फोकस भारत। ‘कहानी यमदूत बनकर भागते मजदूर की’
सोशल मीडिया और टीवी पर समझदार चीख रहे हैं, – ‘सड़कों पर यमदूत दौड़ रहे हैं।’ यमदूत ?? हां, जी, इन समझदारों को ये यमदूत ही नज़र आ रहे है। यमदूत का सीधा मतलब, वो जो नासमझ, जाहिल, गंवार, अनपढ़, मैले- कुचले, नंगे बदन, भूखे, और बदबूदार मजदूरों की भीड़। जो युगों से शोषित है। बड़े बड़े महल खड़े करने का सामर्थ्य तो है, लेकिन बनाने के बाद उनके अंदर घुसने का साहस नहीं जुटा पाती है। दो वक्त की रोटी के लिए घर से हज़ारों मील दूर जाने को मजबूर ये मजदूर वर्ग। अब ये मजदूर वर्ग देश भर में भाग खड़ा हुआ है। समझदारों की जमात को ये यमदूत सा नज़र आ रहा है।
पिछले कुछ दिन से पुलिस के डंडों की परवाह किये बिना खेत, सड़क और पगडंडियों से होते हुए भागे जा रहा है, ये मजदूर।। अब कुछ सरकारें, बदनामी के डर से बीच रास्ते में खाना भी डाल रही है। बसों में भी ठूंसा जा रहा है। फिर भी मजदूर भागे जा रहा है।
टीवी के एंकरों की चीख से ये बेखबर है। इन अभागों ने भी तो शराब और कागज के कुछ टुकड़ों के लालच में आकर पांच साल में एक बार वोट बेचने के अलावा इस लोकतंत्र में सीखा ही क्या है?
समझदार सवाल कर रहे हैं – अरे भाई भाग क्यों रहे हो ? कोस रहे है, ‘इन गंवारों को ये भी नहीं पता कि इस देश को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के आदेश पर पूरे देश में सख्त लॉक डाउन कर रखा है। ‘ बाहर निकलने पर पुलिस का पहरा है। पाबंदी है। कैसे जाहिल है, किसी की मानते ही नहीं है।’
समझदार जी आगे बोलते हैं- स्वयं हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने 21 अप्रैल तक जहां हो, वहीं रहने की अपील कर रखी है। साहेब ने साफ बोला हैं- ‘ सोशल डिस्टेंस मेंटेन करके घर में 21 दिन रहने पर ही कोरोना के संक्रमण से बचा जा सकता है।’ पर इन मूर्खो को देखो- जाहिलों ने सबसे पहले साहेब के गुजरात में ही लॉक डाउन को अनसुना कर दिया। भूखों मर रहे थे तुम सब ?? तुमने सुना नहीं टीवी पर – – ‘मोदी जी ने लाखों करोड़ का पैकेज जारी कर दिया है। ‘ बस राहत तुम तक आने ही वाली है, बाहर नज़र रखों। और वैसे भी ये कुछ दिनों की ही तो बात है। भले ही आप मजदूरों को भूखा रहना पड़े, लेकिन आप सभी जहां हो, वहीं रहो। ये बहुत ही उत्तम सलाह है। बहुत ही नेक विचार। देश हित में है। मानवता के हित मे है।
सहसा एक युवा मजदूर फुसफुसाया – ‘ साहेब ऐसा बोलने और सलाह देने वाले पहले खुद पांच दिन भूखे रहे और उनके बच्चों को भी पांच दिन खाने को कुछ नहीं दिया जाए। फिर छठे दिन भी अगर वो लॉक डाउन को लेकर घर में रहने की सिफारिश करते हो तो पूरे देश को उनकी बात माननी ही चाहिए।
तभी एक गांधीवादी चिंतक बीच में जबरन राय व्यक्त करने लगे- बोले “असल में ऐसे लोगों को भूखा रहने के सलाह देने के बजाय यह सोचना चाहिए कि मजदूर इतना डर क्यों गए। उनके पास समय रहते भरोसा और भोजन क्यों नहीं पहुंचा। जो अब भी नहीं निकले हैं, उनकी क्या मदद हो रही है। अफसरों को वेतन, अफसरी झाड़ने के लिए नहीं, जनता की सेवा के लिए मिलता है। इसलिए अमानवीय बातें करने के बजाय अपने गरीब भाइयों का दुख महसूस कीजिए।”
टीवी वालों की चीख जारी है, ” सड़कों पर हज़ारों की तादात में यमदूत”
उधर युगों से भूख को नियति मानने वाले ये मजदूर भागे जा रहे हैं, भागे जा रहे है। सरकारों की मुनादी इन पर बेअसर ही। ये तो सबको मरवाकर ही मानेंगे।
शहरी लोगों को यमदूत नज़र आने वाले इन भागे जा रहे एक मजदूर ने बताया- ‘ एक ही ध्येय – भूख से यहां मरने की बजाय अपनी चौखट पर अंतिम सांस लेने की आस।’
तभी एक क्रांतिकारी बोल उठा- “सत्ता में बैठे हुए हुक्मरानों कुछ सुना आपने, – ये जिंदा लाशें गांधी के गुजरात से भूख से व्याकुल होकर भागती हुई जा रही है। अपनी चौखट पर अंतिम सांस लेने। गांधी ये सब देखते तो यकीनन गला फाड़कर रोते। गांधी भागते हुए भूखों का दौड़कर रास्ता रोकते। वो भरोसा कर रुक भी जाते।”
अब कोई गांधी नहीं है। जो नंगे बदन खाली हाथ, दंगाइयों के बीच पहुंच जाते थे। जिनकी एक आवाज पर लोग तलवारें फेंक कर गले लग जाते थे। अब कोई गांधी नहीं है। भूख से भी बड़ा संकट भरोसे का है।
जब वाणी में सत्य कम होता है, तो ये आम अवाम बात पर भरोसा नही करती। कोरोना सरीखी मौत के खुले पैगाम के बीच बेपरवाह होकर भाग खड़ी होती है। अपनी चौखट पर अंतिम सांस लेने की आस में।
इंसान के कुकृत्यों से परेशान होकर पाप के भार से दबती जा रही ये धरती मां ने भागते मजदूरों से कुछ सुना हैं, वो बता रही है – “बेटा, ये भागते भूखे मजदूर पूरे रास्ते बद्दुआएं देते जा रहे हैं। तुम सभी को। काल भी अट्टहास कर रहा है – हाँ, ये मजदूर तुम्हारे लिए यमदूत ही है। चकाचौध पसंद अंधों सुनो, – गरीब की हाय से सब मरेंगे। घरों में चुपचाप बैठे लोग। तमाशा देखते लोग। सत्ता की तरफदारी कर मजदूरों को यमदूत बताने वाले लोग। प्रकृति को रौंदने वाले लोग।
क्योंकि मौत भेदभाव नहीं करती, अच्छे- बुरे, अमीर-गरीब और जाहिल और समझदारों में।
सुनो – ‘ मजदूर भागते जा रहे है, अपनी चौखट पर अंतिम सांस लेने की आस में।’
जल्द, निराश मत हो, तुम बच भी सकते हो, प्रकृति को मां मानकर। उसके नियमों की पालना करके। दरिद्रनारायण की सेवा करके। गरीब की दुआएं बटोरकर।
साभार- श्रवण सिंह राठौड़ की कलम से।।