तो क्या राजस्थान में शुरू हो गया ‘महारानी’ का खेल ?

  • वसुंधरा राजे 12 अगस्त तक दिल्ली में !
  • जेपी नड्डा से मिलकर जताई नाराजगी !
  • वसुंधरा के इशारे पर 12 विधायकों की बाड़ाबंदी ?

फोकस भारत। वसुंधरा राजे को लगातार दरकिनार किया जाना राजस्थान में भाजपा को भारी पड़ सकता है। अमित शाह से वसुंधरा राजे का छत्तीस का आंकड़ा छुपा नहीं है। राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर इन दोनों सियासी ध्रुवों का टकराव साफ देखा गया था। इसके बाद राजस्थान की राजनीति से धीरे-धीरे वसुंधरा को अलग-थलग करने के रणनीति रची गई। लेकिन अभी तक ये तय नहीं किया गया था कि अगर प्रदेश में सरकार बनाने की नौबत आती है तो फिर वसुंधरा की भूमिका क्या होगी ? क्या भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा का कोई विकल्प सोच रखा है ? सवाल जटिल है और इसी सवाल का जवाब और अनदेखी का हिसाब मांगने वसुंधरा राजे दिल्ली जाकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर रही हैं। ये वसुंधरा की अपनी तरह की प्रेशर पॉलीटिक्स है । ये वक्त वसुंधरा के लिए इसलिए भी मुफीद है क्योंकि अमित शाह कोरेन्टाइन में हैं। क्योंकि राजस्थान में गहलोत सरकार पर अस्थिरता का संकट है। क्योंकि बहुमत के आंकड़े की सुई किसी भी दिशा में डोल सकती है। क्योंकि प्रदेश भाजपा रणनीतिक कौशल में बैकफुट पर दिखाई दी है। क्योंकि प्रदेश कार्यकारिणी में वसुंधरा गुट को तरजीह नहीं दी गई। तमाम कारण हैं, जिसके चलते ये कहा जा रहा है कि अब ‘महारानी’ वसुंधरा राजे ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिये हैं।

क्या वसुंधरा के इशारे पर हुई है भाजपा की बाड़ेबंदी ?

जानकार सूत्रों का कहना है कि उदयपुर संभाग के जिन विधायकों को गुजरात के होटल में बाड़ाबंद किया गया है वे वसुंधरा के करीबी हैं, इन विधायकों में जगसीराम कोली, समाराम गरासिया, धर्मनारायण जोशी, बाबूलाल खराड़ी फूल सिंह मीणा, गौतम लाल मीणा, अमृत लाल मीणा, कैलाश मीणा हरेंद्र निनामा नारायण सिंह देवल व शोभा चौहान शामिल हैं। तीन निर्दलीय विधायक भी वसुंधरा समर्थक बताए जा रहे हैं।

अगर ये वसुंधरा की बाड़ेबंदी है तो इसका अर्थ क्या ?

सुबह तक सतीश पूनिया समेत भाजपा के बड़े नेता बाड़ेबंदी से इंकार कर रहे थे, वे कह रहे थे कि बाड़ेबंदी की परंपरा कांग्रेस की है, भाजपा की नहीं। लेकिन बाद में उन्होंने दबे स्वर में स्वीकार किया कि भाजपा के कुछ विधायक बाड़ेबंदी में गए हैं। लेकिन फिर सवाल ये कि एक ही संभाग के विधायक बाड़े में क्यों गए। बाड़ेबंदी ही करनी थी तो सभी भाजपा विधायकों की होनी चाहिए थी। जब पूरी सरकार होटल से चल रही हो तो भाजपा ऐसे अहम मौके पर अपने विधायकों को खुला क्यों छोड़ रही है ? सवाल ये भी है कि अगर ये वसुंधरा की बाड़ेबंदी है तो इसके मायने क्या निकाले जाएं, मायने साफ हैं, वसुंधरा दो बार की मुख्यमंत्री रही हैं, केंद्र में उनकी खटास पहले से चल रही है, इसलिए वे राजस्थान की सियासी भूमि को इतनी आसानी से अपने हाथ से नहीं जाने देंगी। अपने विधायकों को बाड़े में भेजकर वसुंधरा राजे केंद्र आलाकमान पर प्रेशर बनाना चाहती हैं। साफ है कि अगर फ्लोर टेस्ट में गहलोत सरकार पर किसी भी तरह का संकट रहेगा, तो रिमोट कंट्रोल वसुंधरा के हाथ में रहेगा। साथ ही अगर वसुंधरा खेमे के विधायक पार्टी व्हिप के खिलाफ जाते हैं, तो वही खेल भाजपा में शुरू हो जाएगा जो कांग्रेस में चल रहा है। भाजपा ये नहीं चाहेगी कि सत्ता के इतने करीब आकर भाजपा टूट का शिकार हो जाए।

क्या वसुंधरा और पायलट बना सकते हैं तीसरा मोर्चा ?

वसुंधरा भाजपा में निर्वासित सा जीवन जी रही हैं और सचिन पायलट भी बागी का ठप्पा लगवाकर अधरझूल हैं। ऐसे में संभव है कि आने वाले वक्त में तीसरा मोर्चा भी अस्तित्व में आए और वसुंधरा राजे और सचिन पायलट एक साथ एक मंच पर नजर आएं। राजनीति में कुछ भी संभव है। वसुंधरा का राजस्थान में जनाधार है और वे समानांतर पार्टी चलाने में सक्षम हैं, ये हम आपको पहले ही बता चुके हैं, ऐसे ही सचिन पायलट भी युवाओं में अपना खास स्थान रखते हैं और महत्वकांक्षी हैं। लेकिन ये दोनों सियासी दिग्गज अगर एक मंच पर आते भी हैं तो क्या अपनी महत्वकांक्षाओं की घट-बढ़ का शिकार नहीं होंगे। वैसे दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। लेकिन राजस्थान की राजनीति इतनी पेचीदा हो गई है कि गहलोत की छत्रछाया में राजनीति करने वाले पायलट मुख्यमंत्री के ही दुश्मन हो गए हैं और दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा ने अपने ही संगठन को आंख दिखाना शुरू कर दिया है। बड़ी बात यही है कि अगर भाजपा की ये बाड़ाबंदी वसुधरा के इशारे पर हुई है, तो क्या ‘महारानी’ का सियासी खेल शुरू हो चुका है? सवाल इसलिए है क्योंकि 12 अगस्त तक वसुंधरा राजे दिल्ली में ही रहेंगी ।

बहरहाल, 14 अगस्त से विधानसभा का सत्र शुरू होने जा रहा है। कुल 5-6 दिन का खेल बाकी है। इन्हीं कुछ दिनों में जो बाजी मार ले जाएगा, सत्ता या शक्ति उसकी के कदमों में होगी। भाजपा ने अपने विधायकों की बैठक बुलाई है और तस्वीर बहुत जल्द साफ होगी। अगर केंद्र आलाकमान वसुंधरा को दुत्कार देता है तो सचिन पायलट के बाद वसुंधरा की बगावत राजस्थान के राजनीतिक फलक पर चमकने लगेगी। फिलहाल, अभी तक बात को ढंक कर रखा जा रहा है, कहा जा रहा है कि विधायक सोमनाथ दर्शन करने गए हैं, कुछ विधायकों को महाकाल के दर्शन करने मध्यप्रदेश भी भेजा जा सकता है। 11 अगस्त को बसपा विधायकों को लेकर आने वाले फैसले का भी बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है। सेंधमारी कहीं से भी कहीं के लिए भी हो सकती है। इसलिए हर खेमा अलर्ट है और पूरा दमखम लगा रहा है।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा