प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 30 साल पुराना संकल्प याद रहा, 52 साल पुराना संकल्प नहीं ?

  • जेहिं पर जेहिं के सत्य सनेहू, सो तेहिं मिलहिं न कछु संदेहू 
  • प्रधानमंत्री मोदी ने आज कौन सा संकल्प तोड़ दिया  ?

Ram Mandir Bhumi Pujan। आज अयोध्या के भाग खुल गए हैं। तीस साल पहले जो संकल्प (Ram Mandir Bhumi Pujan) लेकर नरेंद्र मोदी इस राम-नगरी से गए थे वो लौटे तो भगवान राम के भव्य मंदिर का शिलान्यास करने ही लौटे। संकल्प हो तो ऐसा ही हो, वरना ना हो। संकल्प की बात आई है तो इस वक्त एक संकल्प और याद आ रहा है। रामचरित मानस में बालकांड का एक प्रसंग है। तुलसीदास जी महाराज ने बहुत सुंदर शब्दों में लिखा है- जेहिं के जेहिं पर सत्य सनेहू, सो तेहिं मिलइ न कछ संदेहू’
भावार्थ ये है कि सीता स्वयंवर में पहुंचे राम ने वाटिका में सीता को देखा, दोनों ने एक दूसरे को देखा और प्रीत पैदा हो गई, संकल्प पैदा हो गया। माता सीता के मन में भय था, कि कहीं राम स्वयंवर की शर्त पूरी न कर पाए तो क्या होगा। लेकिन रामचरित मानस की इस एक पंक्ति के जरिए तुलसी महाराज ने बता दिया कि जिसका जिसपर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कोई संदेह की बात नहीं है।

मोदी ने भी सच्चे मन से राम का मंदिर ही चाहा होगा। अडवाणी के रथ में वे माइक लेकर चल रहे थे। तीस बरस पहले जब शायद उन्होंने यही संकल्प किया हो कि राममंदिर राजनीति में चमकने का बहुत अच्छा मुद्दा है। और मुहुर्त भी उस दिन चुनना जब साल भर पहले इसी दिन धारा 370 भी हटाई गई थी। वाह क्या बैलेंस है। हिंदुत्व का सच्चा स्नेह इसी को कहते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को राम-यज्ञ करते देख तमाम आस्थावानों के मन में हिंदू हृदय सम्राट की जय जयकार गूंज रही होगी। ऐसा धर्मात्मा प्रधानमंत्री देश को दोबारा नहीं मिल सकता। शास्त्रों का ज्ञाता, धर्म का मर्मज्ञ, देवी- देवताओं, शास्त्रों, उपासनाओं, मंदिरों और पूजनों में विश्वास करने वाला। और सिर्फ विश्वास ही नहीं, अखंड संकल्प लेकर कार्य करने वाला महानेता।

मोदी भूल गए 52 साल पुराना संकल्प ?

तीस साल पहले लिया संकल्प तो मोदी ने याद रखा, लेकिन 52 साल पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इसी तरह विधि विधान से, शास्त्रों-श्लोकों की बारिश में, पंच-देवताओं को साक्षी मानकर जो संकल्प लिया था, उस संकल्प को उन्होंने बेतरह भुलाया और अपनी महत्वकांक्षाओं तले दबा कर रख दिया। गुजरात के वड़नगर में 52 साल पहले यानी 1968 में नरेंद्र मोदी का विवाह जसोदा नाम की कन्या से हुआ था। उस वक्त जसोदा के मन में भी तुलसीकृत रामायण के बालकांड की शायद वही पंक्तियां चल रही हों- ‘जेहिं के जेहि पर सत्य सनेहू…’ एक लड़की के लिए विवाह का क्या अर्थ होता है, आप समझते होंगे। विवाह उसका नया जन्म होता है। पति ही उसके संसार का केंद्र बिंदू बन जाता है। अग्नि प्रज्ज्वित थी। नरेंद्र मोदी साथ थे। जसोदाबेन ने नरेंद्र से संकल्प मांगा था-

तीर्थ व्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:
वामांगवायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी

फेरों में बैठी कन्या वर से संकल्प मांगती है- यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ, तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना, कोई व्रत उपवास या अन्य धर्म कार्या करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें, यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।

नरेंद्र दामोदार मोदी ने जसोदा के संकल्प को पूरा करने का वचन दिया और इसी तरह के 7 वचन निभाने का वादा किया, जिनमें ‘जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात’ भी एक था, यानी तीनों अवस्थाओं युवा प्रौढ़ और वृद्ध में आप मेरा पालन करेंगे, भी शामिल था। एक वचन यह भी दिया था कि आप घर-परिवार और कुटुंब की सब चिंताओं से अब तक मुक्त थे, अब आप विवाह करने जा रहे हैं, तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यताओं का जिम्मा आप के कंधे पर रहेगा। नरेंद्र मोदी ने सातों वचनों को पूरा करने का संकल्प दिया था।

जसोदा भी उपेक्षित, ‘कृष्ण’ भी
खैर, आगे की कहानी मैं आपको नहीं सुनाऊंगा। राम नाम के मंत्रोच्चार के बीच चांदी की ईंट रखते, शिलापूजन करते मोदी इस वक्त वाकई हिंदू हृदय सम्राट हैं। कुछ लोगों को अफसोस हो सकता है कि जिन लोगों ने राममंदिर आंदोलन की शुरूआत की थी, अपने आप को खपाया था। वो लोग आज हाशिये पर हैं। वो चेहरे आज इस उत्सव में शामिल होते तो आशीर्वाद की तरह होती उनकी उपस्थिति, लेकिन वे नहीं हैं, वे 2013 से ही नहीं के बराबर हो गए थे। वे सब खामोश हो गए हैं। राजनीति में हाशिये और काफिए तय होते हैं, होने भी चाहिए। लेकिन पत्नी को दिए गए संकल्प इस तरह नहीं तोड़े जाने चाहिएं।
जशोदा बेन ने सारा जीवन इसी आस में बिता दिया कि एक दिन उनका पति, जो राष्ट्रधर्म के लिए उन्हें छोड़ गए है, एक दिन आएगा। एक बार बीच में आ भी जाता, तलाक ही दे जाता, वो मुक्त तो होती। जसोदाबेन सारा जीवन खुद को प्रधानमंत्री मोदी की पत्नी के तौर पर स्वीकार करती रहीं। लेकिन आज जब प्रधानमंत्री मोदी को एक धार्मिक आयोजन में जसोदाबेन के बिना आहूतियां देते, दंडवत लगाते, श्लोकों पर देवों आ आवाहन करते देखता हूं, तो वो संकल्प बरबस याद आ जाते हैं जो उन्होंने जसोदा को दिए थे। कैसी विडम्बना है, राम के आयोजन में जसोदा भी उपेक्षित है और कृष्ण भी।

रिपोर्ट- आशीष मिश्रा