आरएसएस (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले(dattatreya hosabale) ने स्वदेशी जागरण मंच की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में रविवार को गंभीर चिंता जताते हुए कहा था कि देश में अब भी 20 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं, उन्होंने कहा था कि ग़रीबी और भयावह विषमता जैसी समस्या से लड़ने के लिए ठोस और विकेंद्रीकृत नीति की ज़रूरत है, होसबाले ने कहा था, ”एक तरफ़ तो भारत दुनिया की छठी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और दूसरी तरफ़ यहाँ के 23 करोड़ लोग हर दिन 375 रुपए से भी कम कमाते हैं, शीर्ष के एक फ़ीसदी लोगों के पास राष्ट्र की 20 फ़ीसदी आय है, दूसरी तरफ़ देश की 40 फ़ीसदी आबादी के पास राष्ट्र की महज़ 13 फ़ीसदी आय है’‘
राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि लेकिन यह केवल दत्तात्रेय होसबाले की बात नहीं है, 29 सितंबर को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी (nitin gadkari)ने भी कहा था कि भारत दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है, लेकिन भारत के लोग ग़रीब हैं, गडकरी ने कहा था कि भारत के लोग भुखमरी, बेरोज़गारी, जातिवाद, छुआछूत और बढ़ती महंगाई से जूझ रहे हैं, गडकरी ने कहा था कि अमीर और ग़रीब के बीच का फासला लगातार बढ़ रहा है और इसे कम करने के लिए एक सेतु बनाने की ज़रूरत है, गडकरी ने ये बातें आरएसएस से प्रेरित संगठन भारत विकास परिषद को संबोधित करते हुए कही थी। सवाल ये है कि दत्तात्रेय होसबाले और नितिन गडकरी क्या मोदी सरकार (narendra modi govt)को हकीकत से रुबरु करा रहे हैं?