देश में विभाजन के समय जैसे हालात है ?

फोकस भारत।  लॉकडाउन का बिग साइड इफेक्ट, 1 मिनट के वीडियो में देखें  । ये वीडियों वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया है।

मानो दिल्ली ख़ाली हो रही हो। ये उतरप्रदेश के प्रवासी हैं। मजबूर होकर घर लौट रहे हैं। पैदल। एक-दूसरे से सटे हुए। संकट से बेख़बर। कैसा अफ़सोसनाक मंज़र पेश आया है।

यह कल शाम की बात है। भाई अजीत अंजुम ने मौक़े पर जाकर बहुत लोगों से बात की। व्यथा को शासन, प्रशासन और समाज तक पहुँचाया। बताते हैं आधी रात को उत्तरप्रदेश पुलिस ने औरतों-बच्चों सहित सबको वापस दिल्ली की ओर खदेड़ दिया।

समस्या को छुआ ही इस तरह गया है कि उसमें क्रमशः उलझने के आसार ज़्यादा हैं। वह एक वर्ग भले काफ़ी कुछ बच जाय, पर ग़रीब के आगे कुआँ पीछे खाई है।

वीडियो में जो फ़्लाईओवर है उसे मैं खूब पहचानता हूँ। दिल्ली-उत्तरप्रदेश का बॉर्डर है। इसके पार वसुंधरा में हमारा घर है। पर सवाल यह है कि इतने लोगों ने जत्थों में बहिर्गमन क्यों किया?

भारत के बँटवारे से इस आपदा की कोई तुलना नहीं की जा सकती, न उससे इसका कोई संबंध है। पर प्रवासी मज़दूरों के बहिर्गमन की तसवीरें क्या उस ऐतिहासिक त्रासदी के गमन की याद नहीं दिलातीं?

अंधेरा ढलते-न-ढलते कोई मजबूर सामान सर पर लादे था। कोई माँ-बाप को। बस चलते चले जा रहे हैं। संक्रमण से अनजान। अपने ‘वतन’ को।

पर ग़रीब का वतन कहाँ होता है? जहाँ रोटी मिल जाय और बग़ल में कोई फ़िक्रमंद हो। अनियोजित आपदा-प्रबंध से उपजी इस अफ़रातफ़री ने उससे दोनों चीज़ों का आसरा छीन लिया है।

 

मानो दिल्ली ख़ाली हो रही हो। ये उतरप्रदेश के प्रवासी हैं। मजबूर होकर घर लौट रहे हैं। पैदल। एक-दूसरे से सटे हुए। संकट से बेख़बर। कैसा अफ़सोसनाक मंज़र पेश आया है। यह कल शाम की बात है। भाई अजीत अंजुम ने मौक़े पर जाकर बहुत लोगों से बात की। व्यथा को शासन, प्रशासन और समाज तक पहुँचाया। बताते हैं आधी रात को उत्तरप्रदेश पुलिस ने औरतों-बच्चों सहित सबको वापस दिल्ली की ओर खदेड़ दिया। समस्या को छुआ ही इस तरह गया है कि उसमें क्रमशः उलझने के आसार ज़्यादा हैं। वह एक वर्ग भले काफ़ी कुछ बच जाय, पर ग़रीब के आगे कुआँ पीछे खाई है। वीडियो में जो फ़्लाईओवर है उसे मैं खूब पहचानता हूँ। दिल्ली-उत्तरप्रदेश का बॉर्डर है। इसके पार वसुंधरा में हमारा घर है। पर सवाल यह है कि इतने लोगों ने जत्थों में बहिर्गमन क्यों किया? भारत के बँटवारे से इस आपदा की कोई तुलना नहीं की जा सकती, न उससे इसका कोई संबंध है। पर प्रवासी मज़दूरों के बहिर्गमन की तसवीरें क्या उस ऐतिहासिक त्रासदी के गमन की याद नहीं दिलातीं? अंधेरा ढलते-न-ढलते कोई मजबूर सामान सर पर लादे था। कोई माँ-बाप को। बस चलते चले जा रहे हैं। संक्रमण से अनजान। अपने ‘वतन’ को। पर ग़रीब का वतन कहाँ होता है? जहाँ रोटी मिल जाय और बग़ल में कोई फ़िक्रमंद हो। अनियोजित आपदा-प्रबंध से उपजी इस अफ़रातफ़री ने उससे दोनों चीज़ों का आसरा छीन लिया है।

Posted by Om Thanvi on Friday, 27 March 2020

 

 

दरएसल देश में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या बढ़कर 900 के पार चली गई है। जबकि अब तक इस वायरस से 21 लोगों की जान गई है। केरल में कोरोना की वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई है।वहीं मध्य प्रदेश में एक पत्रकार के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है। वो कमलनाथ की बतौर सीएम आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने पहुंचे थे। पत्रकार की बेटी लंदन से लौटी थी, जिन्हें क्वारनटीन रहने को कहा गया था। इसके बावजूद पत्रकार ने नियमों की अनदेखी की, बाद में पत्रकार और उनकी बेटी दोनों कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। इस वजह से अब पूर्व सीएम कमलनाथ भी क्वारनटीन हो गए हैं। कोरोना वायरस का फैलाव पूरी तेजी से दुनिया में हो रहा है। इसके चलते लॉकडाउन से लोगों को परेशानियां और बढ चुकी हैंं। खासकर रोजी-रोटी की तलाश में अपने घरों से दूर रह रहे लोगों के हालात काफी बुरे हैं।मजदूर और रोज कमाने-खाने वाले लोगों पर तो जैसे मुसीबतों का पहाड टूट पडा ह। बडे शहरों से हजारों लोगों का पलायन की तस्वीरें सामने आ रही हैं।

 

 

 

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