अब भाजपा की बाड़ेबंदी, क्या रेगिस्तान में भटक गया सियासत का ऊंट ?

फोकस भारत। राजस्थान में जैसे जैसे विधानसभा सत्र की तारीख करीब आ रही है वैसे वैसे बाड़ाबंदी का सियासी खेल मुश्किल चरणों में प्रवेश करता जा रहा है। कांग्रेस के बाद प्रदेश भाजपा ने भी अपने दर्जनभर विधायकों को गुजरात के अहमदाबाद में भावदा के पास स्थित एक रिसोर्ट भेज दिया है।

ये विधायक दक्षिणी जिलों से आते हैं और आदिवासी-अनुसूचित जनजाति बैल्ट से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में संदेह जताया जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार और भारतीय ट्राइबल पार्टी इन विधायकों पर डोरे डाल सकती है। सूत्रों के हवाले से खबर ये भी है कि ये सभी विधायक वसुंधरा राजे के इशारे पर बाड़ेबंदी में गए हैं। तो क्या वसुंधरा राजे ने सियासी बिसात पर चाल चलना शुरू कर दिया है ?

क्या महाराष्ट्र सरकार से भाजपा को है कोई डर?

महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ एनसीपी का गठबंधन है। याद कीजिए वहां भाजपा ने शरद पवार के रिश्तेदार अजित पवार को अपने साथ मिला लिया था, अजित का भी वही दावा था जो सचिन पालयट करते रहे हैं, अजित पवार जैसे ही भाजपा के साथ आए, सुबह जल्दी ही राज्यपाल ने देवेंद्र फडनवीस को शपथ दिला दी थी, लेकिन शरद पवार अजित को वापस अपने पाले में लाने में कामयाब रहे। इस तरह वहां भाजपा का सरकार बनाने के बावजूद ख्वाब टूट गया। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार भी यही चाहिए कि राजस्थान में भी भाजपा कामयाब न हो सके।

क्या भारतीय ट्राइबल पार्टी की है कुछ भूमिका?

जिन भाजपा विधायकों को गुजरात में बाड़ाबंद किया गया है उन पर एक नजर डालिए, ये विधायक हैं- जगसीराम कोली, समाराम गरासिया, धर्मनारायण जोशी, बाबूलाल खराड़ी फूल सिंह मीणा, गौतम लाल मीणा, अमृत लाल मीणा,  हरेंद्र निनामा नारायण सिंह देवल व शोभा चौहान। अधिकतर विधायक आदिवासी बेल्ट या अनुसूचित जाति-जनजाति बेल्ट का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में संभव है कि बीटीपी की तरफ से इन्हें कोई लालच या फिर जातिकार्ड का सुनहरा सपना दिखाया जा रहा हो। गौरतलब है कि बीटीपी ने गहलोत सरकार के खिलाफ मत देने का मन बनाया था, लेकिन फिर अपनी मांगें मनवा कर उन्होंने गहलोत सरकार को समर्थन दे दिया। हो सकता है कि सरकार के इशारे पर बीटीपी किसी तरह की डील करना चाहती है।

भाजपा नेताओं ने पहले ना-नुकर की, फिर माना बाड़ेबंदी हुई

बताया जा रहा है कि भाजपा के विधायक धार्मिक टूर पर हैं और सोमनाथ के दर्शन करने की योजना है। सवाल ये कि जब राजस्थान और पड़ोसी राज्यों में कोरोना का संकट काल चल रहा है, मंदिर बंद हैं ऐसे में भक्ति का इतना ज्वार कैसे उमड़ रहा है ?  राजनीतिक पंडितों का मानना है कि धार्मिक टूर कहने की बातें हैं। फिलहाल, भाजपा के बड़े नेताओं ने क्या कहा, वह पढ़िये-

सतीश पूनिया- हां, भाजपा के विधायक गुजरात गए हैं क्योंकि सरकार के कुछ ठेकेदार सक्रिय हो गए हैं। लेकिन यह बाड़ेबंदी नहीं है, बाड़ेबंदी कांग्रेस करती है, हम नहीं। हम स्वतंत्र हैं और कहीं भी घूम सकते हैं। मौजूदा सरकार अपने ही विधायकों पर मुकदमे लगाकर एसओजी और एसीबी का दुरुपयोग कर रही है तो सरकार की नीयत पर सवाल उठना भी जरूरी है इसलिए हम पहले से सावचेत हैं।

राजेंद्र राठौड़ – सावचेती रखने में कोई हर्ज नहीं है, कुछ विधायक यदि धार्मिक भ्रमण पर गए हैं तो उसे बाड़ाबंदी क्यों कहे, हमें गहलोत सरकार पर भरोसा नही है इसलिए हम सावचेत हैं, भाजपा  वटवृक्ष है  उसकी शाखाओं पर कई पंछी आकर बैठते हैं, हमारा बड़ा परिवार है यहां लोग आते रहते हैं।

गुलाबचंद कटारिया- 11 तारीख को ऐतिहासिक फैसला होगा इसलिए अभी से हमारे विधायकों को सुरक्षित रख रहे हैं, हमारी नजर 11 अगस्त पर आने वाले हाईकोर्ट के निर्णय पर है, बाकी हमारे विधायक एकजुट हैं और हम लगातार विधायकों के संपर्क में हैं।

भाजपा की बाड़ेबंदी पर कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास ने चुटकी ली है, कहा कि भाजपा की हवा एक ही दिन में निकल गई है, भाजपा अब बाड़ेबंदी क्यों कर रही है। कांग्रेस तो डेढ महीने से ये सब झेल रही है। कुल मिलाकर जो डर कांग्रेस के दोनों खेमों के बीच है वही डर भाजपा में भी देखने को मिल रहा है। सियासत है, बाजी किधर भी पलट सकती है। जहां तक फूट की बात है, तो वह भाजपा में भी अंदरखाने चल रही है, बस उजागर नहीं हो रही है, जिस तरह से प्रदेश कार्यकारिणी में वसुंधरा राजे के पक्ष को कमजोर किया गया इसलिए उनका भड़कना या प्रतिक्रिया देना लाजिमी भी है, वसुंधरा दिल्ली में नड्डा से मिली हैं और अपना पक्ष रख रही हैं। अगर राजस्थान में भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो उनकी तरफ से सीएम कौन होगा, इस पर तस्वीर साफ नहीं है।

क्या राजस्थान में सियासत के चार केंद्र बन गए हैं ?

राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो राजस्थान की सियासत के चार एंगल बन गए हैं, गहलोत खेमा, पायलट खेमा, भाजपा खेमा और वसुंधरा खेमा। लेकिन भाजपा में भी फूट बताई जा रही है। भाजपा में भी वसुंधरा खेमा अपनी अलग चाल चल सकता है, वसुंधरा राजे दिल्ली में हैं और जेपी नड्डा से मुलाकात भी कर रही हैं, तमाम बातों पर एतराज भी जताया जा चुका है। लिहाजा डर ये भी है कि कहीं पालयट की तर्ज पर वसुंधरा बगावत का ऐलान न कर दें। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा कहीं की नहीं रहेगी। राजस्थान में वह जो सपना संजो रही है, उसे वसुंधरा की बगावत से तगड़ा झटका लग सकता है।

फिलहाल, भाजपा विधायकों के सोमनाथ जाने की सूचना तो आ रही है, तीन निर्दलीय विधायकों के भी बाड़ाबंदी में पहुंचने की अटकलें लगाई जा रही हैं। साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा प्रदेश कार्यालय में विधायकों की बड़ी मीटिंग बुलाई गई है। तो हम नहीं कहेंगे कि राजस्थान में राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये जुमला सुन-सुनकर आप भी पक गए होंगे। ऊंट रेगिस्तान में खो गया है, उसे दिशा नहीं मिल रही है, लेकिन ये राजनीति का ऊंट है, संकटकाल में बैठेगा तो कहीं नहीं, उसकी खासियत ही है, कोई न कोई दिशा तलाश ही लेता है, क्योंकि ऊंट की याददाश्त बड़ी तेज होती है।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा