क्यों हुई चाबहार पर मोदी की हार ?

  • पाकिस्तान के ग्वादर का जवाब था चाबहार
  • तेहरान से हुआ था भारत का समझौता
  • भारत को समझौते से बाहर किया ईरान ने

फोकस भारत। क्या कूटनीतिक स्तर पर मोदी फेल साबित हो रहे हैं। पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध जिस तरह बिगड़ रहे हैं उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे बड़े देशों से बढ़ती नजदीकी भारत को भारी पड़ रही है। चीन के अलावा भारत के रिश्ते इस वक्त नेपाल, भूटान और पाकिस्तान से बिगड़े हुए हैं। बांग्लादेश और श्रीलंका से भी कोई बहुत अच्छे संबंध नहीं हैं।

दरअसल चाबहार एक बंदरगाह है जो ईरान में है। प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान के साथ समझौता किया था जिसमें चाबहार से जहेदन तक 600 किमी से लंबी रेल लाइन बनाने के प्रोजेक्ट में भारत को हिस्सेदारी मिली थी, सामरिक नजरिये से यह भारत के लिए बड़ी कूटनीतिक जीत  करार दी गई, कहा गया कि इस तरह भारत की पहुंच अफगानिस्तान तक आसान हो जाएगी और फिर भारत अफगान की धरती से भी पाकिस्तान को घेर सकेगा। इतना ही नहीं, चीन जो कि पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है, उसके जवाब के रूप में चाबहार को देखा जाने लगा। लेकिन अब ईरान ने ही भारत को इस प्रोजेक्ट से बाहर कर दिया है।  इरान का कहना है कि वह ख़ुद इस रेल परियोजना पर काम करेगा। इसके लिए इरानी राष्ट्रीय विकास कोष से चालीस करोड़ डॉलर दिए जाएंगे।

इस कूटनीतिक हार में चीन का हाथ होने का शक है, वह है पिछले हफ़्ते तेहरान ने चीन के साथ एक क़रार किया, जिसके तहत बीजिंग चाबहार ड्यूटी फ्री ज़ोन और तेल साफ़ करने का कारखाना बनाएगा। शायद चीन चाबहार बंदरगाह को विकसित भी करना चाहता है।  इस पूरी परियोजना पर चीन चार सौ अरब डॉलर खर्च करेगा.

ग्वादर और चाबहार की दूरी 72 किलोमीटर है । चाबहार से लगने लगा था कि भारत की मौजूदगी इरान में है। लेकिन लगता है चीन ने भारत को कूटनीतिक मात दी है।

 

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