फोकस भारत। कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने में ‘भीलवाड़ा मॉडल’की चर्चा पूरे देश में है। और इसे पूरे देश में भी लागू करने पर विचार विमर्श चल रहा है ऐसे सवाल उठता है कि जिस मॉडल को दूसरे राज्यों में लागू करने की बात हो रही है वही राजस्थान के दूसरे हिस्सों में ये क्यों लागू नही हो पाया है। राजस्थान में बढ़ते कोरोना पॉजिटिव आकंडे इसे रेड जोन बना रहे है। लेकिन गहलोत सरकार की इस मॉडल को लेकर देशभर में तारीफ हुई और सुर्खिया बटोरी भी है।
भौगोलिक स्थिति अलग तो क्या कोई ठोस उपाय नहीं
राजस्थान में कोरोना संक्रमण के करीब 815 मामले सामने आए हैं और अबतक 3 लोगों की इसकी चपेट में आकर मौत भी हो चुकी है। प्रदेश में सबसे ज्यादा केस राजधानी जयपुर के रामगंज क्षेत्र में सामने आए हैं। जयपुर जिला में 341 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इसके अलावा टोंक और बांसवाड़ा जिला है, जहां कोरोना का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। जयपुर के रामगंज के जनसंख्या घनत्व और भीलवाड़ा की आबादी में काफी फर्क है। रामगंज में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है, इसके अलावा गलियां काफी संकरी हैं जबकि भीलवाड़ा में चौड़ी सड़के और खुलापन है। भीलवाड़ा की तर्ज पर रामगंज में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन संभव नहीं हो सका है। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा भी इस बात को स्वीकार कर चुके हैं कि रामगंज और भीलवाड़ा की भौगोलिक स्थितियां बिल्कुल अलग हैं। वहीं भीलवाड़ा की तरह राजस्थान के दूसरे शहरों में होम टू होम लोगों की स्क्रीनिंग का काम सरकार नहीं कर सकी। हालांकि सीएम गहलोत ने पूरे देश में सबसे पहले राजस्थान में लॉकडाउन किया था । उन्होंने तत्परता से लॉकडाउन का एक्शन लिया लेकिन राजनीतिक विशलेषक मानते है कि गहलोत सरकार अभी भी लोगों को भरोसा दे पाने पीछे है। अगर लोगों को भरोसा दिया जाये तो लोग खुद जांच के लिए आगे आयेंगे और जितनी ज्यादा जांचे होगी उतना ही इस पर काबू पाया जा सकेगा।
सीएम एक्शन में लेकिन प्रशासन सुस्त
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिलाधिकारियों से कहा है कि वे प्रदेश में कोरोना की जांच और रोकथाम के लिए भीलवाड़ा मॉडल को अपनाएं। साथ ही जिलाधिकारियों से लॉकडाउन और हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किए गए इलाकों में कर्फ्यू का सख्ती से पालन कराने को कहा है। उन्होंने भीलवाड़ा मॉडल फॉलो करते हुए अधिक से अधिक टीमें तैयार कर हर घर का सर्वे कराने के भी निर्देश दिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे कोरोना संक्रमित लोगों का पता चल सकेगा और इस संक्रमण को फैलने से रोका जा सकेगा। लेकिन सीएम के आदेश के बावजूत राजधानी जयपुर के साथ ही दूसरे जिलों में प्रशासन की धीमी चाल इसे विफल बना रही है।
ये भीलवाड़ा मॉडल क्या है?
जब भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा शुरू हुई तो पहला श्रेय वहां के कलेक्टर राजेंद्र भट्ट को श्रेय दिया गया। राजस्थान प्रशासनिक सेवा के अफसर भट्ट 2007 में प्रमोशन से IAS बने थे और काफी दिनों से भीलवाड़ा के कलेक्टर हैं। भट्ट के साथ भीलवाड़ा के एक और अफसर आईएएस अफसर की भी चर्चा रही है टीना डाबी – 2015 की UPSC टॉपर टीना डाबी भीलवाड़ा में एसडीएम के तौर पर तैनात हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में टीना डाबी ने बताया था कि किस तरह जिला प्रशासन ने फटाफट फैसले लिये और नतीजे नजर आने लग।. भीलवाड़ा की एसडीएम टीना डाबी ने बताया कि सबसे पहले तो लोगों को भरोसे में लिया गया और फिर भीलवाड़ा को पूरी तरह से आयसोलेट कर दिया गया। पहले से तो सतर्कता बरती ही जा रही थी, जैसे ही 25 मार्च को संपूर्ण लॉकडाउन लागू हुआ, दो घंटे के भीतर कलेक्टर भट्ट ने कर्फ्यू लगाने का फैसला किया। द प्रिंट से बातचीत में राजेंद्र भट्ट कहते हैं कि उन्होंने कोई रॉकेट साइंस का इस्तेमाल नहीं किया, बस वक्त की जरूरत के हिसाब से कड़े फैसले लिये और उन पर सख्ती से लागू किया। हां, भट्ट बताते हैं कि राज्य सरकार के सामने जो भी डिमांड रखी मंजूरी देने में कोई हीलाहवाली नहीं की गयी।