राजनीति के ‘प्रोफेसर’ हैं स्पीकर सीपी जोशी

  • राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी 
  • राजनीतिक संकट के दौरान चर्चा में रहा नाम
  • स्पीकर के रूप में भूमिका, कांग्रेस का दमदार चेहरा

 

फोकस भारत। एक वोट या यूं कहें कि एक मत और एकमत यानी एक राय होना राजनीति कितना जरूरी है, यह सीपी जोशी से ज्यादा कौन समझता होगा, राजनीति को शुचिता प्रदान करते हैं सीपी जोशी जैसे व्यक्तित्व।

डॉ. चंद्र प्रकाश जोशी, जिन्हें राजनीति में स्पीकर सीपी जोशी के नाम से जाना जाता है। हां, वही सीपी जोशी जिन्होंने 1 वोट से हारकर नाथद्वारा की सीट गंवा दी थी, उस एक वोट के लिए वे सुप्रीम कोर्ट तक चले गए थे, क्योंकि वे जानते थे कि राजनीति में एक वोट का महत्व क्या है। या उस घटना के बाद वे जान गए कि एक वोट का महत्व क्या है। हाल ही कांग्रेस के भीतरी घमासान का परिदृश्य भी उनकी आंखों में उतरता होगा, गुजरता होगा। जब एक युवा साथी मुख्यमंत्री बनने की चाहत में पार्टी से बगावत कर बैठा और एकमत न हो सका। उसके लौट आने के बाद हालांकि सियासी संकट का पटाक्षेप हुआ लेकिन राजनीति में एकमत यानी एक राय होना कितना जरूरी है, स्पीकर के तौर पर सीपी जोशी से बेहतर कौन जान सकता है ?

संक्षिप्त परिचय

  • डॉ. चंद्रप्रकाश जोशी
  • वर्तमान- विधानसभा अध्यक्ष, राजस्थान
  • दल- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  • जन्म 29 जुलाई 1950
  • पिता- स्व. रामचंद्र जोशी
  • माता- श्रीमती सुशीला जोशी
  • पत्नी- ज्योत्सना जोशी
  • आरंभिक शिक्षा- नाथद्वारा
  • उच्च शिक्षा- लॉ स्नातक (सुखाड़िया विवि)
  • भौतिकी में मास्टर्स डिग्री
  • मनोविज्ञान में मास्टर्स, पीएचडी
  • अध्यापन- प्रोफेसर मनोविज्ञान (सुखाड़िया विवि)

राजनीति-

  • विधानसभा क्षेत्र- नाथद्वारा
  • चार बार विधायक रहे
  • भीलवाड़ा से सांसद रहे
  • 2009 मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री बने
  • कांग्रेस महासचिव के तौर पर बिहार, प. बंगाल,
  • असम के पार्टी प्रभारी बने, सफलता दिलाई
  • राजस्थान क्रिकेट एसो. के अध्यक्ष रहे

एक वोट जो पीछा नहीं छोड़ता

2008 का वो एक वोट आज तक सीपी जोशी का पीछा नहीं छोड़ता। नाथद्वारा से वे एक वोट से हार गए थे, उनकी पत्नी ज्योत्सना वोट नहीं डाल पाईं थीं। खैर, आज भी वे उस कंडीशन में हैं, जब एक वोट से सरकार इधर या उधर जा सकती है। मत का ही खेल चल रहा है, कोई कहता है बहुमत है, कोई कहता है बहुमत नहीं है। आंकड़ों की गुत्थी सुलझाई जा रही है। लेकिन आंकड़े हैं कि उलझ उलझ जाते हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच वोटों का घमासान हो, फ्लोर टेस्ट हो और फिर सीपी जोशी का एक मत निर्णायक होने की स्थिति में आ जाए। राजनीति में कब क्या हो जाए, कह नहीं सकते, लेकिन ये सच है कि वो एक वोट सीपी जोशी का कभी पीछा नहीं छोड़ता। काश, उनकी पत्नी वोट डाल सकती होती, तो शायद राजस्थान की राजनीति का रंग ही कुछ और होता।

 

मुख्यमंत्री बनने की चाह उनकी भी थी, लेकिन…

सीपी जोशी कांग्रेस के विश्वस्त, कद्दावर, पढ़े लिखे और वफादार साथी रहे हैं, 2008 से पहले वे इस पॉजीशन में थे कि उनका नाम प्रदेश के संभावित मुख्यमंत्री की फेहरिस्त में सबसे ऊपर था। वे तब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। सीएम की रेस में नाम भी था। मुख्यमंत्री पद तक पहुंचना किसकी चाह नहीं होती। जैसे हर राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करना चाहता है, उसी तरह हर विधायक का सपना होता है मुख्यमंत्री पद। लेकिन इस चाह में सीपी जोशी ने पीसीसी चीफ रहते हुए भी कभी भी पार्टी से दगाबाज़ी नहीं की। कभी भी गुट नहीं बनाए। कभी तेवर नहीं दिखाए। कभी सरकार गिराने की धमकियां नहीं दी। वे काबिल थे और इसी काबिलियत के भरोसे ही उनकी चाह या महत्वकांक्षा भी फल-फूल रही थी। राजनीति के जानकारों की निगाह में सीपी जोशी को सर्वसम्मति से विधानसभा स्पीकर बनाया जाना कहीं न कहीं उस चाह को आदरांजलि देना ही माना गया।

जोशी मुख्यमंत्री होते तो गुटबाजी से बच जाती कांग्रेस ?

यह अटकलें लगाने वाली बात नहीं है। कांग्रेस आलाकमान को इस बारे सोचना जरूर चाहिए था। राजस्थान में महत्वकांक्षा की दो धुरियां बन गई थीं। कांग्रेस पार्टी गहलोत खेमा और पायलट खेमा में साफ साफ नजर आ रही थी। ऐसे में कांग्रेस आलाकमान ने अगर निर्णायक बुद्धि का परिचय दिया होता तो सीपी जोशी ऐसे मुख्यमंत्री हो सकते थे जिस पर किसी भी पक्ष को इस कदर आपत्ति तो नहीं होती कि कांग्रेस आज वाली स्थिति में दिखाई देती। सीपी जोशी के पास लंबा राजनीतिक अनुभव था। केंद्रीय कैबिनेट का हिस्सा रहकर उनकी राजनीति चमकी थी। वे सभी जातियों, समाजों, वर्गों, पक्षों और दलों के स्नेहपात्र रहे हैं। लेकिन शायद तब वही किया गया जो उस समय के हिसाब से उचित था, जोशी शब्द ज्योतिषी से अपभ्रंश होकर बना है, ज्योतिषी भविष्य बता सकता है। क्या जोशी में ज्योतिषियों को कोई नया भविष्य नजर आता है?

अपने पर अटल और सख्त हैं जोशी

विधानसभा स्पीकर बनने के बाद बजट सत्र में पत्रकारों और आगंतुकों पर उन्होंने कई पाबंदियां लगाईं। पत्रकार लामबंद हो गए। विपक्ष ने भी मुद्दा बनाने की कोशिश की। काफी हल्ला मचा। पत्रकारों ने मार्च तक निकाल दिया। लेकिन जोशी अपने फैसले पर अटल रहे। वे जोशी ही थे जिन्होंने पत्रकारों के पास में कटौती की और पत्रकार दीर्घा के अलावा सदन में कहीं भी आने-जाने पर पाबंदी लगा दी थी। विधायकों के आगंतुकों को बुलाने की संख्या भी 5 निर्धारित कर दी थी।

दलीय राजनीति से ऊपर हैं सीपी जोशी

स्पीकर के तौर पर तो उन्होंने कई बार साबित किया ही कि वे दलगत राजनीति से ऊपर है, इसके अलावा भी उन्होंने कई बार अन्य सरकारों के फैसलों का स्वागत कर व्यापक दृष्टिकोण दिखाया है। सीएए को लेकर जब उन्हीं की पार्टी मोदी सरकार की मुखालफत कर रही थी तब वे उन नेताओं में शुमार थे जो सीएए के समर्थन में दिखाई दिए थे। सीपी जोशी के अलावा शशि थरूर, जयराम रमेश, सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल जैसे नेताओं ने सीएए का समर्थन किया था।

बहरहाल, राजस्थान में 32 दिन चला राजनीतिक उथल-पुथल का दौर थम गया, अंत भला तो सब भला हुआ। लेकिन इस दौरान कई तरह के कयास लगाए गए। ये भी कहा गया कि केंद्रीय आलाकमान को अगर इस समस्या को सुलझाना है तो पायलट खेमे की नेतृत्व बदलने की मांग मान लेनी चाहिए। इस सुझाव के बाद सबके जेहन में सबसे पहले जो नाम आया वो नाम था सीपी जोशी का। इससे उनके कद का अंदाजा लगाया जा सकता है।

 

रिपोर्ट – फोकस भारत।