमे का साथ देने के आरोप लगते रहे। अघोषित समानांतर पार्टी रचने की बात वो जबान से कभी नहीं करेंगी। लेकिन उनके काम ये जाहिर कर देते हैं। कोरोना-काल में वसुंधरा राजे प्रदेश में कहीं भी दिखाई नहीं दी। आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। लेकिन वे इस दौरान लंबे समय तक झालावाड़ से भी दूर रही और जयपुर से भी। उन्होंने प्रदेश में किसी भी जगह का दौरा भी नहीं किया। वे धौलपुर हाउस में रहीं और राजनीति से लगभग कटी रहीं। लेकिन जब से राजस्थान में सियासी संकट पैदा हुआ है। वसुंधरा राजे के नाम से फेसबुक पर पिछले एक-डेढ़ महीने में पेज बनने लगे हैं। इन पेजों की भरमार है। वहीं ट्वीटर पर भी वसुंधरा एक्टिव हो गई हैं और लगातार प्रदेश की जनता को याद कर रही हैं। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ भी लगातार की जा रही है। वसुंधरा राजे के ‘फैन्स’ और उनके समर्थित गुट जमीन पर एक्टिव होने का मतलब है कि भाजपा के इतर एक और भाजपा एक्टिव हो चुकी है और अब वह वसुंधरा की भाजपा अपनी नेता का प्रचार करने के लिए कटिबद्ध नजर आ रही है। कार्यकारिणी में मनचाहा स्थान नहीं मिल पाने के बाद अब वसुंधरा राजे ज्यादा एक्टिव नजर आ सकती हैं और हो सकता है कि वे जनता के बीच जाना भी शुरू कर दें।

बहरहाल, वसुंधरा राजे मैदान छोड़ने वालों में से नहीं हैं। बल्कि सामने से डटकर मुकाबला करना उनकी आदत है। उन्हीं की जिद के चलते प्रदेश में लम्बे समय तक प्रदेश अध्यक्ष का नाम तय नहीं हो पाया था और आखिर उन्हीं की जिद के चलते मदनलाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाना पड़ा था। तो कुल मिलाकर वसुंधरा की ताकत शायद आने वाले दिनों में नजर आए और हो सकता है कि वसुंधरा के आह्वान पर आपको प्रदेशभर से उनके समर्थन में आवाजें उठती भी सुनाईं दें।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा